हिन्दी जगत में स्थान-विशेष की प्रतिभाओं पर डॉ० रामाधय अवस्थी द्वारा लिखित 'सत्रुराहो की देव प्रतिमायें पहला शोप इथ था। पर इस बंध में केवल गणेश, विष्णु सूर्य तथा बष्ट दियालों का ही विस्तृत विशेषन हो पाया है-अन्य हिन्दू देवी-देवता एवं जैन देव प्रतिमाओं की इसमें समीक्षा नहीं हो सकी है। इस कमी की मासिक पूति हॉ० मारुति नन्दन तिवारी ने हाल में प्रकाशित 'बजुराहो का जैन पुरातत्व दन्य से की है जिसमें सत्रुराहो की जैन मूतियों का प्रामाणिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। हाल हो में हॉ० रेखा पाण्डेय ने 'भुवनेश्वर की देव प्रतिमानों पर एक अच्छी पुस्तक प्रकाशित की है। पर अभी तक ओसियों की देव मूर्तियां पर हिन्दी पुस्तक का नितान्त अभाव था।
प्रस्तुत पुस्तक में डॉ० शशि बाला धोवास्तव ने ओतियों बबुराहो तथा भुवनेश्वर की देव मूतिन्नसंपदा का वर्णन हो नहीं किया है अपितु वास्तुशास्त्र एवं शिल्पशास्त्र की दृष्टि से उनका बालोचनात्मक अध्ययन तथा विश्लेषण भी किया है। तीन विभिन्न मिल्य-केन्द्रों का इस दृष्टि से विवेचन तथा तुलनात्मक अध्ययन एक दुरुह पर महत्वपूर्ण कार्य है जो विदुषी लेखिका ने भगोरय श्रम करके समीक्षात्मक वर्णन तथा तालिकाओं द्वारा आधुनिक वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया है।
प्रत्येक अंचल के मन्दिरों के तलच्छन्द एवं ऊध्र्वन्द के अंग तथा उपांगों की देव मूतियां भी निदिष्ट होती है। इनमें सबसे प्रधान बंग है गर्भगृह के द्वार तथा उसकी जपा के भद्र तया कर्ण। द्वार घावाजों के अधिकतर अनकरण प्रायः सभी सम्प्रदायों के एक समान होते हैं, विशेषता लाट के बलंकरण की है और उसमें भी मध्यमणि वर्यात ललाट-बिम्ब की प्रधानता होती है जो मन्दिर के मूलनायक का द्योतक होता है। महों पर अधिकतर मूल नायक के परिवार देवताओं का तथा रवी पती के बाद कों पर दिक्पालों का अंकन होता है। अन्य उपांगों पर सम्प्रदायिक देव-देवियाँ वा गामान्य आकृतियां उकेरी जाती है। वे लक्षण मोटे तौर पर ठीक है पर इनके अपवाद भी है। कालक्रम के बनुगार वास्तु तथा शिश्य विषयक आंचलिक समानताओं के साथ-साथ प्रत्येक क्षेत्र की अपनो विषमतायें अथवा विषता भी होती है। विदुषी लेखिका ने इन सभी आपतिक साम्यों एवं वैषम्यों का वर्णन से अधिक तालिकात्रों द्वारा निरुपण किया है जो इस बंद की महत्ता एवं उपादेयता बढ़ाती है।
विद्वानों तथा जिज्ञानु छात्रों के लिए यह शोष बन्ध एक महत्वपूर्ण उपादान है और इस मौलिक और सुपाठ्य पुस्तक के लिए विदुषी लेखिका को जितनी सराहना की जाय पोड़ी है।
हिन्दू मन्दिर वह पवित्र बरतु है अंगप्रत्यंग देवताओं को उपस्थिति उद्भावित है। यह स्वर्ष परवा का स्वरूप है, जो मानव मात्र के लिए प्रज्ञा एवं विवेक का उद्गम स्थल है। प्राचीन भारत के मन्दिर वास्तु का अध्ययन प्रायः उन्नीसवीं पती में आरम्भ हो पूरा था। इस अध्ययन का सूत्रात पाश्चात्य विद्वानों ने किया, जिनकी हथि वास्तुगत विशेषताओं तक ही सीमित थी। अट्ठारहवी शती में अनेक प्रवासी योरपवासियों