प्रसाद समग्र: Jaishanker Prasad

FREE Delivery
Express Shipping
$17.60
$22
(20% off)
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Quantity
Delivery Ships in 1-3 days
Item Code: NZA672
Publisher: Uttar Pradesh Hindi Sansthan, Lucknow
Author: प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित: Dr. Surya Prasad Dixit
Language: Hindi
Edition: 2006
Pages: 215
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 210 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

प्रकाशकीय

हिन्दी साहित्य का अतीत हो या वर्तमान, इसकी उपलब्धियाँ गहरे प्रभावित करती हैं । उसका कोई भी क्षेत्र हो, लगभग सभी में स्तरीय लेखन का क्रम निरन्तर जारी रहा है । मानव कल्याण और उसकी निरन्तरता को समर्पित इस यज्ञ में अनेक महान साहित्यकारों ने अतुलनीय योगदान दिया है और उनका कृतित्व आज भी बहुत आदर से याद किया जाता है । प्रसाद जी इन्हीं में एक हैं । कविता हो या कहानी उपन्यास हो या निबन्ध और नाटक हर क्षेत्र में उन्होंने अपने विशिष्ट लेखन की छाप छोड़ी है । उनकी 'कामायनी' और आँसू जैसी कालजयी रचनाएँ हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं ।

प्रसाद जी के लेखन पर पुस्तकों की कमी नहीं है, पर कई बार लगता है कि उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को समेटने में यह रचनाएँ पूरी तरह सफल नही हो सकी हैं । ऐसे में उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व और लेखकीय उपलब्धियों को अभिव्यक्ति देती पुस्तक की आवश्यकता अभी भी बनी हुई है । इसकी पूर्ति यह रचना 'प्रसाद समग्र' काफी सीमा तक करती है । पिछले अनेक दशकों में प्रसाद विषयक जो शोध हुआ है, उससे उनकी कोई एक छवि स्पष्ट नहीं हो सकी है । इतना ही नहीं, हाल के समय में साहित्य के नये मापदण्ड भी निर्मित हुए हैं, इसलिए भी प्रसाद जी के सम्पूर्ण लेखन और चिंतन का पुनर्मूल्यांकन अनिवार्य था । प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने अपनी इस रचना 'प्रसाद समग्र' द्वारा काफी सीमा तक इस आवश्यकता की पूर्ति की है । डॉ. दीक्षित, प्रसाद साहित्य के अधिकारी अध्येता रहे हैं और अतीत में भी उन पर कई ग्रन्थ लिख चुके हैं । ऐसे में प्रसाद जी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को समर्पित यह विश्लेषण, तथ्यपूर्ण और वैशिष्ट्यपूर्ण है और इसे 'गागर में सागर' की श्रेणी में रखा जा सकता है। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान इस पुस्तक का प्रकाशन अपनी स्मृति संरक्षण योजना के अन्तर्गत कर रहा है ।

प्रसाद जी जैसे महान साहित्यकारों का लेखन कालातीत है और इस स्थिति में उसके सभी पक्षों की अभिव्यक्ति को समर्पित कोई भी रचना उपेक्षित नहीं रह सकती । ऐसे में मुझे विश्वास है कि हिन्दी साहित्य के सुधी पाठकों के बीच इस पुस्तक का व्यापक स्तर पर स्वागत होगा ।

निवेदन

व्यक्ति जब समष्टि से जुड़ता है और सम्पूर्ण परिवेश के साथ एकाकार हो जाता है, मानवीय मूल्य और संवेदनाएँ जब अभिव्यक्ति के लिए होठों पर आकर ठहर जाती हैं तो कविता जीवन्त हो उठती है। यह ऊँचाइयाँ और अभिव्यक्तियाँ जितनी निश्छल और स्वाभाविक होती हैं, कविता उतनी ही प्राणवान होती है । हिन्दी कवितापरम्परा इन ऊँचाइयों को छूने वाली अनेक विभूतियों से भरीपूरी है । तुलसी, सूर, कबीर व मीरा आदि से लेकर आधुनिक युग में निराला, महादेवी, पंत आदि के साथ इस यशस्वी परस्परा में स्वर्गीय जयशंकर प्रसाद जी का नाम बहुत आदर और आत्मीयता से लिया जाता है ।

