सतत चिन्तन में निमग्न तथा मानव मात्र के समग्र कल्याण के लिए प्रयत्नशील विद्वान संन्यासी श्री चन्द्रप्रभ सरस वाणी द्वारा जिस ज्ञान-धारा का प्रवाह करते हैं, उसकी जीवन्त प्रस्तुति है जागो मेरे पार्थ। यह गीता पर दिए गए उनके अठारह आध्यात्मिक प्रवचनों का अनूठा संकलन है, जो भारतीय जीवन-दृष्टि को रेखांकित करता है। इस ग्रन्थ को पढ़कर हरेक के मन में विजय का विश्वास जागता है और हर कोई पुरुषार्थ की भावना से भर उठता है।
जागो मेरे पार्थ अमृत उद्बोधन की तरह जीवन-रस से पूर्ण है। अपने-आप में यह एक दर्शन है। इसमें आदर्श और यथार्थ परस्पर आत्मसात हो रहे हैं। श्री चन्द्रप्रभ के इन रससिक्त प्रवचनों को यदि अन्तर्मन में उतार लें, तो निश्चय ही गीता के मार्ग पर चलकर जीवन की मंज़िल तक पहुँचा जा सकता है।
श्री चन्द्रप्रभ का जन्म राजस्थान प्रदेश के बीकानेर शहर में 10 मई 1962 को हुआ, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन शिक्षा, साहित्य एवं ज्ञान की सेवा में समर्पित कर दिया। उन्हें राष्ट्र-संत भी कहा जाता है। वे वर्तमान युग के महान जीवनद्रष्टा संत हैं। उनका जीवन प्रेम, प्रज्ञा, सरलता और साधना से ओतप्रोत है। वे न केवल मिठास भरा जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं वरन् अपने जीवन में भी मिठास और माधुर्य घोले रखते हैं। वे आम इंसान के बहुत करीब हैं। उनके द्वार सबके लिए खुले हुए हैं। उनके पास बैठकर व्यक्ति को जो अनुपम आनंद, ज्ञान और सुकून। मिलता है वह उसे आजीवन भुला नहीं पाता है।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu ( हिंदू धर्म ) (12500)
Tantra ( तन्त्र ) (987)
Vedas ( वेद ) (705)
Ayurveda ( आयुर्वेद ) (1893)
Chaukhamba | चौखंबा (3352)
Jyotish ( ज्योतिष ) (1444)
Yoga ( योग ) (1093)
Ramayana ( रामायण ) (1390)
Gita Press ( गीता प्रेस ) (731)
Sahitya ( साहित्य ) (23054)
History ( इतिहास ) (8222)
Philosophy ( दर्शन ) (3384)
Santvani ( सन्त वाणी ) (2532)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist