प्राक्कथन
नवीन मानव-समाज के विधाता कार्ल मार्क्स के जीवन और सिद्धान्तों के संबंध में हिन्दी मे छोटी-मोटी पुस्तकों का बिल्कुल अभाव नही है लेकिन जिसमें पर्याप्त रूप से मार्क्स की जीवनी, सिद्धान्त और प्रयोग मौजूद हों, ऐसी पुस्तक का अभाव जरूर खटक रहा था, केवल इसी की पूर्ति के लिए यह पुस्तक लिखी गई । यह मेरिंग की पुस्तक '' कार्ल मार्क्स '' पर आधारित है, इसके अतिरिक्त कुछ और पुस्तकों से भी मैंने सहायता ली है । मुझे सन्तोष होगा, यदि इस प्रयास से मार्क्स को समझने में हिन्दी पाठकों को सहायता मिले । यह पुस्तक उन चार जीवनियों ' में है, जिनको मैंने इस साल (1953 ई० में) लिखने का संकल्प किया था । ''स्तालिन'' ''लेनिन'' और '' कार्ल मार्क्स '' के समाप्त करने के बाद अब चौथी पुस्तक '' माओ-चे तुंग ''ही बाकी थी, जिसे जुलाई में समाप्त कर दिया । लिखने में डॉ० महादेव साहा, साथी रमेश सिनहा और साथी सच्चिदानन्द शर्मा ने पुस्तकों के जुटाने में बड़ी मेहनत की । श्री मंगलसिंह परियार ने टाइप करके काम को हल्का किया, एतदर्थ इन सभी भाइयों का आभार मानते हुए धन्यवाद देता हूँ । प्रकाशकीय
हिन्दी साहित्य में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नाम इतिहास-
प्रसिद्ध और अमर विभूतियों में गिना जाता है । राहुल जी की जन्मतिथि 9 अप्रैल, 1893 और मृत्युतिथि 14 अप्रैल,
1963 है । राहुल जी का बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे था । बौद्ध दर्शन से इतना प्रभावित हुए कि स्वय बौद्ध हो गये ।'राहुल' नाम तो बाद मैं पड़ा-
बौद्ध हो जाने के बाद । 'साकत्य' गोत्रीय होने के कारण उन्हें राहुल सास्मायन कहा जाने लगा ।
राहुल जी का समूचा जीवन घूमक्कड़ी का था । भिन्न-भिन्न भाषा साहित्य एव प्राचीन संस्कृत-पाली-प्राकृत-अपभ्रंश आदि भाषाओं का अनवरत अध्ययन-मनन करने का अपूर्व वैशिष्ट्य उनमें था । प्राचीन और नवीन साहित्य-दृष्टि की जितनी पकड और गहरी पैठ राहुल जी की थी-
ऐसा योग कम ही देखने को मिलता है । घुमक्कड जीवन के मूल में अध्ययन की प्रवृत्ति ही सर्वोपरि रही । राहुल जी के साहित्यिक जीवन की शुरुआत सन् 1927 में होती है । वास्तविक्ता यह है कि जिस प्रकार उनके पाँव नही रुके, उसी प्रकार उनकी लेखनी भी निरन्तर चलती रही । विभिन्न विषयों पर उन्होने 150 से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया हैं । अब तक उनक 130 से भी अधिक ग्रंथ प्रकाशित हौ चुके है । लेखा, निबन्धों एव भाषणों की गणना एक मुश्किल काम है ।
राहुल जी के साहित्य के विविध पक्षी का देखने से ज्ञात होता है कि उनकी पैठ न केवल प्राचीन-नवीन भारतीय साहित्य में थी, अपितु तिब्बती, सिंहली, अग्रेजी, चीनी, रूसी, जापानी आदि भाषाओं की जानकारी करते हुए तत्तत् साहित्य को भी उन्होंने मथ डाला। राहुल जी जब जिसके सम्पर्क मे गये, उसकी पूरी जानकारी हासिल की । जब वे साम्यवाद के क्षेत्र में गये, तो कार्ल मार्क्स लेनिन, स्तालिन आदि के राजनातिक दर्शन की पूरी जानकारी प्राप्त की । यही कारण है कि उनके साहित्य में जनता, जनता का राज्य और मेहनतकश मजदूरों का स्वर प्रबल और प्रधान है।
