राज्य में साहित्यिक परिवेश का निर्माण करने तथा नवोदित लेखकों को प्रोत्साहित करने हेतु हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा विभिन्न साहित्यिक योजनाएँ कार्यान्वित की जा रही हैं। इन योजनाओं में पुस्तक प्रकाशनार्थ सहायतानुदान योजना भी सम्मिलित है। हरियाणा राज्य के जो लेखक हिन्दी एवं हरियाणवी में साहित्य रचना करते हैं, उन्हें अपनी अप्रकाशित पुस्तकों के प्रकाशन के लिए प्रस्तुत योजना के अन्तर्गत आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता है।
वर्ष 2007-2008 के दौरान आयोजित पुस्तक प्रकाशनार्थ सहायतानुदान योजना के अन्तर्गत डॉ. रमाकान्त शर्मा की हिन्दी गीतिकाव्य और राष्ट्रीयता (स्वातन्त्र्योत्तर सन्दर्भ) शीर्षक पाण्डुलिपि को अनुदान के लिए स्तरीय पाया गया है।
आशा है सुधी पाठकों द्वारा लेखक के इस सफल प्रयास का स्वागत किया जाएगा।
जिसकी पुण्यधरा पर हमें जन्म मिला, जिसका अन्न-जल ग्रहण कर हम पले-बढ़े, जिसने हमें सर्वोच्च संस्कृति प्रदान की, ऐसे राष्ट्र देव के चरणों में मैं अपनी भावना का प्रथम पुष्प समर्पित करता हूँ। मैं मानता हूँ कि अपनी माटी एवं अपने राष्ट्र का ऋणभार स्वीकार करना प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व होना चाहिए। दायित्व की यह स्वीकृति ही हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है। मेरा विचार है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक राष्ट्र भारत में जो जहाँ जिस क्षेत्र में अपना कार्य ईमानदारी एवं समर्पित भाव से कर रहा है, वह राष्ट्रीयता से जुड़ा है। किसी भी समुन्नत राष्ट्र के लिए राष्ट्रीयता एक महनीय मूल्य है।
मुझे याद है, मई 2004 में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के प्रान्तीय अधिवेशन में प्रख्यात साहित्यकार डॉ. कमल किशोर गोयनका (दिल्ली) भिवानी आए थे। बातचीत में उन्होंने मुझसे राष्ट्रीयता सम्बन्धी कार्य करने को कहा था। मैंने सहज भाव से एक अध्ययनक्रम बनाया। कवि सूची में कनिष्ठता-वरिष्ठता क्रम पर मैंने ध्यान भी नहीं दिया। यह कृति डॉ. गोयनका जी की प्रेरणा का सुफल है। मैं उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। राष्ट्र एवं समाज विषयक मेरी मनोरचना की सहज निर्मिति में मेरे परिवार का महत्त्वपूर्ण योगदान है, जहाँ मैंने समाज एवं राष्ट्र की सेवा के मूल्य को समझा; मेरे भीतर राष्ट्रवादी संस्कार पनपे; फलतः मैं राष्ट्रप्रेम की रचनाओं के प्रति समर्पित हुआ। जिन विद्वानों-साहित्यकारों-गुरुजनों के सान्निध्य ने मुझे सदैव संबल प्रदान किया, उनमें हैं-मेरे गृह जनपद मैनपुरी के कवि लाखन सिंह भदौरिया सौमित्र एवं श्री श्रीकृष्ण मिश्र, हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ. मोहन अवस्थी एवं प्रो. रामकिशोर शर्मा, विश्वभारती शांतिनिकेतन के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर भोलानाथ मिश्र एवं प्रोफेसर डॉ. हरिश्चन्द्र मिश्र, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. लाल चन्द्र गुप्त मंगल, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर डॉ. नरेश मिश्र एवं डॉ. रामसजन पाण्डेय, वरिष्ठ नवगीतकार सोम ठाकुर (आगरा), भिवानी के ख्यातनाम चिकित्सक, गीतकार डॉ. शिवकान्त शर्मा, बी.टी. एम. के पूर्व महाप्रबंधक कविवर डॉ. राजेन्द्र कौशिक एवं कविश्री पुरुषोत्तम 'पुष्प' । मैं इन सभी के प्रति कृतज्ञ हूँ।
हरियाणा के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामनिवास मानव मुझे सदैव इस बात के लिए कोंचते रहते हैं कि मैं कुछ न कुछ लिखता रहूँ। इस कार्य में भी मैं सदैव उनके सम्पर्क में रहा हूँ।
दुर्गापुर स्टील प्लांट के पूर्व अधिकारी आदरणीय श्वसुर साहब श्री सर्वदानन्द मिश्र से होने वाले राष्ट्रवादी वैचारिक विमर्श से भी मुझे सदैव सम्बल मिला है। मैं इन्हें अपने प्रणाम निवेदित करता हूँ।
विशेष आभारी हूँ हरियाणा साहित्य अकादमी का। अकादमी की ओर से यदि पुस्तक प्रकाशनार्थ अनुदान न मिला होता तो पुस्तक का प्रकाशन अभी सम्भव न हो पाता।
सूर्यप्रभा प्रकाशन के स्वामी युवा साहित्यकार भाई महेन्द्र शर्मा सूर्य ने प्रकाशन में जो तत्परता दिखाई है, इसके लिए इन्हें हार्दिक धन्यवाद देता हूँ।
आभार उन सभी रचनाकारों का, जिनकी रचनाओं के सन्दर्भों द्वारा यह कार्य सम्पन्न हो सका।
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