का ध्यान भारतीय कसा की ओर आकृष्ट हुआ। यह स्वाभाविक ही था कि भारतीय परम्परा, धर्म, कर्मकाण्ड आदि से अनभिज्ञ होने के कारण कोरवासी अध्येता मन्दिरों तथा देव मूतियों के बाह्यत्र तक ही सीमित रहे। यह स्थिति अदनी शती के अन्त तक बनी रही। बारहवी ती में एक उच पादरी प्रीतीनियोलाजी आदि साउथ तथा जावं फास्टर के पेज आफाइनरी एण्टरट आफ हिन्दू' बन्यों से लेकर उन्नीची शती के पूर कृत 'हिन्दू पौश्चियन, कर्जत देनेही के एग्मोन्ट एण्ड हिन्दू माइयोलाजी' जान डाँगन के 'ए बनासिकल डिक्शनरी आफ हिन्दू माइबोलाबी', वितकिन् के हिन्दू माइयोलाजी बादि इन्यो तर योरोपीय प्रवासियों की भारतीय परम्परा से अनभिज्ञता हो प्रकट होती है। इन धन्थों के लेखक मन्दिर जवादेव प्रतिमानों के पीछे निहित दर्शन से अपरिचित थे, अतः उनसे न्याय को अपेक्षा नहीं की जा सकती थी, तथात्रि इसी सताब्दी में फरमूमन तथा हेवेल ने कलाकृतियों का मूल्यांकन उनकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के गन्दर्भ में करने पर बल दिया और इस प्रकार भारतीय भूतियों के अध्ययन में एक नवीन युगका सूत्रपात हुआ ।
भारतीय देव मूतियों की रचना का आधार उनके विशिष्ट लक्षण है, जो शताब्दियों में विकसित होकर नियमबद्ध हुआ। यह लक्षण देवता को प्रकृति एवं व्यक्तित्व के अनुरूप निर्धारित किए गए है। भारतीय शिल्ली इन नियमों का अनुसरण करता बाया है। अतः भारतीय देव-मूतियों का सम्य अध्ययनशास्त्र के आधार पर ही किया जा सकता है। बंगाली विद्वान नगेन्द्र नाथ बसु ने 'मयूर भज का पुरातात्विक सर्वेक्षण रिर्पोट' में इस तथ्य पर प्रकाश डाला जो इस दिशा में स्तुत्य प्रयाग है। वस्तुतः इस विषय पर मानक इन्च की रचना का श्रेय थी गोषी नाथ राव की है, जिन्होंने एतविक प्राचीन ग्यों का मन्थन कर विस्तृत पौराणिक देव समाज के प्रमुख देवताभी और उनके विभिन्न विध्य अपने धन्य एलिमेन्ट्स बफ हिन्दू आईकोनोयाकी' में प्रस्तुत किया। यह पुस्तक यद्यपि १९१५-१६ में प्रकाशित हुआ तथापि अद्यावधि वह इस विषय की अद्वितीय रचना है। तदन्तर अनेक भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों ने देवमूतियों के अध्ययन के क्षेत्र में महती योगदान किया जिनमें तारापद भट्टाचार्य, एच० कृष्णधारत्री, एन०० मट्टगाली, जितेन्द्र नाथ बनर्जी, प्रशान्त कुमार आचार्य, शिव राम मूति, कुमार स्वामी, कृष्णदेव स भारतीय एवं दुत्रिया स्टेला फैमरिस, एनिसबोनर गदूम पाश्चात्य विद्वानों के नाम उल्लेखनीय है।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (हिंदू धर्म) (12543)
Tantra ( तन्त्र ) (996)
Vedas ( वेद ) (708)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1901)
Chaukhamba | चौखंबा (3354)
Jyotish (ज्योतिष) (1450)
Yoga (योग) (1100)
Ramayana (रामायण) (1391)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23137)
History (इतिहास) (8251)
Philosophy (दर्शन) (3392)
Santvani (सन्त वाणी) (2555)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist