लेखिका के बारे में
डोगरी की लोकप्रिय सुप्रसिद्ध कवयित्री और हिंदी की लेखिका पद्य सचदेव का जन्म 1940 ई. में हुआ। पद्य सचदेव की कविताएँ और गद्य डोगरी और हिंदी में समान रूप से लोकप्रिय हैं। उन्होंने आकाशवाणी में उद्यघोषक और समाचार वाचक के रूप में कार्य किया। पद्ममा सचदेव ने कविताएँ डोगरी में लिखी हैं। जबकि अधिकांश गद्य हिंदी में। उनका मानना है कि कविता का संबंध हृदय से है, जिसे सिर्फ अपनी मातृभाषा में अभिव्यक्त किया जा सकता है। उन्होंने उपन्यास, यात्रा वृत्तांत, संस्मरण, कहानी, लघुकथाएँ आदि हरेक विधाओं में रचना की है। उनकी कुछ कहानियों पर धारावाहिक एवं लघु फिल्मों का भी निर्माण हुआ है। उनके कई हिंदी और डोगरी गीतों का प्रयोग व्यावसायिक सिनेमा में हुआ है। लता मंगेशकर ने उनके डोगरी के गीत भी गाए हैं।
पद्ममा जी को डोगरी कविता के लिए 1971 ई. में साहित्य अकादेमी अवार्ड से नवाजा गया। राष्ट्रपति द्वारा 'पद्ममाश्री' एवं मध्यप्रदेश सरकार का 'कबीर सम्मान' सहित उन्हें अब तक दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण सम्मान और पुरस्कार मिल चुके हैं। डोगरी में उनकी अब तक नौ कविता संग्रह तथा दो गद्य पुस्तकें प्रकाशित हैं साथ ही हिंदी में सोलह पुस्तकें तथा उर्दू में एक पुस्तकें प्रकाशित हैं। इसके अलावा विभिन्न भारतीय भाषाओं में उनकी रचनाएँ अनूदित तथा चर्चित हो चुकी हैं। उन्होंने विभिन्न भारतीय भाषाओं का डोगरी में अनुवाद तथा डोगरी का भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया है।
प्रकाशकीय
साहित्य की कोई सीमा नहीं होती । वह देश, काल और परिवेश लाँघकर सर्वकालिक होता है । साहित्य मानवनिर्मित भौगोलिक सीमाओं का अतिक्रमण करता है क्योंकि उसका उद्देश्य मनुष्य का हित तथा मनुष्यता की रक्षा है ।
कभी लाहौर अखंड भारत का साहित्यिक केंद्र हुआ करता था, लेकिन भारत-पाकिस्तान के बँटवारे ने न सिर्फ दो देशों को जन्म दिया बल्कि उसे एक-दूसरे का कट्टर दुश्मन भी बना दिया । राष्ट्रीयता और सांप्रदायिकता के ज्वार में दोनों देशों के राजनीतिज्ञ कई बार आपस में युद्ध कर चुके हैं या युद्ध जैसी स्थिति बनाए रखना चाहते हैं । परंतु इस सबसे अलग भारत तथा पाकिस्तान के बीच साहित्यिक तथा सांस्कृतिक एकता की कड़ी कभी नहीं टूटी । आज भी प्रेमचंद जितने पाकिस्तान के हैं उतने ही फैज अहमद फ़ेज हिंदुस्तान के हैं । कभी पाकिस्तानी शायरों की शायरी को हिंदुस्तानी गायक अपने सुरों में ढालते हैं तो कभी हिंदुस्तानी शायरों की शायरी को पाकिस्तान के गायक अपने सुरों में पिरोते हैं ।
इने इन्शा एक ऐसे ही शायर हुए जो पाकिस्तान के होते हुए भी हिंदुस्तानी पाठकों के दिलों में बसे रहे । इस पुस्तक में डोगरी की प्रसिद्ध लेखिका पद्य सचदेव के द्वारा इब्ने इन्शा का आत्मीय स्मरण किया गया है। पद्य सचदेव की माधुर्यपूर्ण आत्मीय भाषा शैली से डोगरी ही नहीं हिंदी सहित तमाम भारतीय भाषाओं के पाठक भली- भाति परिचित हैं ।
यह पुस्तक रेखाचित्र, संस्मरण और यात्रावृत्त का अनुपम संगम है । साथ ही दूसरे खंड में इब्ने इन्द्रा। की चुनी हुई कविताएँ रखी गई हैं जो हिंदी के नए पाठकों को इन्शा से दोस्ती कराएगी । कारयत्री और भावयत्री प्रतिभा से संपृक्त यह पुस्तक हर पाठक को पसंद आएगी ।
अनुक्रम
खंड-एक
1
आखिरी बैठक
13
2
कराची
18
3
एक दिन उर्दू के तालिब-इल्मों के साथ
25
4
वो दुकान अपनी बढ़ा गए
30
5
चीन में औरतें नहीं होतीं
37
6
ज़रा दीवार-ए-चीन तक
41
7
चलते हो तो चीन को चलिए
48
8
कुछ चीन के अलादीनों और जिन्नों के बारे में
49
9
दोहान चलो दोहान चलो
54
10
तेरी गठड़ी को लागा चोर रे
60
11
आवारागर्द की डायरी
65
12
कि अहले दर्द को पंजाबियों ने लूट लिया
71
गुलफ़ाम को मिल गई सब्ज़ परी
75
14
हकीमजी लंदन भी पहुँच गए
80
15
एक सफ़रनामा जो कहीं का भी नहीं है
84
16
रेलवे-कौन सी रेलवे?
88
17
शब जाए के मन बूदम
93
हाँ, क़ाबुल में गधे होते हैं
97
19
ज़ेब कटवाने के लिए होटल से बाहर जाने की ज़रूरत नहीं
102
20
हमने बारह सौ रुपए का खाना खाया
107
21
तमाशा गुज़री का
113
22
हाय रामा, हम कहाँ आ गए
117
23
उस्ताद मरहूम
121
24
ज़रूरत है एक गधे की
134
अब घोड़ों की ज़रूरत है
136
26
ज़िक्र हज़रत मरीज़ुलमिल्लत का
139
27
छ अकाउंट स्विट्ज़रलैंड में
144
28
फैज और मैं
149
29
खाना हमारा सेब
155
ख़ुत्बाए सदारत हज़रत इस्ने इन्शा
158
खंड-दो
31
इन्शा जी बहुत दिन बीत चुके
167
32
फ़र्ज़ करो
173
33
घूम रहा है पीत का प्यासा
175
34
दरवाज़ा खुला रखना
177
35
साँझ भये चौदेस
179
36
हम तो उन्हीं के
182
इन्शा जी है नाम इन्हीं का
183
38
जी का बहलाना
185
39
इक बस्ती के इक कूचे में
187
40
ग़ज़ल- 1
190
ग़ज़ल- 2
192
42
ग़ज़ल- 3
193
43
कभी उनके मिलन
194
44
उस आँगन का चाँद
197
45
लब पर नाम किसी का भी हो
200
46
फिर शाम हुई
202
47
एक पत्ता इक जोगी
204
आती है पवन जाती है पवन
206
ऐ सूरज की दोशीजाँ किरण
208
50
ये कौन आया
210
51
कबित्त
211
52
पत्र
213
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