योगिराज परम संत सद्गुरुदेव श्री हंस जी महाराज आध्यात्मिक जगत् की एक ऐसी विलक्षण विभूति थे कि जो भी उनके चरणों में लगा उसके अंतर में आध्यात्मिक चेतना का संचरण हुए बिना नहीं रहा। उनके सम्पर्क में आने वाले भक्तों व शिष्यों ने उन्हें एक अनूठा महान्पुरुष पाया। सभी उनके आकर्षक और महान् व्यक्तित्व से प्रभावित थे। श्री माँ उनकी धर्म-पत्नी होने के नाते स्वाभाविक ही भक्त एवं संत समाज में श्रद्धा और आदर की पात्र थीं। गुरु माता का स्थान भारतीय संस्कृति में गुरु के समकक्ष ही आदर और सम्मान का स्थान माना जाता है। किन्तु श्री माँ के स्वयं के व्यक्तित्व में भी कछ बहुत ही अद्भुत विशिष्टतायें विद्यमान थीं जो श्री महाराज जी के समय में सर्व साधारण के सम्मुख नहीं आई थीं। केवल गिने चुने संत और सेवक ही उनकी महानता और शक्तिमत्ता के रहस्य से अवगत थे। १९६६ में सद्गुरुदेव श्री हंस जी महाराज के महाप्रयाण के अनंतर उनका जो रूप प्रगट हुआ उसने बड़े-बड़ों को आश्चर्य चकित कर दिया और भक्त समाज तो ऐसा भाव-विभोर हुआ कि जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। श्री माँ की स्नेहपूर्ण छाया और कुशल मार्गदर्शन ने न केबल सद्गुदेव श्री हंस जी महाराज के वियोगजन्य दुःख को भुला दिया बल्कि प्रेमी भक्तों में ऐसे उत्साह और ऐसी शक्ति को जागृत किया कि वे पहले की अपेक्षा कहीं अधिक तीव्र गति से आगे बढ़ चले और देखते-देखते देश-विदेश में सर्वत्र श्री महाराज जी के ज्ञान की धूम मच गई। शीघ्र ही ऐसा लगा मानो संपूर्ण विश्व ही माँ के वात्सल्य एवं करुणामय स्नेह को पाने के लिये लालायित और अधीर हो उठा हो और संसार के कोने-कोने से श्री माँ को अपने यहाँ बुलाने की पुकार आने लगी। प्रेमियों ने स्वतः ही श्री माँ को परमाराध्या जगत् जननी श्री माँ की संज्ञा दी और यह सर्वथा उचित भी था क्योंकि वास्तव में संपूर्ण जगत् ही माँ के प्यार की परिधि के भीतर समाहित होता जा रहा था। तब से अब तक श्री माँ मानव आत्मा के उद्धार और उत्थान हेतु निरंतर जिस प्रकार से अथक प्रयास कर रही हैं और मार्ग में आने वाले विरोधों, अवरोधों और झंझावातों से जिस साहस के साथ जूझती हुई आगे बढ़ रही हैं वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। बालक, वृद्ध अथवा युवा, स्त्री या पुरुष जो भी उनके संपर्क में एक बार भी आ जाता है वह ऐसा स्नेह और प्यार पाता है कि गद्गद् हो उठता है। उसे बह अमूल्य निधि प्राप्त होती है जो जीवन में कहीं नसीब नहीं हुई थी। श्री माँ इस जगत् की नहीं, किसी अद्भुत लोक की ऐसी विभूति लगती हैं जिनका हृदय असीम करुणा, अपार स्नेह और निश्छल प्रेम से ओत-प्रोत है।
उन महिमामयी श्री माँ के कार्य-कलापों एवं जीवन के घटना चक्रों को पुस्तक का रूप देना यद्यपि संभव नहीं है, तथापि सर्वे साधारण एवं जिज्ञासु जनों की बहुत दिनों से चली आ रही आकांक्षा और माँग को पूरा करने हेतु कुछ एक तथ्यों को इस पुस्तिका में संग्रहीत किया जा रहा है। ये तथ्य श्री माँ के निकट संपर्क में रहने वाले संत-महात्माओं, सेवकों व शिष्यों द्वारा समय-समय पर प्रकाश में आते रहे हैं। आशा है इस पुस्तक के माध्यम से वृहत्तर जन-समाज अध्यात्म जगत् की इस युग में वर्तमान ऐसी करुणा पूर्ण माँ की महिमा से अवगत हो, उनका सामीप्य और सान्निध्य प्राप्त कर अपने को कृतार्थ करने में सफल होगा।
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