भूमिका
इस विश्व में गणित शास्त्र का उद्धव तथा विकास उतना ही प्राचीन है, जितना मानव-सभ्यता का इतिहास है । मानव जाति के उस काल से ही उसकी गणितीय मनीषा के संकेत प्राप्त होते हैं । प्रत्येक युग में इसे सम्मानित स्थान प्रदान किया गया । अत एव उच्चतम अवबोध के लिये 'संख्या' का तथा इसके प्रतिपादक शास्त्र के लिये'सांख्य' का प्रयोग प्रारम्भ हुआ । इस क्रम में किसी भी विद्वान् के लिये संख्यावान् का प्रयोग प्रचलित हुआ' । इस वैदुष्य से ऐसे विलक्षण गणित-शास्त्र का विकास हो सका जो सर्वथा अमूर्त संख्याओं से विश्व के मूर्त पदाथों को अंकित करने का उपक्रम करता है ।
विश्व के पुस्तकालय के प्राचीनतम ग्रन्थ वेद संहिताओं से गणित तथा ज्योतिष को अलग- अलग शास्त्रों के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी । यजुर्वेद में खगोलशास्त्र (ज्योतिष) के विद्वान् के लिये 'नक्षत्रदर्श' का प्रयोग किया है तथा यह सलाह दी है कि उत्तम प्रतिभा प्राप्त करने के लिये उसके पास जाना चाहिये । वेद में शास्त्र के रूप में 'गणित' शब्द का नामत: उल्लेख तो नहीं किया है पर यह कहा है कि जल के विविध रूपों का लेखा-जोखा रखने के लिये 'गणक' की सहायता ली जानी चाहिये । इससे इस शास्त्र में निष्णात विद्वानों की सूचना प्राप्त होती है ।
शास्त्र के रूप में 'गणित' का प्राचीनतम प्रयोग लगध ऋषि द्वारा प्रोक्त वेदांग-ज्योतिष नामक गन्ध के एक श्लोक में माना जाता है' पर इससे भी पूर्व छान्दोग्य उपनिषद् में सनत्कुमार के पूछने पर नारद ने जो 18 अधीत विद्याओं की सूची प्रस्तुत की है, उसमें ज्योतिष के लिये 'नक्षत्र विद्या' तथा गणित के लिये 'राशि विद्या' नाम प्रदान किया है । इससे भी प्रकट है कि उस समय इन शास्त्रों की तथा इनके विद्वानों की अलग अलग प्रसिद्धि हो चली थी
विषय-सूची
vii
अंक-गणित एवं बीज-गणित खण्ड
प्रथम अध्याय:
संख्याओं की दुनियाँ
3
द्वितीय अध्याय:
भाषा का गणित
17
तृतीय अध्याय:
गणित की भाषा
41
चतुर्थ अध्याय:
इष्ट कर्म, विलोम-विधि तथा समीकरण की सामान्य संक्रियाएँ
57
पञ्चम अध्याय:
एक-वर्ण समीकरण तथा द्विघात समीकरण की अंक-गणितीय संक्रियाएँ
83
षष्ठ अध्याय:
एक चर वाले समीकरण तथा वर्ग-समीकरण की बीज-गणितीय संक्रियाएँ
107
सप्तम अध्याय:
अनेक-वर्ण-समीकरण या दो चूर वाले रैखिक निश्चित समीकरण
139
अष्टम अध्याय
वर्ग प्रकृति या दो चर वाले द्विघात अनिश्चित समीकरण तथा वर्ग संख्या बनने का नियम
157
नवम अध्याय:
कुट्टक या दो चरों वाले अनिश्चित समीकरण
167
दशम अध्याय:
श्रेढ़ी-व्यवहार
207
एकादश अध्याय:
अंकपाश या क्रमचय तथा संचय
241
रेखा-गणित खण्ड
द्वादश अध्याय:
शुल्व-गणित या रेखा-गणित
259
त्रयोदश अध्याय:
चतुरश्र या चतुर्भुज
271
चतुर्दश अध्याय:
समकोण त्रिभुज की संरचना
307
पञच्दश अध्याय:
त्रिभुज के प्रकार तथा क्षेत्रफल
345
षोडश अध्याय:
वृत्त की संरचना तथा क्षेत्रफल
359
सप्तदश अध्याय:
गोले की संरचना, उसका आयतन तथा पृष्ठीय क्षेत्रफल
389
सन्दर्भ-ग्रन्थ-सूची
405
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