लोकोकित दू शब्दक योग-लोक उक्तिसँ बनल अछि। अर्थात् जनसाधारणक उक्ति भेल लोकोक्ति। उक्तिसँ अभिप्राय छैक वक्रोक्ति। जनसाधारण जखन ककरहु पर व्यंग्य करैत अछि तँ ओहिमे अकस्माते लोकोक्तिक प्रवेश भय जाइत अछि। लोकोक्तिकै मिथिला मे 'कहबी' कहल जाइत छैक। 'लोकोक्ति' एहि शब्दक प्रयोग केवल प्रबुद्ध वर्ग करैत छथि। जनसाधारण तँ 'कहवी', 'कहलकैजे', एहने ठाम कहलकै' आदि शब्दक प्रयोग करैत अछि; यथा अयँ हौ। तो धानो चरा लेलह आ उनटे तो ही जोरसें बजैत छह? एहने ठाम कहलकै 'चोर बाजय जोरसँ।' 'कहलकै' एतवहिसँ स्पष्ट भय जाइत अछि जे लोकोक्ति ककरहु द्वारा कहल गेल कोनो आप्त वाक्य बीक।
मैथिली लोकोक्तिक क्षेत्र वड़ व्यापक अछि। एकर अन्तर्गत सूक्ति, प्राज्ञोक्ति, लौकिक न्याय, फकड़ा, बुझौअलि, डाकवचन, कविलोकनिक प्रसिद्ध वाक्य आदि सेहो आवि जाइत अछि। असलमे लोकोक्तिकें कोनहु सीमामे नहि बान्हल जा सकैत अछि। ओ तँ से प्रवाह थीक, जे निरन्तर अजस्र जलस्त्रोत लेने चारूभागक भाव भूमिकें आप्लावित करैत जन साधारणक अन्तरक कलुषकै धोइत अभिनव चेतनाक संचार करैत रहैत अछि। लोकोक्तिक प्रवाह केवल विद्वानक मुखसँ नहि अपितु सामान्य लोकक मुख-धारसँ निरन्तर प्रवाहित होइत रहैत अछि। जतय लोक रहैत अछि ततय लोकोक्तिक प्रयोग होइतहिँ अछि। ई जनसामान्य द्वारा एक दिस ॐ ककरहुपर व्यंग्य करबाक हथियार थीक तँ दोसर दिस ककरो कोनहु समस्याक निदान हेतु मार्गदर्शन करवाक सूक्ति (पद्य) वा प्राज्ञोक्ति (गद्य) परक उपेदश वाक्य सेहो थीक।
तें हेतु एकदिस जँ आधुनिक मैथिली भाषामे निरन्तर नव-नव लोकोक्तिक निर्माण होइत रहैत अछि तँ दोसर हजारो लोकोक्ति ततेक पुरान आछे जे ओकर प्रचार ज्योतिरीश्वर विद्यापतिसँ पूर्वहि भय चुकल छल। अनेक लोकोक्ति विभिन्ल पूर्वाचलीय भाषा में सामान्य अन्तरसँ प्रयुक्त होइत रहैत अछि, जाहिसँ लोकोक्तिक प्राचीनता स्वतः सिद्ध होइत अछि ।
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