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मध्यप्रदेशः एक भौगोलिक अध्ययन: Madhya Pradesh: A Geographical Study (An Old and Rare Book)

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Item Code: HBE495
Author: Kamal Sharma
Publisher: Madhya Pradesh Hindi Granth Academy, Bhopal
Language: Hindi
Edition: 2023
Pages: 445
Cover: PAPERBACK
Other Details 9.5x6.5 inch
Weight 534 gm
Book Description
प्राक्कथन

हिन्दी भाषा मानवीय मूल्यों को आत्मसात करने और भविष्यत जीवन-संघर्ष में शुचितापूर्ण साधन का उपयोग करते हुए सफल होने का मार्ग प्रशस्त करती है, साथ ही जिज्ञासा एवं प्रश्नाकुलता का अंकुरण करती है। देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी है। हिन्दी भाषा के विकास के कई युग और चरण हैं। यदि यह आज विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषाओं में गिनी जाती है तो इसका कारण उसकी व्याकरणात्मक परिपक्वता है। शास्त्रीय भाषा संस्कृत की उत्तराधिकारी और अनेक जन-बोलियों की अधिष्ठात्री हिन्दी का आज इतना सामर्थ्य है कि विश्व के अद्यतन विषय, अनुसंधान और तकनीक के विकास को इसके माध्यम से सुगमता से सम्प्रेषित किया जा सकता है। शिक्षाविदों का मानना है कि विषयगत वैशिष्टय अर्जित न कर पाने का एक बड़ा कारण विद्यार्थियों पर माध्यमगत दबाव है। मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा सहज ग्राह्य और संप्रेष्य तो होती ही है, शिक्षार्थी पर भाषा का अनावश्यक दबाव भी नहीं होता, उसमें मौलिक सोच पैदा होती है।

मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी के प्रकाशन, हिन्दी के सामर्थ्य के प्रकटीकरण का विनम्र उदाहरण है। चूँकि मातृभाषा मनुष्य के संस्कार, संचेतना और विकास का आधार होती है, इसलिए उसके माध्यम से शिक्षार्जन सबसे सहज और प्रामाणिक होता है। भारत सरकार ने इसी के मद्देनजर देश के सभी राज्यों में मातृभाषा के माध्यम से उच्च शिक्षा के अध्ययन-अध्यापन को सुगम बनाने की दृष्टि से, ग्रन्थों के लेखन-प्रकाशन की व्यवस्था के लिए अकादमियों की स्थापना की पहल की। इसी केन्द्र प्रवर्तित योजना के अंतर्गत मध्यप्रदेश शासन ने 1970 में अकादमी की स्थापना की। अकादमी उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थियों की सुविधा के लिए सभी विषयों की अध्ययन सामग्री हिन्दी में उपलब्ध करा रही है। हिन्दी का सर्वांगीण विकास मूलतः देश और आमजन का विकास है। इसलिए मेरी मान्यता है कि सभी अधुनातन विषयों की पुस्तकों का हिन्दी में लेखन-प्रकाशन की निरंतरता बनी रहनी चाहिए।

मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी मातृभाषा के माध्यम से विगत 50 वर्षों से अनवरत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में माध्यम परिवर्तन की प्रक्रिया को गति देने के उद्देश्य से केन्द्र प्रवर्तित योजना के अंतर्गत विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रम आधारित पाठ्य पुस्तकें एवं संदर्भ ग्रंथों के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों के लिए संदर्भ पुस्तकों के प्रकाशन का कार्य कर रही है।

मेरी अभिलाषा है कि हिन्दी में स्तरीय मानक पुस्तकों के प्रकाशन के इस राष्ट्रीय महत्व के कार्य में प्रदेश के प्राध्यापक लेखन, परीक्षण एवं सम्पादन कार्य से जुड़कर तथा विद्यार्थियों के बीच इनके उपयोग को बढ़ावा देकर अपना रचनात्मक सहयोग दें और विद्यार्थी इन्हें अपने अध्ययन का साथी बनाकर अकादमी के कार्य को सार्थकता प्रदान करें।

भूमिका

भाषा, संस्कृति और संस्कारों की संवाहक होती है। देश और समाज में ज्ञान का प्रकाश भी अपनी भाषा में सरलता व आसानी से व्याप्त होता है। देश की प्रगति में भाषा का महत्वपूर्ण योगदान है। विश्व में लगभग सभी विकसित राष्ट्रों में उन्नति, उनकी अपनी मातृभाषा में शिक्षा से हुई. वहाँ के शासन-प्रशासन, उच्च शिक्षा, शोध कार्य आदि सभी का माध्यम उनकी अपनी भाषा में ही है। माँ, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं होता है।

