यह पुस्तक 'भारतीय एवं पाश्चात्य रंगमंच' राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के अन्तर्गत, DSE पाठ्यक्रम के लिए है।
भारत और यूरोप के देशों में नाटक और रंगमंच की परम्परा बहुत प्राचीन है। भरतमुनि का 'नाट्यशास्त्र' और अरस्तु का 'पोयटिक्स' इस दृष्टि से दोनों ही महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हैं। इन दोनों ग्रंथों में दिए गए नाट्य-सिद्धांतों की अनेक चिन्तकों, विचारकों और रंगकर्मियों ने गहन अध्ययन, विवेचन और विश्लेषण कर अपनी-अपनी दृष्टि से नाटक सम्बंधी व्याख्याएँ दी हैं। चूँकि सिद्धांत तो सिद्धांत हैं, उनमें किसी प्रकार के परिवर्तन की गुजांयश कम ही होती है। अतः इस पुस्तक में मैंने विद्यार्थियों की जरूरत, भाषा और ज्ञान के स्तर को केन्द्र में रखते हुए पूर्व और पश्चिम के नाट्य और रंगमंच संबंधी पारंपरिक सिद्धांतों का संकलन करने का प्रयास किया है। इसलिए मेरी भूमिका लेखक की कम संकलनकर्ता की ज्यादा रही है। अतः मैं इन विषयों के मौलिक लेखकों का सम्मान करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करती हूँ। साथ ही मैंने पुस्तक में उपलब्ध सामग्री के मौलिक लेखकों और उनकी पुस्तकों के नामों का उल्लेख पुस्तक के अंत में दी गई संदर्भ सूची में कर दिया है। जो विद्यार्थी इन विषयों को समग्र रूप में पढ़ना चाहते हैं वो पुस्तक के अंत में दी गई पुस्तकों को अवश्य पढ़ें। अंत में मैं अपने माता-पिता, गुरुओं को सादर प्रणाम करते हुए अपने परिवार तथा पुस्तक के प्रकाशक श्री नटराज प्रकाशन के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ।
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