पुस्तक के विषय में
तीर्थंकर, सर्वज्ञ, आप्त-पुरुष यह सब होते हुए महावीर एक विलक्षण संपूर्ण जीवन दृष्टि थे, जिसे एक वृहद्भ स्तर पर जन-जन की दृष्टि बनाने का श्रेय जाता है- ओशो को । महावीर जीवन का वह प्रकाशपूर्ण मार्ग थे जिस पर चल कर अनंत सत्य के शिखरों को स्पर्श किया जा सकता है, उस प्रकाश स्पर्श से हजारों दीपकों को प्रज्वलित करने का श्रेय जाता है-ओशो को ।
महावीर को हुए पच्चीस सौ वर्ष हो गए । वे अतीत की घटना हैं । इतिहास यही कहेगा । मैं यह नहीं कहूंगा । साधक के लिए महावीर भविष्य की घटना हैं । उसकी अपनी दृष्टि से वह महावीर के होने तक आगे कभी पहुंचेगा । इतिहास की दृष्टि से अतीत की घटना हैं, पीछे बीते हुए समय की । साधक की दृष्टि से आगे की घटना हैं । उसके जीवन में आने वाले किसी क्षण में वह वहा पहुंचेगा, जहा महावीर पहुंचे हैं । और जब तक हम उस जगह न पहुंच जाएं तब तक महावीर को समझा नहीं जा सकता है ।
भूमिका
तीर्थंकर, सर्वत, आप्त-पुरुष यह सब होते हुए महावीर एक विलक्षण संपूर्ण जीवन दृष्टि थे, जिसे एक वृहद् स्तर परजन-जन की दृष्टि बनाने का श्रेय जाता है-ओशो को । महावीर जीवन का वह प्रकाशपूर्ण मार्ग थे जिस पर चल कर अनंत सत्य के शिखरों को स्पर्श किया जा सकता है, उस प्रकाश स्पर्श से हजारों दीपकों को प्रज्वलित करने का श्रेय जाता है-ओशो को ।
महापुरुष सूत्र देते हैं, व्याख्याकार उसे अर्थ देते हैं, ओशो के द्वारा महावीर को जिन अर्थों में व्याख्यायित किया गया, वह बीसवीं शताब्दी के संदर्भ में महावीर को पुनर्परिभाषित करना था । कारण कुछ भी रहा हो लेकिन महावीर के निकट व्याख्याओं का ऐसा आडंबर रहा कि महावीर संपूर्ण होते हुए भी आम जनता के न हो सके ।
ओशो की तर्कपूर्ण व्याख्याओं ने महावीर के दर्शन को आडंबरों से मुक्त किया और महावीर की अमाप ऊंचाइयों को अपने हृदयस्पर्शी, सरल एवं नवीन अर्थों के सेतु से अलंकृत कर जनता के समक्ष उपस्थित किया जो नितांत अपरिचित, सर्वथा नवीन महावीर का विलक्षण एवं अदभुत स्वरूप था । महावीर के दर्शन को ओशो के द्वारा दिए गए अर्थों ने महावीर को मात्र पूजा का नहीं, जीवन का आदर्श बना कर प्रस्तुत किया, जो हजारों-हजार साधकों की जीवन- दिशा का प्रयाण बिंदु बना ।
ओशो द्वारा कहा गया कि महावीर की साधना के सोपान अहिंसा, सत्य, संयम, तप एवं ब्रह्मचर्य जीवन से पलायन के नहीं जीवन को साधने के अतुल्य मार्ग हैं, बशर्तें इनकी सूक्ष्मताओं को क्रिया-कांडों के आवरण से बचाकर विवेक की पारदर्शी झिल्ली में सजगता से देखा जा सके । ढाई हजार वर्ष के लंबे अंतराल में महावीर का ऐसा वैज्ञानिक प्रस्तुतिकरण कभी नहीं हुआ जैसा ओशो के द्वारा किया गया और महावीर जो एक संप्रदाय विशेष की बपौती बन कर रह गए थे, 'उस' अनंत कोष के द्वार को ओशो की आकाशीय विवेचनाओं ने सब के लिए खोल दिए ।
महावीर इतने सरल हो सकते हैं, यह ओशो के द्वारा ही जाना गया; महावीर का तप इतना रमणीय हो सकता है, इसका परिचय ओशो ने कराया; महावीर की अहिंसा साधना का शिखर है, इसकी अनुभूति ओशो ने दी ।
'महावीर: मेरी दृष्टि में' पुस्तक पुन: प्रकाशित की जा रही है, एक सुखद भाव के साथ अभिनंदन है । महावीर आज के युग की महती अपेक्षा है, वर्तमान समस्याओं का समाधान है । इक्कीसवीं शताब्दी की ओर बढ़ते हुए इस समय में जीवन को यदि कोई सुरक्षित रख सकेगा तो वह 'महावीर का दर्शन' है । ऐसे समय में ओशो की वैज्ञानिक व्याख्याओं के साथ महावीर को पुन: प्रकाशित करना अभिनंदनीय प्रयास है ।
यह सद्प्रयास सुदूर जन-जन को स्पर्श करे, इस शुभकामना के साथ—
अनुक्रम
1
महावीर से प्रेम
3
2
महावीर की समसामयिकता
25
तथ्य और महावीर-सत्य
55
4
संयम नहीं- महावीर-विवेक
71
5
संत्य की महावीर-उपलब्धि
103
6
अभिव्यक्ति की महावीर-साधना
119
7
अनुभूति और महावीर-अभिव्यक्ति
145
8
तीर्थंकर महावीर: अनुभूति और अभिव्यक्ति
161
9
प्रतिक्रमण: महावीर सूत्र
195
10
अप्रमाद: महावीर धर्म
213
11
सामायिक: महावीर-साधना
243
12
कर्म-सिद्धांत: महावीर-व्याख्या
261
13
जाति-स्मरण: महावीर-उपाय
293
14
महावीर:परम समर्पित व्यक्तित्व
315
15
महावीर:अस्तित्व की गहराइयों में
331
16
महावीर: अनादि, अनीश्वर और स्वयंभू अस्तित्व
365
17
महावीर के मौलिक योगदान
383
18
वासना-चक्र के बारह महावीर-छलांग
413
19
महावीर:सत्य अनेकांत
431
20
महावीर: परम-स्वातंत्र्य की उदघोषणा
451
21
अनेकांत: महावीर का दर्शन-आकाश
473
22
जागा सो महावीर: सोया सो अमहावीर
499
23
महावीर: आत्यंतिक स्वतंत्रता के प्रतीक
515
24
दुख, सुख और महावीर-आनंद
531
महावीर: मेरी दृष्टि में
549
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