निवेदन
आदिदेव भगवान् शिवकी अद्भुत लीलाएँ उनके त्याग, वैराग्य, तितिक्षा तथा भक्तवत्सलता आदि विशेषताओंसे ओत-प्रोत हैं। इसी प्रकार उनके अनेकानेक स्वरूप भी बड़े विचित्र हैं; जिनमें गूढ़ रहस्य छिपे हैं। भगवान् सदाशिवके इन्हीं गुणों और स्वरूपोंके आधारपर उनके अनेक नाम प्रसिद्ध हैं, जिनमेंसे दस नामों (शिव, पुरारि, दक्षिणामूर्ति, पंचवक्त्र, आशुतोष, अर्धनारीश्वर नीललोहित, नटराज, प्रलयंकर एवं पशुपति )-को कल्याणके प्रसिद्ध लेखक गोलोकवासी श्रीसुदर्शनसिंहजी 'चक्र' ने लालित्यपूर्ण वार्तालापशैलीमें सुबोध बनाकर व्याख्यायित किया था। ये कथा-निबन्ध बहुत वर्षपूर्व सर्वप्रथम कल्याणमें प्रकाशित हुए थे। सम्प्रति वे पाठकोंको अनुपलब्ध हैं, सो इन्हें पुस्तकरूपमें प्रकाशित करनेका आग्रह होता रहता है। इसीको ध्यानमें रखते हुए गीताप्रेसद्वारा इन्हें संकलित कर पुस्तकाकार प्रकाशित किया जा रहा है।
आशा है,भगवान् शिवके श्रद्धालु पातकोंको इसे पढ़कर आनन्द तथा प्रेरणा मिलेगी और वे भगवान् सदाशिवके विविध स्वरूपोंको हृदयंगम कर सकेंगे।
विषय-सूची
1
शिव
5
2
मुरारि
11
3
दक्षिणामूर्ति
17
4
पञ्चवक्त्र
23
आशुतोष
29
6
अर्द्धनारीश्वर
35
7
नीललोहित
41
8
नटराज
47
9
प्रलयंकर
53
10
पशुपति
59
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