विपत्तियों से घिरे रहने के कारण मनुष्य में आदिकाल से ही अपनी तथा अपने परिवार की सुरक्षा की प्रवृत्ति पाई जाती है। मनुष्य कभी शारीरिक व्याधि से पीड़ित होता है तो कभी मानसिक व्याधि से। इन व्याधियों का कारण वह किसी दैवी प्रकोप को मानता है अथवा किसी विद्वेषी के द्वारा किये जाने वाले जादू-टोने को और इनसे बचने के लिए विविध प्रकार के प्राकृतिक एवं कृत्रिम उपायों का आश्रय भी लेता है। "अभिचार" भी मनुष्य द्वारा सम्भावित हानि से बचने के लिए किया जाने वाला एक कृत्रिम उपाय ही है जिसके लिए वह विविध प्रकार के अनुष्ठानों और कृत्यों का आश्रय लेता है। इनके सम्पादन में यह विविध प्रकार की सामग्रियों का प्रयोग करता है, यथा, मनुष्य कभी तो लाल या काले वस्त्र पहनकर पूजा-पाठ करता है और कभी सरसों का हवन करता है अथवा कभी किसी ओझा या पुजारी द्वारा दी गई ताबीज माला धारण करता है या फिर कभी किसी व्यक्ति की प्रतिच्छाया अथवा आटे या मिट्टी से निर्मित्र मूर्ति का चौराहे पर विच्छेदन करता पाया जाता है। ये सभी कृत्य मनुष्य में जादू-टोने एवं दैवी प्रकोप के प्रति विश्वास की भावना को प्रबलता प्रदान करते हैं। अतः जब हम मानव में इस प्रवृत्ति या भावना के उद्गम काल अथवा स्थान को जानने के लिए सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय का अध्ययन एवं निरीक्षण करते हैं, तो पाते हैं कि मनुष्य में जादू-टोने एवं ईश्वरीय शक्ति के प्रति विश्वास की भावना आदिकाल से ही जागृत रही है। हाँ यह बात अवश्य है कि यह भावना मनुष्य के अन्तर्मन में कभी धूमिल रही है तो कभी प्रबलता के साथ विकसित होकर अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंची है।
वैदिक काल में जादू-टोने के प्रति विश्वास की भावना का पर्याप्त अस्तित्व परिलक्षित होता है जिसके फलस्वरूप विविध प्रकार के अभिचार यागों एवं कृत्यों का सम्पादन होने लगा था जिसमें विभिन्न अभिचारपरक मन्त्रों का प्रयोग किया जाता था और कृत्य सम्पादन के लिए उपयुक्त मन्त्र प्राप्त न होने पर अनेक नवीन मन्त्रों की रचना भी कर ली जाती थी। पहले इस प्रकार यागों एवं कृत्यों का सम्पादन किसी विशिष्ट व्यक्ति या पुरोहित द्वारा ही सम्भव माना जाता था, किन्तु शनैः शनैः ये कृत्य साधारण व्यक्ति द्वारा भी सम्पादित किये जाने लगे और गृह्यसूत्रकालीन समाज में तो प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपनी सुरक्षा एवं समृद्धि के लिए छोटे से लेकर बड़े-बड़े सभी प्रकार के यज्ञों और कृत्यों का सम्पादन किया जाने लगा। इस प्रकार गृह्यसूत्रकाल से ही "अभिचार" जैसे कृत्य एवं याग भी साधारण जनता की शक्ति बन गये ।
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