देश की शिक्षा नीति उस देश की प्रकृति, संस्कृति और प्रगति के अनुरूप होना चाहिये यह आनन्द और प्रसन्नता का विषय है कि 34 वर्षों के उपरांत देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सामने आई है। यह भारत केन्द्रित व समग्रता के साथ भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता व अनेक विशेषताओं के साथ हमारे सम्मुख आई है। छोटे बच्चे अपने परिवार की भाषा, मातृभाषा में जल्दी किसी बात को ग्रहण कर लेते हैं, इसलिए बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा (भारतीय भाषा) में हो, इस पर ध्यान दिया गया है। विद्यालयीन शिक्षा के साथ उच्च शिक्षा में भी अनेक महत्वपूर्ण कदम भारतीय भाषाओं को आगे बढ़ाने के लिये उल्लेखित है।

भारत की भाषाएँ विश्व में सबसे समृद्ध, वैज्ञानिक और सबसे सुन्दर भाषाओं में से है, जिनमें प्राचीन और आधुनिक साहित्य के विशाल भण्डार है। भारतीय भाषाओं में लिखा गया साहित्य, भारत की राष्ट्रीय पहचान और धरोहर है। भाषा, संस्कृति और कला से अटूट रूप से जुड़ी हुई है। परिवार की भाषा अपनेपन का अहसास कराती है और भावनाओं की अभिव्यक्ति भी करती है। संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार के लिये हमें अपने देश की भाषाओं का संरक्षण व संवर्धन करना होगा। यह तब ही संभव होगा, जब उन्हें नियमित रूप से तथा शिक्षण अधिगम के लिये उपयोग किया जाये।

महात्मा गांधी जी. आचार्य विनोबा भावे जी. पं. मदनमोहन मालवीय जी, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी आदि महापुरूषों और शिक्षाविदों ने भी इसी प्रकार के सुझाव दिये हैं कि शिक्षा, मातृभाषा में ही होना चाहिये। भाषा से सम्बन्धित कई अध्ययन हुए हैं, उन सबका निष्कर्ष भी यही है।

विश्व में भारत ऐसा देश है, जहाँ मौसम, खान-पान, वेषभूषा और भाषा में इतनी विविधता है, यह विविधताएँ हमारी ताकत है और भाषा यह एकता और एकात्मता का सशक्त माध्यम होती है। भारतीय भाषाओं में जो साम्यता है, वह दूसरे देश की भाषाओं के साथ देखने को नहीं मिलती है। इनके मध्य अनेक प्रकार की सन्निकटता है। इन भाषाओं के स्वरूप में एक अन्र्तनिहित वैज्ञानिकता भी है, संभव है इन भाषाओं का देववाणी संस्कृत से गहराई से संबंध होने के कारण भी ऐसा हो यह वस्तुतः उच्चारण व व्याकरण दोनों ही दृष्टि से एक पूर्ण और वैज्ञानिक भाषा है।

भाषा संस्कृति, वैचारिक, भावनात्मक समरसता की सेतु भी है, जब कोई दो भाषा-भाषी नितान्त अजनबी लोग मिलते हैं. क्या वे आपसी भाषा के लिये कोई तीसरी भाषा का उपयोग करते हैं, अपवाद हो सकता है। भाषाई सेतु के माध्यम से अजनबीपन समाप्त हो जाता है और अपनापन आ जाता है, जो एक दूसरे के विचारों के प्रति उत्सुक व ग्रहणशील बनाता है। यह विकास की स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिससे गुजरकर दोनों, भाषा की दृष्टि से समृद्ध होते है।

देश में भाषाओं को लेकर विशेष रूप से हिन्दी के क्षेत्र में उसके सृजन की दृष्टि से अनेक प्रयास हो रहे हैं। उन प्रयासों में मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी भी सन् 1969 से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यपुस्तकें व संदर्भ ग्रंथ पुस्तकें उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका भावी पीढ़ी के निर्माण में निभा रही है, क्योंकि पीढ़ी को गढ़ने के कार्य में भाषा की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

हिन्दी भाषा में लेखन का कार्य करने वाले विद्वानजन साधुवाद के पात्र हैं। लेखन यह वैचारिक प्रवाह को बल प्रदान करता है। पठन-पाठन का मजबूत आधार मातृभाषा में प्रदान करने में योगदान देने वाले सभी विद्वतजनों का मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी की ओर से हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ और आगे भी आपके स्नेह, सहयोग और अपनत्व की अपेक्षा है।

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