उनके 'लहर' काव्यसंग्रह की ले चरन मुझे भुलावा देकर, मेरे नाविक धीरे धीरे जैसी पंक्तियाँ आज भी काव्य रसिकों को आह्लादित करती हैं । आँसू और 'कामायनी' तो इस महान कविव्यक्तित्व के सुमेरु हैं ही । उन्होंने गद्य भी बहुत स्तरीय लिखा और कहानी, उपन्यास, नाटक व निबन्ध क्षेत्र में अपनी प्रतिभा के असाधारण प्रतिमान स्थापित किए । 1910 से लेकर 1936 के बीच की लगभग एक चौथाई शताब्दी में उन्होंने इतना कुछ हिन्दी साहित्य को दिया (आठ काव्य संग्रह, नौ नाटक, तीन उपन्यास, पाँच कहानी संग्रहों में संग्रहीत साठ कहानियाँ और बारह निबन्ध) उसकी जितनी भी सराहना की जाय कम होगी ।

ऐसे महान चिन्तक, कवि और लेखक के समग्र और यशस्वी व्यक्तित्व को संक्षेप में समेटना भी कम दुष्कर कार्य नहीं था । इसे सम्भव किया है वरिष्ठ हिन्दी आलोचक और लेखक प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने जो इस क्षेत्र के अधिकारी विद्वान हैं । उन्होंने जिस आत्मीयता से साधिकार इस पुस्तक का प्रणयन किया है, उसके लिए आभार व्यक्त करना मेरे लिए औपचारिकता का निर्वाह भर नहीं है । आशा है कि विद्यार्थियों, शोधार्थियों के लिए ही नहीं, हिन्दी साहित्य विशेषकर प्रसाद साहित्य में अवगाहन की आकांक्षा रखने वाले साहित्यप्रेमी और मनीषियों के बीच भी यह पुस्तक अपनी मील स्तम्भ सरीखी प्रस्तुति के लिए पहचानी जायेगी ।

प्राक्कथन

आधुनिक हिन्दी साहित्य के गौरव महाकवि जयशंकर 'प्रसाद' के व्यक्तित्वकृतित्व से संबंधित शोध समीक्षाक्रथों के बाहुल्य के बावजूद मुझे इस गन्धप्रणयन की जो बाध्यता महसूस हुई, इसके दो मुख्य कारण रहे हैं । प्रथम, विगत तीन दशकों में साहित्य के जो नए मानमूल्य विकसित हुए हैं, उनके आलोक में मुझे 'प्रसाद' साहित्य का पुनर्मूल्यांकन अपरिहार्य लगा । इसी दृष्टि से मैंने प्रसाद की प्रासंगिकता का भरसक विमर्श किया है । यदि इन सूत्रों का ध्यान रखा जाएगा तो प्रसाद को खारिज कर देने की वाममार्गी अभिसंधि फलित नहीं हो पाएगी । जब तक 'प्रसाद' के साहित्य को ठीक से समझने का क्रम जारी रहेगा, तब तक 'हिन्दी संस्कृति' सुरक्षित रहेगी और हम साहित्येतर प्रदूषण एवं विरूपण से बचे रहेंगे, ऐसा मेरा दृढ़ मत है ।

दूसरे, मुझे लगा कि प्रसाद के गद्यपद्य को संक्षेप में, एकत्र, एक तारतम्य में भी व्याख्यायित किया जाना चाहिए, ताकि उनके साहित्यसर्वस्व का समग्रसारभूत प्रभाव पाठक पर पड़े । 'प्रसाद' विषयक अधिकांश समीक्षाएँ या तो उद्धरणी से बोझिल हैं या घुणाक्षर न्याय प्रेरित लक्फाजी से लथपथ । आवश्यकता है चितन, अनुचितन और बहुश: मंथन की । मैं लगभग पचास वर्षों से प्रसाद साहित्य के अध्यापन अन्वेषण से सघनतापूर्वक संबद्ध हूँ । मैंने पूर्व में 'प्रसाद का गद्य' प्रसाद साहित्य को अन्तश्चेतना आदि ग्रंथों तथा कई शोधपत्रों में जो इतस्तत: लिखा था, उसको समेकित रूप में एकस्थे कर देना यहाँ मुझे बेहतर महसूस हुआ । अब इसका अपेक्षाकृत ज्यादा उपयोग प्रतियोगिता परीक्षाओं से जुड़े प्रतियोगी कर सकते हैं ।

