पुस्तक के विषय में
जेठमल परसराम सिन्धी गद्य के महान लेखक थे । अनुमानत: उन्होंने आधी शताब्दी सिन्धी साहित्य-सृजन तथा उसे सँवारने में व्यतीत की थी । उन्होंने अपनी मौलिक रचनाओं के प्रस्तुतीकरण के साथ-साथ कई ख्यातिप्राप्त लेखकों और कवियों के ग्रंथों के संक्षिप्त अनुवाद सरल एवं परिष्कृत सिन्धी में करके सिन्धी साहित्य को समृद्ध किया ।
प्रो. जेठमल ने न केवल अपनी पुस्तकों का प्रकाशन करवाया अपितु अन्य लेखकों को भी लिखने के लिए उत्साहित किया और उनकी पुस्तकें प्रकाशित करवाईं । ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि वह सिन्धी साहित्य रूपी भवन की नींव के पत्थर थे । बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में वह साहित्य, राजनीति तथा सामाजिक क्षेत्र में प्रकाशमान तारे समान थे ।
प्रो. जेठमल सिन्धी के आरम्भिक साहित्यकार तो थे ही किन्तु उसके साथ ही वह समाज-सुधारक हिन्द्-मुस्लिम एकता के पक्षधर, सेवा तथा बलिदान की मूर्ति, सिन्धियत के प्रचारक तथा सबसे बढ़कर मनुष्यता के धनी थे । वह श्रेष्ठ रहन-सहनवाले सच्चे मानव थे । उन जैसे चरित्रवान व्यक्ति बहुत कम ही हुए हैं ।
इस पुस्तक के लेखक श्री दीपचन्द्र बेलाणी एक वयोवृद्ध साहित्यकार हैं । आपने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग-लेने के साथ-साथ निबन्धकारिता, पत्रकारिता, कविता तथा कहानियों की अनेक पुस्तकें लिखी हैं । आपने वेद, गीता, लोक-कथाएँ, महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू पर भी पुस्तकें लिखी हैं तथा कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं ।
भूमिका
श्री जेठमल परसराम सिन्धी गद्य के महान लेखक थे । उन्होंने अनुमानत: अर्ध शताब्दी साहित्य से सम्बन्धित पत्रकारिता और साहित्य-सृजन में व्यतीत की थी । उन्होंने न केवल मौलिक रचनाओं का सृजन किया अपितु कई प्रसिद्ध लेखकों और कवियों के ग्रंथों का संक्षिप्त अनुवाद भी सरल एवं सुपक्व सिन्धी में किया ।
श्री जेठमल यश के भागी हैं, जो उन्होंने केवल अपनी पुस्तकों का ही प्रकाशन नहीं करवाया अपितु अन्य लेखकों को भी लिखने कै लिए उकसाया और उनकी रचनाएँ भी प्रकाशित कर सिन्धी साहित्य को समृद्ध किया ।
मैंने युवावस्था में पदार्पण किया, तब से ही उनके समाचार-पत्र तथा पुस्तकें चाव से पढ़ता था । उन्हें कई बार देखा और सुना भी था । उनका व्यक्तित्व भव्य था । तिस पर उनके भाषण भी प्रेरक और तर्कसंगत हुआ करते थे, जो सुनने वालों को बहुत आकर्षित करते थे ।
श्री जेठमल की कई पुस्तकें इस समय अनुपलब्ध हैं । उनकी कुछ पुस्तकें मैं सिन्ध से अपने साथ लाया था, कुछ मैंने सुधार सभा अजमेर के हरिसुन्दर बालिका हायर सैकेन्डरी स्कूल के पुस्तकालय से प्राप्त कीं । कुछ पुस्तकों के अध्ययननार्थ मुझे विशेषरूप से मुम्बई भी जाना पड़ा। मैं आभारी हूँ अपने मित्र श्री मोतीराम रामवाणी का, जिन्होंने श्री जेठमल की कई पुस्तकें मेरे सुपुर्द कर दीं तथा उनके 'सिन्धु' रात्रिका में प्रकाशित कुछ निबन्ध भी मुझे दिए । कमला हाई स्कूल से 'तुरंग जो तीर्थ' (करागार का तीर्थ) पुस्तक अवलोकनार्थ मिली ।
मैं उन सभी लेखकों का भी आभारी हूँ जिनके उद्धरण मैंने इस पुस्तक में प्रस्तुत किए हैं । मैंने जानबूझ कर श्री जेठमल के विभिन्न पहलुओं पर अन्य प्रसिद्ध लेखकों के विचार भी प्रस्तुत किए हैं, ताकि पाठक अनुभव कर सकें कि अन्य लेखक उनके विषय में क्या कहते हैं । मैंने श्री जेठमल की कई रचनाओं से कई उद्धरण तथा लेख ज्यों के त्यों दिए हैं, ताकि पाठक भी उनकी लेखनी का स्वाद ले सकें तथा उनकी सही-सही पहचान करें ।
अनुक्रम
1
नींव का पत्थर
9
2
भव्य व्यक्तित्व
13
3
जीवन पर दृष्टि
17
4
साहित्य साधना
26
5
आलोचना
31
6
पत्रकारिता-साहित्य की संवाहिका
37
7
मौलिक रचनाएँ
41
8
अनुवाद
79
विविध निबंध
86
10
विचारधारा और प्रत्याशा
99
11
श्री जेठमल की चुनी हुई रचनाएँ
103
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