पुस्तक के विषय में
हिन्दी के मूर्धन्य उपन्यासकार जैनेन्द्र कुमार ने जयशंकर प्रसाद की प्रशंसा हमारे साहित्य के पहले महान् स्वतंत्रचेता के रूप में की है। प्रसाद का दर्शन भारतीय इतिहास-प्रवाह में अर्जित, गँवाई गई तथा फिर से प्राप्त नैतिक तथा सौन्दर्यात्मक, व्यावहारिक तथा रहस्यात्मक, अंतर्दृष्टियों का समन्वयन करने का साहसिक प्रयास है। उनकी कविकल्पना सदैव उनके निजी जीवन-अनुभवों तथा अन्वीक्षणों से संयमित तथा संचरित रही। उनका कथा साहित्य तथा नाट्य साहित्य अपने सारे रूमानी तथा रहस्यात्मक वातावरण के बावजूद गहरे मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद की नींव पर खड़ा है।
कवि-नाटककार उपन्यासकार तथा कहानी लेखक जयंशंकर प्रसाद पर लिखे गए प्रस्तुत विनिबंध में हिन्दी के विख्यात आलोचक, चिन्तक तथा उपन्यासकार रमेशचन्द्र शाह ने प्रसाद को उनके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखा है, जीवन वृत्तांत प्रस्तुत किया है तथा पाठक को उनके पूरे कृतित्व के गहनतर मूल्यांकन की ओर प्रेरित किया है।
क्रम
1
युग
9
2
व्यक्तित्व
19
3
'कानन-कुसुम' और 'झरना'
25
4
छायावाद प्रसाद अपने सहवर्त्तियों के बीच
31
5
'आँसू' की प्रयोगशाला
37
6
इतिहास के सबक
43
7
औपन्यासिक शल्य-किया
54
8
एक गीति-अन्तराल
64
'कामायनी' : एक संश्लेषण
70
10
उपसंहार
87
परिशिष्ट
अ : प्रसादजी के प्रकाशित ग्रन्थों की सूची
93
ब : सहायक सामग्री
95
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