इस कृति में प्रसाद के संक्षिप्त जीवनवृत्त के साथ ही उनके कृतिमय व्यक्तित्व पर सविस्तार विचार किया गया है । मैंने पाँच स्वतंत्र अध्यायों में प्रसाद के काव्य रूपों (काव्य, नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध) का वस्तुशिल्प की दृष्टि से यथेष्ट आकलन किया है। इस विधापरक विवेचना के बाद प्रसादसाहित्य से जुडे विचारबिन्दुओं का विश्लेषण किया गया है, जैसेराष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना अध्यात्म दर्शन, प्रेमसौंदर्य, सामाजिक संचेतना, प्रकृति परिदृश्य, इतिहास बोध, वैश्विक चिन्तन, कामतत्व, सामरस्यआनंदवाद, नवमानवतावाद, कलासंचेतना और समग्र प्रदेय । मेरे पूर्व प्रकाशित आलेख संशोधनसंबर्द्धन पूर्वक इसमें समाहित हैं, इसलिए भाषिक प्रयोगों में सम्भव है, कुछ स्तर भेद दिखायी पड़े । हाँ, स्थापनाओं में कोई बडा अंतर नही आया है । मेरा यह अध्ययन पाठकेन्द्रित है । न किसी का खंडन, न मण्डन । मैंने 'प्रसाद' की प्रोक्तियों और उनके रूढ़ पदप्रयोगों की संगणना के माध्यम से समाज मनोभाषिकीऔर सांख्यिकीय सर्वेक्षण के सहारे, समानुपातिक निष्कर्ष निकालने का यत्न किया है, जौ एक स्वतंत्र समीक्षाप्रविधि है और जो मेरी दृष्टि में सर्वाधिक वस्तुनिष्ठ है । मेरी विनम्र धारणा है कि हिन्दी साहित्य में 'प्रसाद' जी ने पहली बार गद्यपद्य का और वस्तु तथा शिल्प का युगपत निर्वाह किया है ।

वस्तुत प्रसाद जी पद्यकार और गद्यकार दोनों रूपों में एक साथ हृदय और बुद्धि का समन्वय करते दिखते हैं । गरिष्ठ से गरिष्ठ विषयों को वे अपने शिल्प और भावबोध द्वारा रसस्निग्ध कर देते हैं। इसीलिए विश्लेषण के क्षेत्र में भी उनकी पद्धति रसग्राही रही है। उनका काव्य अर्थबोध की दृष्टि से जितना गूढार्थ व्यंजक है, उतना ही उनका गद्य ललित तथा सुबोध है । यही नहीं, यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाये तो उनकी काव्य कृतियों की अनेक शंकाओं के समाधान गद्य द्वारा मिल सकते हैं । पद्य में उन्हें व्याख्याता रूप में प्रकट होने का अवसर नहीं मिला, फलत: उनके जीवनदर्शन से सम्बंधित अनेक प्रश्न विवादास्पद या अनिर्णीत ही रह गए हैं । इन प्रश्नों के समाधान प्राय उनके गद्य में प्राप्त हो जाते हैं । अस्तु, हमें स्वीकार करना होगा कि यह गद्य साहित्य उनके काव्य का पूरक है ।

'प्रसाद' जी छायावाद के उन्नायक हैं । कविता के समानान्तर उनकी कहानियाँ उपन्यास और निबंध छायावादी काव्यबोध पर आधारित हैं। गद्यलेखन में वे निस्संदेह विशिष्ट स्थान के अधिकारी हैं ।

'प्रसाद'का गद्य यद्यपि छायावादी काव्य से प्रणोदित है, फिर भी उसमें छायावादी शिल्प के विपरीत अर्थ की बड़ी सुगमता है । उनके निबंधों में काव्य की अनेक समस्याओं का स्पष्टीकरण प्राप्त होता है । गद्य की इस स्पष्ट व्यंजना के कारण यहाँ कोई अर्थगोपन नहीं । उनका गद्य आद्योपांत काव्योपम है । प्रबंधों को छोड्कर, शेष उनकी सारी गद्यकृतियाँनाटक, कहानियाँ उपन्यास आदि रसपेशल हैं, अर्थात् कवित्व से चुहचुहा रही हैं । यदि यह सिद्ध कर दिया जाता कि उनके नाटकों में नाट्यतत्त्वों का अभाव है, उपन्यास में औपन्यासिकता नहीं है और कहानियों में ऐतिहासिक रोमांस के अतिरिक्त जीवन का प्रत्ययबोध नहीं है तो भी उनका यह गद्य इसी प्रकार समादृत होता । उनके नाटक अपने विशिष्ट गद्य शिल्प के कारण पाठ्यकाव्य के रूप में विलक्षण प्रभाव उत्पन्न करते हैं । उनके कथासाहित्य में कल्पना के साथ ही जीवन का तत्त्वबोध भी है । वह हमारी संवेदनाओं को संचरित करता है । उनके निबंधों की अर्थवत्ता हमें नयी दिशादृष्टि देती है । वस्तुत : 'प्रसाद' की ये कृतियाँ हिन्दी गद्य गरिमा की हेतु हैं ।

