पुस्तक के विषय में
गोपाल चतुर्वेदी (15 अगस्त, 1942) वर्तमान समय के महत्वपूर्ण व्यंग्य-हस्ताक्षर हैं। हिंदी में व्यंग्य की परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है । व्यंग्य चाहे किसी भी अंदाज, शैली या विधा में उभरकर आया हो उसने सदैव जीवन और समाज में व्याप्त कुंठा, स्वार्थपरता, छल-छद्म, अमानवीयता आदि की बखिया उधेड़ी है। प्रस्तुत संग्रह में लेखक के 30 व्यंग्य लेख संकलित हैं। इन्होंने अपने व्यंग्य लेखों के माध्यम से युगीन सत्यों, वक्त की पेचीदगियों, आपाधापियों, विपरीत परिस्थितियों, धार्मिक आडंबरों तथा रूढ़िगत मान्यताओं पर गहरा प्रहार किया है। लेखक ने अपने लंबे लेखकीय और प्रशासकीय अनुभव से जिन विसंगतियों, विद्रूपताओं, विडंबनाओं, असहनीय परिस्थितियों को देखा-परखा तथा जाना-पहचाना है, उन्हें अपनी बेबाक, मधुर मगर तीखी खिलदड़ी शैली में मुक्त भाव से व्यक्त किया है। गोपाल चतुर्वेदी की लेखन यात्रा उन्हें बराबर मानवीय बने रहने और मनुष्यता, न्याय, सटीकता के प्रबल पक्षधर के रूप में प्रस्तुत करती है। लेखक के जीवन सापेक्ष, सकारात्मक सोच संपन्न व्यंग्यों में उनके परिपक्व अनुभवों, मनुष्य की नैसर्गिक दुर्बलताओं और मानसिकताओं का अंकन, देश-विदेश के जन-जीवन की व्यापक जानकारी, समस्याओं की तह तक पहुँचने की तत्परता, आहत दायित्व, संघर्षरत मनुष्यों के प्रति गहरी क्षमता ने उन्हें संवेदनशील हृदयों का चहेता व्यंग्यकार बना दिया है।
लेखक के दो काव्य-संग्रह तथा 17 व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। 'सारिका', 'इंडिया टुडे', 'नवभारत टाइम्स', 'हिंदुस्तान', 'दैनिक भास्कर' जैसे पत्रों में अनेक वर्षों तक नियमित व्यंग्य लेखन करने वाले लेखक को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इनके कुछ प्रमुख व्यंग्य संग्रह हैं- अफसर की मौत दुम की वापसी फाइल पढ़ि पढ़ि धाँधलेश्वर कुरसी के कबीर आजाद भारत में कामु गंगा से गटर तक आदि ।
संकलक डी. शेरजंग गर्ग (29 मई, 1937) हिंदी के प्रख्यात कवि, लेखक, चिंतक तथा व्यंग्यकार हैं। अनेक पुस्तकों के सफल संपादन से जुड़े लेखक गत 45 वर्षों से पत्रकारिता, साहित्यिक लेखन, प्रसारण, प्रबंधन एवं प्रशासन के विविध क्षेत्रों में सक्रिय हैं। विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित लेखक की कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं-चंद ताजा गुलाब तेरे नाम (कविताएँ), दौरा अतंर्यामी का (व्यंग्य), स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता में व्यंग्य, व्यंग्य के मूलभूत प्रश्न (आलोचना) आदि ।
अनुक्रम
1
भूमिका
सात
2
आधुनिक कन्हैया-अर्जुन संवाद
3
दलाल स्ट्रीट के कंगाल
7
4
दावत में महाभारत
13
5
खंभा होने की नियति
18
6
फार्म हाउस के लोग
24
वह मुस्कराते क्यों हैं
35
8
दुम की वापसी
40
9
कैलेंडर का कुरुक्षेत्र
45
10
गंगा से गटर तक
50
11
सियासी विविधता में एकता
53
12
दुनिया का आदर्श दंगा
56
दलदल में दल
59
14
सावन के दिन चार
62
15
चीफ इंजीनियर का भोंपू
67
16
दाँत में फँसी कुरसी
72
17
मूँछवाले महान होते थे
75
सायरन बजाता प्रजातंत्र
81
19
कुरसीपुर का कबीर
85
20
ढकोसलावाद
94
21
अफ़सर की मौत
99
22
पेट और पुरस्कार
104
23
अच्छे पड़ोस के लाभ
112
हम वकील क्यों न हुए
118
25
देश के आधुनिक निर्माता
124
26
पर्यटन के छोटे-बड़े ठग
131
27
धाँधलेश्वर
138
28
साहित्य का ब्राह्मणवाद
152
29
आदमी और गिद्ध
160
30
दुर्घटना के मजे
167
31
देश फ़ाइलों का दर्पण है
174
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