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कहानी एक बनवासिनी की- Kahani Ek Banvasini Ki: Story Collection (An Old and Rare Book)

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Item Code: HAF159
Author: M.P. Kamal
Publisher: Manav Utthan Sewa Samiti, Delhi
Language: Hindi
Pages: 223
Cover: PAPERBACK
Other Details 6x4 inch
Weight 130 gm
Fully insured
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100% Made in India
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23 years in business
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Book Description

प्रकाशकीय

माता सीता के नाम से हम सभी परिचित हैं। परन्तु माँ सीता के 'वनवास' का जो प्रसंग है, उस पर हर युग में लेखकों, विद्वानों और विवेकी पाठकों ने तरह-तरह के प्रश्न चिन्ह लगाये हैं। इन प्रश्नों के उत्तर हमें किसी ग्रंथ में ठीक से नहीं मिले।

हमारी प्रकाशनमाला के चतुर्थ दीप कहानी एक वनवासिनी की-में लेखक ने हर युग में उठे हर प्रश्न को ध्यान में रखते हुए सरल एवं सुबोध ढंग से इनके उत्तर देने का प्रयास किया है। कथात्मक शैली में लिखित इस पुस्तक की कहानी यद्यपि नई नहीं है, परन्तु उसका वैचारिक धरातल एवं रचना शैली पारंपरिक लेखन से भिन्न है। राम की महानता, उदारता और मर्यादा पालन की असाधारणता भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। हम इस पर गर्व ही नहीं करते, अपितु अपने जीवन के उच्चतम आदर्शों में स्थान देते हैं और पूरा प्रयास करते हैं कि ये संस्कार हमारी अगली पीढी को मिलें। भगवान का रूप माने जाने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम पर प्रायः यह लांछन लगाया जाता है कि एक साधारण नागरिक की टिप्पणी पर उनका मन सीता से हट गया था और उन्होंने अपनी परम प्रिय पत्नी को वनवास दे दिया था, वह भी ऐसे समय में जब वे माँ बनने वाली थीं।

पुस्तक के लेखक ने भारतीय जन-मानस में उथल-पुथल मचाने वाले इस लांछन को केन्द्र में रखकर ही इस पुस्तक की रचना की है और अपनी सशक्त लेखनी से साबित कर दिया है कि यह लांछन निराधार है। भारत की नारियों में शीर्ष स्थान पाने वाली सीता के चरित्र पर संदेह का कोई बीज मर्यादा पुरुषोत्तम के मन में नहीं था, न ही वे इतने सत्तालोलुप और स्वार्थी थे कि उन्होंने अपने राज-पद को सुरक्षित रखने के लिए पत्नी को घर से निकाला। ऐसे तमाम प्रश्नों के विवेकपूर्ण एवं तर्कसंगत समाधान के लिए इस पुस्तक को अवश्य पढ़ना पड़ेगा। मुझे विश्वास है कि 'चरित्र निर्माण दीपमाला' का यह चतुर्थ दीप निश्चय ही हमारे सोच के गलियारों से अज्ञान एवं अंधविश्वासों के अंधियारों को हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त कर देगा।

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