'प्रसाद' ने अपने निबंधों, प्राक्कथनों और टिप्पणियों में अपने काव्यादर्श का विवेचन किया है, अत उनके गद्य में प्रवेश किए बिना उनके व्यक्तित्व कृतित्त्व का समग्र विश्लेषण संभव नहीं है। उनके चिंतन सूत्रों का अवलोकन किए बिना उनकेकाव्य का सही तथ्योद्घाटन नहीं हो सकता। उन्होंने अनेक प्रसंगों में अपने भावों का गद्यीकरण किया है । कही कहीं स्वयं ही वे आत्मालोचन भी करते हैं । 'प्रसाद' जी ने हिन्दी के अनेक शिल्पों का प्रवर्त्तन किया है । हिन्दी नाट्यपरम्परा में 'प्रसाद'ने प्रतीकवादी रूपकों का प्रवर्त्तन किया है । एकांकी और समस्यानाटक के रचनातंत्र को परिपुष्ट और परिमार्जित करने का श्रेय भी 'प्रसाद'को है । नाटकों में 'इतिहास रस' को घटित करके उन्होंने राष्ट्रीय संस्कृति, रंग मीमांसा और काव्य की सुघरता का सम्यक् निर्वाह किया है । हिन्दी नाटकों के इस विकासक्रम में 'प्रसाद' का सर्वोच्च स्थान है । उपन्यास के क्षेत्र में 'प्रसाद' का विशिष्ट योगदान है । यथार्थवाद, व्यक्तिवाद और ऐतिहासिक रोमांस उनकी कृतियों में प्रथम बार इतने सशक्त रूप में व्यक्त हुए हैं । कहानी के अन्तर्गत भी इतिहास, रोमांस और सामाजिक चिन्तन का समाहार करने में वे सफल सिद्ध हुए हैं । निबंध और समीक्षा की विधा में उन्होंने साधिकार प्रवेश किया है । 'प्रसाद' का शास्त्रीय चिन्तन काफी मौलिक है । इस प्रकार साहित्य की कोई विधा उनसे अस्पृष्ट नहीं रही । अधिकांशत :उन्हें प्रवर्तन का श्रेय दिया गया है । विषयानुसार इनके गद्य में रसात्मक तरलता एवं वैचारिक गहनता है । प्रखर हास्य, व्यंग्य, सूक्ष्म पर्यवेक्षण, सजीव चित्रांकन और सघन अनुभूतियाँ उनके गद्य की विशेषताएँ हैं । प्रणयसौन्दर्य, राष्ट्रीय इतिहास, राष्ट्रीय संस्कृति, धर्म, अध्यात्म, विज्ञान, राजनीति आदि से सम्बंधित कोई भी पहलू इन कृतियों में अनुपलब्ध नहीं है । शिल्पतत्त्व, विचारतत्त्व, भाषा, शब्दावली सभी दृष्टियों से उनका गद्य सुदृढ़ है । अपने पूर्ववर्ती लेखकों से वे कुछ प्रेरित हुए हैं और उन्होंने अपने परवर्ती अनेक लेखकों को प्रभावित भी किया है । हिन्दी गद्यकाव्य की नींव प्रमुख रूप से उनके द्वारा ही स्थापित की गयी है । ऐसा सर्वांगीण विकास 'प्रसाद' के अतिरिक्त अन्य किसी साहित्यकार में उपलब्ध नहीं हो सकता । इस रचनावैशिष्ट्य के कारण उनके द्वारा प्रणीत अधिकांश गद्य को हम पृथक् रूप से 'छायावादी गद्य' की संज्ञा दे सकते हैं । यह गद्य वस्तुत: उनके काव्य से अविच्छन्न है । 'प्रसाद' पहले कवि हैं, फिर कुछ और । इसलिए उनकी गद्यकृतियों में प्राप्त कवित्व पृथक्त: विवेचनीय है ।

