भारतीय संदर्भ में स्त्री-जाति के मानवीय अधिकारों के लिए व्यक्तिगत तथा अपेक्षया विलिंबित लय में हुए प्रयासों की एक जीवंत स्मृति-छाया है मीरांबाई का जीव और उनका काव्य। मध्यकालीन सामंती परिवार में जन्मी मीरां ने अपनी तरह से जीने की राह चुनी थी। उन्होंने सामंती व्यवस्था में जी रही स्त्री व पुरुष के विभेद को मानने से इन्कार किया। स्त्री पर आरोपित 'लोक-लाज' के छद्म में युगों से होने वाले शोषन को चुनौती दी।
मीरांबाई ने साहित्य को वह रागिनी दी जिसने विभिन्न पंथों के विवादी स्वरों कम समरस बनाकर भक्ति-भाव को रूढ़िबद्ध बंटवारे से मुक्त किया। मुक्ति की इस साधिका के जीवन और काव्य का सम्यक स्थायी भाव रहा मुक्ति की कामना। राग-विराग के विरल ताने-बाने से बुने उनके पद उनके जीवन की अमिट गाथा हैं।
'मीरां' : 'मुक्ति की साधिका' में विद्वानों द्वारा शोध-पुष्ट प्रामाणिक पदों को समाविष्ट किया गया है। साथ ही कुछ ऐसे पदों को भी लिया गया है जिनकी प्रामाणिकता तो अभी सिद्ध नहीं हो पाई है परंतु वे हमारी लोक-आत्मा में धड़कते, सांस हैं।
एन.सी.ई.आर.टी. में बतौर संपादक कार्यरत प्रतिष्ठित कथाकार डॉ. मीरा कांत ने प्रस्तुत पुस्तक में मीरां के 'दरद' को, उनके भोक्ता मन की 'गति' को आंतरिकता से जानकर यह संचय तैयार किया है जो उनकी अपनी संवेदनशील रचनात्मक प्रतिभा की अनुगूंज भी है। पुस्तक की रचनात्मक संकल्पना, गहन शोध, संचयन एवं प्रस्तुति में विषय के प्रति उनकी निष्ठा ही उनके प्रेरक संबल रहे हैं। पुस्तक की सीमित परिधि में मीरां कांत ने पाठकों को सोद्देश्य काव्यात्मक अनुभव का मुक्ताकाश देने का सफल प्रयास किया है।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu ( हिंदू धर्म ) (12489)
Tantra ( तन्त्र ) (987)
Vedas ( वेद ) (705)
Ayurveda ( आयुर्वेद ) (1888)
Chaukhamba | चौखंबा (3349)
Jyotish ( ज्योतिष ) (1442)
Yoga ( योग ) (1092)
Ramayana ( रामायण ) (1389)
Gita Press ( गीता प्रेस ) (731)
Sahitya ( साहित्य ) (23027)
History ( इतिहास ) (8218)
Philosophy ( दर्शन ) (3370)
Santvani ( सन्त वाणी ) (2532)
Vedanta ( वेदांत ) (121)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist