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भारतीय विरासत : एक अनुशीलन: Indian Heritage: A Study (In the Perspective of Ardhamagadhi Aagam Literature)

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Item Code: HAH634
Author: Harishankar Pandey
Publisher: BHARAT BHARTI, VARANASI
Language: Hindi
Edition: 2024
ISBN: 9789394814196
Pages: 243
Cover: HARDCOVER
Other Details 9.00x6.00 inch
Weight 410 gm
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Book Description
भूमिका

सत्य, शिव, सुन्दर, ऋत, अनाविल और प्रसन्न विरासत है - 'भारतीय विरासत' जिसमें विश्वजनीन कलपना, सार्वजनीन साधना, त्रैकालिकी विभूतिमयी भावना और सर्वार्थग्राहिणी प्रज्ञा का अमर उजास एवं प्रकाश प्रसूत एवं व्याप्त होता है। इस विद्या की बगिया का हरेक पुष्प अहर्निश खिलखिलाता रहता है। जीवन धन्यता के गीत का मधुर गूंज हमेशा सुनाई पड़ता रहता है। वहाँ केवल रस की प्रसन्न प्रस्रविनी प्रवाहित होती रहती है। जितना भी पान करो, छक कर पियो रसास्वाद बढ़ता ही जाता है। "मुहुरहोरसिका भुवि भावुकाः" (भा.पु. 1.1.13) अनन्त का अस्वाद, अमरता और मोद का आस्वाद जिससे केवल तृप्ति, प्रसन्नता के साथ अपरिमेय आनन्द की प्राप्ति होती है।

ऋषियों की साक्षात्धर्मादृष्टि कवियों की पारमेदिनी चिदम्बरीया प्रतिभा और अनन्त आनन्दकारिणी अपरिमेय यशः सुखकारिणी सरणि का साक्षात् कर जगत्-जीवों में अपार सुख, दिव्य मोद, परम-तृप्ति की संस्थापना करती है। भारतीय विरासत हमेशा प्राचीन होकर भी नित्य नवीन है। क्षण-रमणीय है। श्रीमद्भागवतपुराण की महनीय एवं पठनीय पक्ति है -

तदेवरम्यं रुचिरं नवं नवं

तदेवं शश्वन्महतो महोत्सवम् ।

तदेव शोकार्णव शोषणं नृणां

यदूत्तमश्लोक यशोनुगीयते ।।

भारतीय विरासत जीवन के अन्तरंग का मोद मंगलमय स्वरूप का प्रकाशन करती है। उसे प्रसन्न और तृप्त कर सर्वसामर्थ्य की लव्धि का दान करती है। भारतीय विरासत मनन-चिंतन, विचारण, साक्षात्करण, आत्मसात्करण तथा नित्यनवीनानुसंधान की सम्पन्नता को सिद्ध करती है। दार्शनिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक आदि सिद्धान्तो की विचारणा होती है। कर्त्तव्य का विवेचन, सत्पथ का निरूपण, विश्व मंगल का संस्थापन, लोक-परलोक, परमात्मचिन्तन के साथ परसुख की उपलव्धि आदि भारतीय विरासत के मुख्य विवेच्य एवं काम्य हैं।

भारतीय विरासत किंवा भारतीय प्रज्ञा की त्रिविधात्मका धारा संसार को प्रसन्न प्रफुल्लित एवं आह्लादित करती है। वैदिक, जैन और बौद्ध तीन धारा प्रतिष्ठित, प्रतिष्ठापित, संस्थापित एवं नित्य संवर्द्धित हैं।

जैन परम्परा का आर्ष ग्रन्थ आगम है जो आप्तवचन है, साक्षात् महावीर की वाणी है, देशकाल सीमा से अनाच्छादित एवं अविच्छिन्न है। आगम-श्वेतामवर-दिम्बर परम्परा के रूप में मिलते हैं। आचारांगादि श्वेताम्बर परम्परा के तथा पट्खण्डागमादि दिगम्बर परम्परा के ग्रन्य हैं।

प्रस्तुत ग्रन्थ 'भारतीय विरासत एक अनुशीलन' श्वेताम्बर आगम एवं तत्सम्बद्ध साहित्य पर आधारित है। देश के विशिष्ट विद्वानों के लेखों का संग्रहण है, जो उन्नत, उत्कृष्ट एवं उदारोदात्त गुण सम्पन्न हैं। विद्वान् गण अपने-अपने क्षेत्र के महनीय प्रातिभ-मनीषी हैं, लोकपूज्य हैं, विद्यासम्पन्न साधक हैं।

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