'प्रसाद' का काव्य सर्वाधिक गरिमा मण्डित है । उन्होंने इस क्षेत्र में अपना वैविध्य प्रदर्शित किया है । चित्राधार में ब्रजभाषा के पारंपरिक काव्य रूप, छन्दोविधान और भाषिक प्रयोग हैं । 'काननकुसुम' की कविताओं में नए वस्तुविधान एवं रचनातंत्र की खोज की गयी है । 'करुणालय' प्रेमपथिक तथा 'महाराणा का महत्त्व'में प्रबंध विधान का पूर्वाभ्यास किया गया है । 'आँसू' में मुक्तक तथा प्रबंध का मिलाजुला प्रयास है । यहाँ तक पहुँचते पहुँचते प्रसाद जी की अनुभूतियाँ पूर्णत: सजग और संवेदनाएँ सहजत: प्रगल्भ हो उठी थी । उनका काव्योत्कर्ष यहाँ पूरे परिमाण में प्रकट हुआ है । इसी के समानान्तर उनकी गीतिकला का विकास होता रहा । 'लहर' के गीतों में उनकी व्यंजनातिशयता का विकास हुआ है । फिर कामायनी, उनकीअन्तिम और अन्यतम काव्य कृति । कवित्व के साथसाथ 'प्रसाद' का जो 'विजन' इसमें व्यक्त हुआ है, उसने 'कविर्मनीषी' के सर्वोच्च आसन पर उन्हें प्रतिष्ठित कर दिया है ।

इस प्रकार 'प्रसाद' के सम्पूर्ण वाङ्मयविवेचन में केन्द्रित यह क्रीत उनके समग्र मूल्यांकन का एक उपक्रम है । इसका प्रकाशन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की 'स्मृति संरक्षण योजना' के अन्तर्गत किया जा रहा है, तदर्थ अधिकारियों को साधुवाद ।

विश्वास है प्रबुद्ध पाठक वर्ग शुद्ध बुद्धिपूर्वक इसे अपनाएगा ।

 

अन्तर्वस्तु

 
 

प्राक्कथन

1

 

प्रस्तावना प्रसाद की बहुमुखी प्रतिभा

4

 

प्रसाद जी का कृतिमय व्यक्तित्व

 
 

प्रसाद का काव्य

 
 

सृजन के सप्त सोपान

15

 

प्रेम विरह काव्य आँसू

16

 

'कामायनी' महाकाव्य

28

 

काव्य सौष्ठव

40

 

प्रसाद के नाटक

49

 

प्रारंभिक नाट्य कृतियाँ

50

 

प्रतीकात्मक नाटक 'कामना'

52

 

एकांकी नाटक 'एकघूँट'

54

 

प्रौढ़ ऐतिहासिक नाट्य कृतियों अजातशत्रु, स्कन्दगुप्त,चन्द्रगुप्त

55

 

समस्या नाटक 'ध्रुवस्वामिनी'

56

 

रचनातंत्र कथानक, पात्र, कथोपकथन, रस परिपाक, देशकाल, अंक दृश्य योजना, रंगमंचीयता, नाट्य भाषा, अन्तर्द्वन्द्व, कवित्व ।

56

 

प्रसाद के उपन्यास कंकाल, तितली, इरावती ।

68

 

रचनातंत्र वस्तु विधान, चरित्र चित्रण, उद्देश्य, देशकाल, शिल्पविधि, संवाद, कवित्व, चित्रणकला ।

72

 

प्रसाद की कहानियाँ

80

 

प्रारम्भिक आख्यायिकाएँ (चित्राधार)

83

 

प्रयोगपरक कहानियाँ (क)छाया (ख)प्रतिध्वनि

84

 

कथ्य एवं शिल्प

88

 

उत्कर्ष कालीन कहानियाँ (आकाशदीप, इन्द्रजाल, आँधी)कथावस्तु चरित्र चित्रण, कथोपकथन, वातावरण, कथाभाषा ।

92

 

प्रसाद के निबन्ध

97

 

आरम्भिक निबन्ध

98

 

स्फुट निबन्ध

99

 

काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध

101

 

चिन्तन के विविध आयाम

 

1

प्रणय भावना

102

2

सौन्दर्य बोध

118

3

प्रकृति प्रेम

124

4

राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना

133

5

वैश्विक बोध

140

6

युग युगीन चिन्तन

147

7

सामाजिक संचेतना

158

8

नारी भावना

169

9

मानवीय मूल्यबोध

177

10

वेदनानुभूति

181

11

फन्तासी और यूतोपियन मनोभूमि

183

12

दर्शन दिग्दर्शन

189

 

समाहार प्रसाद की प्रासंगिकता

197

 

 

 

 

 

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at [email protected]
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through [email protected].
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories