आमुख
प्रारम्भ से ही भारतीय संगीत का प्रमुख आकर्षण स्वर सौंदर्य रहा है । आज भी स्वर की प्रतिभा जितनी श्रेष्ठ और निर्मल भारतीय गायकों में पाई जाती है, उतनी अन्य विदेशी गायकों में दृष्टिगोचर नहीं होती । फिर भी आश्चर्य की बात है कि हमारे विद्वानों ने अपनी भाषा में अभी तक कोई एक भी ऐसी पुस्तक नहीं लिखी, जिसमें स्वर और उसके सौंदर्य के विषय पर प्रकाश डाला गया हो, जबकि अन्य विदेशी लेखकों ने इस विषय पर काफी लिखा है ।
अभी हमारे राष्ट्र को स्वतन्त्र हुए थोड़ा ही समय हुआ है, फिर भी इस अस्प अवधि में कला और संस्कृति का जिस गति से विकास हुआ है अथवा हो रहा है, उसे हम सन्तोषजनक कह सकते हैं । वह कला, जो थोड़े दिनों पूर्व जागीरदारों, राजाओं, नवाबों और आला अफसरों की चहारदीवारियों तक सीमित रह गई थी, आज जनसाधारण को भी सरलता से उपलब्ध है । प्रगति के इस युग में हमारा संगीत भी आशाजनक अभिवृद्धि की ओर है, इसमें सन्देह नहीं । शिक्षा संस्थाओं, आकाशवाणी केन्द्रों एवं समय समय पर होने वाले सांस्कृतिक अथवा राष्ट्रीय आयोजनों में संगीत को अधिकाधिक महत्व दिया जाने लगा है । फलस्वरूप देश के सभी भागों में संगीत का प्रचार और प्रसार द्रुत गति से हो रहा है । प्रति वर्ष सहस्रों विद्यार्थी संगीत की विभिन्न परीक्षाओं को उत्तीर्ण करते हैं । उनमें से बहुत बड़ी संख्या में येन केन प्रकारेण संगीत के प्रचार का साधन बन जाते हैं । चाहे स्कूलों में संगीत अध्यापक बनकर अथवा प्राइवेट म्यूज़िक मास्टर बन कर । ऐसे आवाज सुरीली कैसे करें? व्यक्ति जीविकोपार्जन करते हुए अपने सीमित दायरे में ही घूमते रहते है। चूँकि वे संगीत शिक्षक हैं और संगीत की शिक्षा देते हैं, इसलिए उन्हें कलासेवी कहना चाहिए । चूँकि उन्होंने परिश्रम करके संगीत की डिगरियाँ हासिल की हैं अत उन्हें कलाकार की पदवी भी मिलनी ही चाहिए, और मिल भी जाती है । इस प्रकार हमारे इन नवोदित कलाकारों के दोनों स्वप्न पूरे हो जाते हैं और वे अपनी वर्तमान परिस्थितियों में, अधिक से अधिक स्थानीय ख्याति प्राप्त गायक बनकर, अपने विकास की चरम सीमा अनुभव कर बैठते हैं ।
अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि कला पुजारियों की इतनी बड़ी संख्या होते हुए भी चमत्कारी गायक मुश्किल से कोई एक ही निकल पाता हे, ऐसा क्यों? इस प्रश्न के सही उत्तर के लिए हमें अपने इतिहास के पृष्ठों को उस दौर तक पलटना होगा, जबकि हमारे देश में स्वामी हरिदास, तानसेन, बैजू गोपाल नायक जैसे चमत्कारी गायक थे । इन विभूतियों कि जीवनियों का ध्यानपूर्वक मनन करके उन तथ्यों की खोज करनी पड़ेगी कि इन्होंने कितने दिनों तक शिक्षा ग्रहण की, कितने दिनों तक रियाज किया और कितने समय तक स्वराभ्यास किया! इन्होंने अपने अध्ययन काल की कितनी अवधि सप्त स्वरों को अपने कंठ से ठीक ठीक निकालने में व्यय कर दी और कितना समय इन स्वरों को खूबसूरत बनाने में लगाया! तब कहै। जाकर यह कहावत चरितार्थ हुई धरा मेरु सब डोलते तानसेन की तान । वास्तव में चमत्कार शब्द कोई जादू की पिटारी से नहीं निकला । यह एक परिश्रमसाध्य वस्तु है, जिसे कोई भी कर्म निष्ठ व्यक्ति प्रात्त कर सकता है । यदि आपके पास स्वरचमत्कार नहीं है तो उसे नियम संयम से चलकर दैनिक स्वराभ्याम द्वारा पाप भी प्राप्त कर सकते हैं । श्रेष्ठ गायक बनने के लिए स्वर सौंदर्य की ओर ध्यान देना परम आवश्यक है । किसी किसी व्यक्ति को स्वर का तोहफा ईश्वर की ओर से प्राप्त होता बै वास्तव में ऐसे व्यक्तियों को भाग्यशाली ही कहना पड़ेगा । ऐसा होने पर भी यदि वे व्यक्ति अपने स्वर सौंदर्य के प्रति उपेक्षा की नीति का प्रयोग करते हैं तो उनकी यह ईश्वरप्रदत्त प्रतिभा एक दिन अवश्य ही अंधकार में विलीन हो जाती है । इसके अतिरिक्त यदि वे अपने स्वर सौंदर्य की रक्षा करते हुए निरंतर उसकी अभिवृद्धि का प्रयत्न करते हैं तो सोने में सुगंध पैदा हो जाती है ।
जिस प्रकार व्यक्तित्व को आकर्षक बनाए रखने के लिए लोगों में शारीरिक सौंदर्य वृद्धि की लालसा विद्यमान रहती है और वे किसी भी कीमत पर अपनी खुबसूरती पर आँच नहीं आने देते उसी प्रकार प्रत्येक गायक और वक्ता की भी यही हार्दिक इच्छा रहती है कि उसकी आवाज मधुर और आकर्षक हो जाए । अतर दोनों में केवल इतना ही है कि शारीरिक । सौंदर्य के जिज्ञासु क्रियात्मक उपायों एवं उपलब्ध साधनों द्वारा अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करते रहते हैं और स्वर सौंदर्य पैं। जिज्ञासु इसे ईश्वरीय देन समझकर न तो स्वर सौंदर्य वृद्धि के साधन ही जुटा पाते हैं और न किसी के बताए हुए उपायों को हो क्रियात्मक रूप देने का उन्हें अवकाश मिल पाता है अत वे जहाँ से चले थे, नहीं आकर रुक जाते हैं । मतलब यह है कि वे अपनी आवाज को जितनी रंजक और प्रभावपूर्ण बना सकते थे, उतनी बना नहीं पाते । इसलि प्रत्येक गायक, वक्ता अथवा गायन के विद्यार्थी का प्रथम कर्तव्य है कि वह प्रत्येक स्थिति में अपने स्वर सौंदर्य की रक्षा करते हुए निरंतर उसको अभिवृद्धि के लिए प्रयत्नशील रहे ।ग्रीस के लोग वाणी के विकास को बहुत अधिक महत्व देते थे और भाषण देने के इच्छुक व्यक्तियों को तीन विशेषज्ञों के अधीन रखा जाता था । पहला अध्यापक वाणी का विकास, दूसरा स्वर भेद निवृत्ति और तीसरा वाणी की विभक्ति और उसके उतार चढ़ाव को ठीक कराता था ।
मानव स्वरयंत्र को विकसित करने के लिए ऐसा कोई भी उपकरण नहीं, जो बिना स्वर साधना के इसका पूर्ण रूप से विकास कर सके । अब प्रश्न यह उठता है कि क्या संसार में कोई ऐसी भी ध्वनि है, जिसको मानव उत्पन्न नहीं कर सकता? पक्षियों का कलरव, पशुओं का दहाड़ना, कीड़े मकोड़ों का गुंजन, किसी वाद्य यंत्र की ध्वनि, हवा को सरसराहट और पानी का कल कल नाद आदि किसी भी ध्वनि को अत्यंत बुद्धिमत्ता के साथ प्रस्तुत किया जा सकता है । इसलिए यह जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि मानव स्वरयंत्र किसी भी ध्वनि को सरलता के साथ प्रकट करने में पूर्ण समर्थ है । आवश्यकता इसी बात की है कि स्वरयंत्र का पूरा विकास करके हम ध्वनि की सार्थकता सिद्ध करें ।
प्रस्तुत पुस्तक में स्वर से संबंधित समस्त अंगों पर विशद प्रकाश डालने की चेष्टा की गई है । जिन लोगों की आवाज मधुर अथवा कर्णप्रिय नहीं है, उन्हें अपनी सुविधानुसार इस पुस्तक में से कुछ आसान प्रयोग चुन लेने चाहिए और लाभ होने तक उनका नियमित रूप से अभ्यास करना चाहिए । यदि धैर्य और विश्वास से काम लिया गया तो एक दिन वे निश्चित रूप से अपने स्वर को माधुर्य और आकर्षण से ओतप्रोत पाएँगे । भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने इस पुस्तक की उप योगिता जानकर अंधों के लिए ब्रेइल पद्धति में इसको प्रका शित किया है, जिसके लिए हम उसके आभारी हैं ।
अनुक्रमणिका
स्वर का महत्त्व
17
स्वर साधना के विषय में कुछ आवश्यक जानकारी
25
ध्वनि या नाद के प्रकार
35
भारतीय और पाश्चात्य संगीत में गान के गुण तथा अवुगुण
39
कंठ स्वरविज्ञान
50
संगीत कला की संक्षिप्त जानकारी
67
काकु मेद
77
वाग्गेयकार
80
मुख पेशियों की कार्य प्रणाली और उनके व्यायाम
82
प्रतिध्वनि उत्पादक नासिका यंत्र
91
श्वास नियंत्रण और शारीरिक संतुलन
94
स्वर शक्ति या नाद साधन
112
स्वर परिर्वतन
116
कंठ गुण
122
स्वर के अभ्यास
123
शब्द और वक्ता (वाचक)
132
वाचन कला
142
वाणी विकार और उपचार
148
ध्वनि विज्ञान
162
स्वर को सुन्दर बनाने में सहायक प्राकृतिक साधन
173
परहेज और इलाज
182
स्वर भेद चिकित्सा
195
पौष्टिक आहार और आवाज
238
प्राकृतिक चिकित्सा
246
तांत्रिक चिकित्सा
248
सूर्य चिकित्सा
यूनानी चिकित्सा
249
हीमियो पैथिक चिकित्सा
252
घरेलू चिकित्सा
258
अध्यात्म चिकित्सा
261
एलोपैथिक प्रयोग
262
टॉन्सिल्स और स्वर
265
क्या आपका स्वर मधुर है
270
मनोवैज्ञानिक साधन
276
अच्छा गायक
278
माइक और स्वर
281
प्रभाव
286
संगीत प्रदर्शन की पूर्व
288
इस पुस्तक का उपयोग कैसे करें
292
स्वर साधकों के प्रश्न और उनका समाधान
293
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