राहुल जी बहुमुखी प्रतिभा-
सम्पन्न विचारक हैं । धर्म, दर्शन, लोकसाहित्य, यात्रासाहित्य इतिहास, राजनीति, जीवनी, कोश, प्राचीन तालपोथियो का सम्पादन आदि विविध सत्रों मे स्तुत्य कार्य किया है। राहुल जी ने प्राचीन के खण्डहरों गे गणतंत्रीय प्रणाली की खोज की । सिंह सेनापति जैसी कुछ कृतियों मैं उनकी यह अन्वेषी वृत्ति देखी जा सकती है । उनकी रचनाओं मे प्राचीन के प्रति आस्था, इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है । यह केवल राहुल जी जिहोंने प्राचीन और वर्तमान भारतीय साहित्य-चिन्तन को समग्रत आत्मसात् कर हमे मौलिक दृष्टि देने का निरन्तर प्रयास किया है । चाहे साम्यवादी साहित्य हो या बौद्ध दर्शन, इतिहास-सम्मत उपन्यास हो या 'वोल्गा से गंगा की कहानियाँ-हर जगह राहुल जा की चिन्तक वृत्ति और अन्वेषी सूक्ष्म दृष्टि का प्रमाण गिनता जाता है । उनके उपन्यास और कहानियाँ बिलकुल एक नये दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते हैं।
समग्रत: यह कहा जा सक्ता है कि राहुल जी न केवल हिन्दी साहित्य अपितु समूल भारतीय वाङमय के एक ऐसे महारथी है जिन्होंने प्राचीन और नवीन, पौर्वात्य एवं पाश्चात्य, दर्शन स्वं राजनीति और जीवन के उन अछूते तथ्यों पर प्रकाश डाला है जिन पर साधारणत: लोगों की दृष्टि नहीं गई थी । सर्वहारा के प्रति विशेष मोह होने के कारण अपनी साम्यवादी कृतियों में किसानों, मजदूरों और मेहनतकश लोगों की बराबर हिमायत करते दीखते है ।
विषय के अनुसार राहुल जी की भाषा-
शैली अपना स्वरुप निधारित करती है । उन्होंने सामान्यत: सीधी-सादी सरल शैली का ही सहारा लिया है जिससे उनका सम्पूर्ण साहित्य विशेषकर कथा-साहित्य-साधारण पाठकों के लिए भी पठनीय और सुबोध है।
कार्ल मार्क्स का नाम आधुनिक कालीन सिगमंड फ्रॉयड और अलबर्ट, आइंस्टीन जैसे शीर्षस्थ युग-प्रवर्तक विचारकों की तालिका मे अग्रगण्य है । निश्चय ही फ्रॉयड ने विज्ञान के क्षेत्र में हलचल मचा दी और आइंस्टीन ने परंपरागत चिन्ता-धारा कौ नया मोड़ दिया जिसने चिन्ता-धारा को एक नई गति एवं दिशा दी । विचार-जगत में एक्? नए अध्याय का राजन किया । परन्तु इनमें से अकेला मार्क्स ही अपने ढंग का ऐसा विचारक है जिसने न केवल मानव-इतिहास की नई आर्थिक व्याख्या प्रस्तुत की अपितु जन मानस को भी आन्दोलित कर क्रान्ति उत्पन्न कर दी । यहाँ तक कि उरूके समर्थक या अनुयायी ही नही, उसके विरोधी तथा प्रतिद्वन्दी तक उसकी उपेक्षा न कर सके । उसकी विस्फोटक विचार-धारा ने विरोधी खेमे को मी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया । ईस युग में इतना अधिक प्रभाव उत्पत्र करने कला यदि दुर्लभ नही तो विरल अवश्य है।
राहुल सांकृत्यायन जैसे अधिकारी विद्वान् ने इस जीवनी द्वारा मार्क्स जैसे मनीषी के जीवन पर जीवंत प्रकाश डाला है । इसीलिए यह पुस्तक इतनी लोकप्रिय हुई है कि अब तक इसके कई संस्करण हो चुके ।हमारा विश्वास है कि राहुल जी के अन्य गन्धों की भाँति इस. पुस्तक की माँग भी बढ़ती ही जाएगी ।
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