पुस्तक एक दृष्टि में
''होरा शतक'' ज्योतिष शास्त्र में जातक संबंधी फलादेश की एक गौरवशाली रचना है । इसमें निम्न विषयों पर चर्चा हुई है । यह पुस्तक बहुत सरल, सरस और व्यावहारिक है । इसमें दिए योग बहुत सटीक व प्रभावशाली है ।
विषय-सूची
अपनी बात
(I)
आभार श्लोक संख्या
(III)
अध्याय-1 होराशास्त्र के विशिष्ट नियम
1
जन्म कुंडली में भाव, भावेश तथा कारक ग्रह का महत्त्व
2
संत महात्मा तथा वैराग्य होने के योग
3
कारक ग्रह का अपने भाव और राशि में स्थिति का फल
4-7
राहु या केतु से युति के कारण ग्रह की बल-वृद्धि
8
वक्री ग्रहों का प्रभाव
9-15
यदि कोई ग्रह अपनी ही राशि को देखे तो उस ग्रह की अन्य
राशि पर इस दृष्टि का प्रभाव
16-18
अपनी ही राशि से अष्टम भाव में बैठे ग्रह का प्रभाव
19-22
पार्श्वगामिनी दृष्टि का प्रभाव (पापकर्तरी तथा शुभकर्तरी योग)
23-28
शत्रु ग्रह की युति पाने वाले ग्रह का फल
29-31
अध्याय-2 ग्रह संबंधी विशेष नियम
29
चंद्रमा का बल
32
बुध के कारण शीघ्र फल प्राप्ति
33-34
धर्म में रुचि होने के योग
35
द्वादशस्थ शुक्र का योगदान
36
द्वादशस्थ शुक्र से धन-वैभव की प्राप्ति
37-40
किसी भी भाव से द्वादश स्थान पर बैठा शुक्र उस भाव का बल बढ़ाता है।
41
व्ययस्थ शुक्र से धनसंपदा की प्राप्ति
42
चतुर्थ भाव में बैठे शुक्र से पंचम भाव के शुभफल में वृद्धि
43
रोग और पीड़ा का कारक शनि
44
अध्याय-3 भाव संबंधी विशेष नियम
लग्न-प्रथम भाव का सर्वोपरि महत्त्व भाव
45
केन्द्रस्थ ग्रहों का लग्न पर प्रभाव (ग्रहों का केन्द्र संबंध)
46
सूर्य तथा चंद्र लग्न का महत्त्व
47
यमल या जुड़वाँ बच्चे होने का योग
48
पापी लग्नेश से रोग व पीड़ा
49
पापी लग्नेश जिस राशि में बैठे उस राशि संबंधी पीड़ा
50
जातक स्वयं दत्तक पुत्र बने ऐसा योग
51
धन का कारक बृहस्पति (कुंभ लग्न पर गुरु का प्रभाव)
52
चतुर्थ भाव पर शनि की दृष्टि का परिणाम
53
कालपुरुष के पीड़ित अंग से रोग निर्णय
54-55
भाव संबंधी कारक पीड़ित होने से उत्पन्न रोग।
56
रोग के कारण
57
माता को रोग का उदाहरण
58-59
मृत्यु का कारण जानने में लग्न का महत्त्व
60-62
राज्यकृपा देने वाला गुरु
63-64
लग्न व दशम भाव से आजीविका विचार
65-66
अध्याय-4 रोग देने वाले अवयोग (दुर्योग)
78
पागलपन के योग
67-69
कुष्ठ रोग के योग
70
मिरगी का दौरा पड़ने के योग
71
स्नायुविक दुर्बलता के योग
72
मूकत्व (गूंगापन) के योग
73-74
पति या पत्नी को जटिल रोग होने के योग
75-76
अध्याय-5 राजयोग
103
सत्ता सुख के योग
77
विपरीत राजयोग
पद प्रतिष्ठा व अधिकार पाने के योग
79
स्वभाव में कठोरता व कूरता या क्रोध देने वाले योग
80-83
बंधन प्राप्ति (जेल जाने) के योग
84
लौकिक सुखलिप्सा के योग
85-86
अध्याय-6 कालक्रम से ग्रहों का प्रभाव (दशा-भुक्ति परिणाम)
129
व्यय भाव में स्थित शुक्र की मुक्ति का फल
87
विवाह तथा भाग्योदय कब-समय ज्ञान
88-93
भाग्योदय संबंधी योग
94
पाप ग्रह की दशा में उसकी अपनी भुक्ति का फल
95-96
पापयुक्त बुध की दशा में बुध की भुक्ति
97
शुभ या पाप ग्रहों से संबंध होने का फल
98-99
म्लेच्छ या नीच संगति के योग
100-101
परिशिष्ट
पंच महापुरुष योग
163
धनी मानी होने के योग
167
ज्योतिष और जीवन यात्रा
170
होरा शतकम् (विशिष्ट व्यक्तियों की कुंडलियाँ)
172
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