'मधुराष्टकम्' महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा रचित अत्यन्त लोकप्रिय एवं आनन्द देने वाला स्तोत्र है। इसमें भगवान् श्रीकृष्ण का जो प्रेम है, आकर्षण है, माधुर्य है वह हमें अपनी ओर खींचता है। यह अत्यन्त मधुर रचना है।
'मधुराधिपते अखिलं मधुरम्' भगवान् मधुरता के स्वामी हैं, इसलिए उनका सब कुछ मधुर है। जगत् में जो भी दृश्य, रूप, स्पर्श, रस, गंध, विचार या भावना है और उसमें जो सौन्दर्य है, आकर्षण है, आनन्द है वह सब परमात्मा का है, वस्तु का नहीं।
जब हम भगवान् के सुन्दर रूप का, उनकी क्रियाओं का, लीलाओं का, प्रेम का चिन्तन करते हैं तो हमारा हृदय मधुरता से भर जाता है। इसके फलस्वरूप हमारा जीवन भी मधुर, सुखमय और आनन्दमय हो जाता है।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (हिंदू धर्म) (12543)
Tantra ( तन्त्र ) (999)
Vedas ( वेद ) (708)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1901)
Chaukhamba | चौखंबा (3354)
Jyotish (ज्योतिष) (1450)
Yoga (योग) (1100)
Ramayana (रामायण) (1391)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23140)
History (इतिहास) (8256)
Philosophy (दर्शन) (3392)
Santvani (सन्त वाणी) (2567)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist