डॉ. शुक्ल ने विश्वविख्यात फार्मास्युटिकल कंपनी ल्युपिन लिमिटेड, मण्डीदीप, भोपाल के मानव संसाधन विभाग में वरिष्ठ प्रबंधक-औद्योगिक सम्बन्ध के पद पर रहकर लगभग 34 वर्ष तक सक्रिय योगदान दिया है।
डॉ. शुक्ल ने भारतीय प्रबंधन संस्थान (अहमदाबाद) द्वारा संचालित प्रबंधन विकास के विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेकर मानव संसाधन विकास/प्रबंधन के क्षेत्र में विशेष योग्यता अर्जित की है। उन्होंने जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (XLRI) के मानव संसाधन सम्मेलन में भी भाग लिया है।
उनकी साहित्य एवं लेखन में स्कूली शिक्षा के आरंभ से ही गहरी रुचि है। इनकी कविताएँ एवं लेख विभिन्न समाचार-पत्रों में प्रकाशित हुए हैं।
साहित्य के क्षेत्र में उनकी पहली पुस्तक नौ-रस (कविता संग्रह) जनवरी, 2023 में प्रकाशित हुई है।
माँ, अकेला, धर्मयुद्ध, गीत अधूरा रह जाएगा, दस्तक, विभ्रम, मुरलीधर-अब आ जाओ, स्पन्दन, स्त्री, लड़ो, सुरेखा, सत्यमेव जयते?, बचा नहीं कोई अब, मुर्दों का गाँव, पत्रकारिता, युवाशक्ति, प्रेम-पत्र, तान्त्रिक, कोढ़, झूठ की दुकान, भवसागर, हे प्रभु, मुखौटा, प्रपंची, बदहाल गाँव, तो क्या हुआ, सांध्य बेला, भेड़ियों को मारना पड़ेगा, डरो नहीं, रिश्ता, वेश्या, आपकी मर्जी आदि रचनाओं का संकलन है बाक़ी है'।
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