प्रस्तुत पोथी 'मिथिला लोकचित्रावली' विलक्षण कलाकारिताक हृदयहारी कृति थिक । एकर रचयिता विद्वान् साहित्यकार ओ कलाकारक रूपमे प्रसिद्ध पं. गिरिधर झा छलाह जे स्वयं अपन अभ्यास ओ रूचिसँ क्रमशः नीक चित्र बनबए लगलाह, ककरोसँ एकर शिक्षा नहि लेलनि। कोनो महत्त्वपूर्ण देखल प्रसंग कैं ताहि रूपे चित्रमे प्रस्तुत कएने छथि जे देखनिहारकै ताहि समयमे पहुँचाए दैत अछि आ इयेह कलाकारक सफलताक परिचायक होइछ । एहि पोथी मे मुख्यतः मिथिलाक ताहि समयक गामक जीवनसँ सम्बद्ध दृश्य उपस्थापित अछि वैवाहिक विधि, कोबराघर, मुँहदेखी, पावनि, नववरवधूक विलास, इनार पर पनिभरनी, खेती, करीन, जन-बोनिहार, घास आनब, नेनाक खेल, चटिसार, नावखेबब, गोठबिछनी, पारिवारिक परिदृश्य, जनौ बनाएब, माँछ मारब, गाय दुहब, हरजोतब इत्यादिक चित्र सजीव जकाँ प्रस्तुत भेल अछि ।
शास्त्र मे विद्यासभक वर्णनक प्रसंग चौंसठि कलाक उल्लेख भेल अछि गीत, वाद्य, नृत्य, नाट्य, आलेख्य आदि । ताहिमे आलेख्य शब्दसँ चित्रकलाक निर्देश भेल अछि। आ विशेषरूपें लेख्य कूचीसँ लिखल कला थिक आलेख्य । चित्रशब्दक अर्थ भेल अपन लेखनी द्वारा अद्भुत प्रदर्शन करब। सिद्धान्तकौमुदीमे चित्र धातुक सम्बन्ध मे लिखल अछि- 'चित्र चित्रीकरणे, आलेख्यकरण इत्यर्थः। चित्र इत्ययमद्भुतदर्शने णिचंलभते" धातु सं०- 1917 ।
मिथिला मही महनीय मधुबनी मण्डलान्तर्गत मंगरौनी वर्तमान पिलखवार ग्रामवासी महामनीषी चित्रकार-साहित्यकार पं० गिरिधर झा द्वारा रचित 'मिथिला लोकचित्रावली' नामक पुस्तककै अपने लोकनिक समक्ष प्रस्तुत करैत आइ अत्यन्त हर्षक अनुभूति भऽ रहल अछि । यद्यपि प्रकाशन करबामे बहुत समय लागि गेल "श्रेयांसि बहुविघ्नानि" अर्थात् नीक काज करबामे अड़चन होइते छैक किन्तु आब जखन पोथी छपि रहल अछि तखन "क्लेशः फलेन हि पुनर्नवतां विधत्ते" अर्थात् क्लेशक समाप्ति पर अत्यन्त सुखक अनुभूति होइत छैक, पूर्वक समस्त दुःख बिसरि जाइत छैक ।
चित्राङ्कन करबाक परिपाटी मिथिलामे अति प्राचीन कालसँ आबि रहल अछि। एतय घरक भित्ति पर गाछ, पात, फूल, देवी-देवता ओ जीव जन्तु आदिक चित्राङ्कन करबाक परंपरा रहल अछि, जेना मुण्डन, उपनयन, विवाह, द्विरागमन आदि सांस्कृतिक अवसर पर लोकचित्रकलाक प्रदर्शन होइत अछि। विभिन्न संस्कार आ व्रतमे एकर उपादेयता आ महत्ता अछि । अरिपन, कोबर-माड़ब, पुरहर-पातिल आदि पर रंग-विरंगक चित्राङ्कन करब लोक चित्रकलाक एक ज्वलन्त उदाहरण अछि ।
एतदतिरिक्त आब कपड़ो पर देवी-देवता, जीव-जन्तु ओ फूल-पत्तीक रंग-विरंगक चित्र देखबामे अबैत अछि जे मिथिला पेन्टिंगक रूपमे ख्याति पौने अछि। मिथिलाक लोक चित्रकलाक परम्परा के मिथिलाक महिला लोकनि एखनहु अक्षुण्ण रखने छथि ।
पं० गिरिधर झा रचित 'गिरिधर रचना मालिका' नामक पोथी 2019 ई० में प्रकाशित भेल छन्हि जाहिमे एगारह गोट कथा एवं आठ टा निबन्ध दुनू तरहक रचनाक संकलन प्रकाशित अछि। हिनक 'आङनक रेखा' नामक उपन्यास 1981 ई० में मैथिली अकादमीसँ प्रकाशित छन्हि ।
पं० गिरिधर झा कलाक पारखी छलाह। लोक जीवन एवं प्रकृतिसँ जुड़ल छलाह। हिनकर एहि 'मिथिला लोकचित्रावली' नामक पोथीमे मिथिलाक परम्परागत चित्रकलाशैलीक परिचय भेटैत अछि। हिनकर चित्रावली मिथिलाक सांस्कृतिक ओ ग्राम्यजीवनक विविध क्रियाकलापक परिदृश्य सँ परिचित करबैत अछि । ई बिना ककरो मार्गदर्शन ओ सहयोग लेने 1940 ई० सँ 1948 ई० धरि निरन्तर चित्राङ्कन मे लागल रहलाह। चित्रकलामे हिनक नैसर्गिक प्रतिभा छलैन्ह । दरभंगा महाराजाधिराज द्वारा 1948 ई० में दरभंगा में आयोजित 14म अखिल भारतीय प्राच्य विद्या महासम्मेलन (ऑल इण्डिया ओरिएण्टल कॉन्फ्रेन्स) क अवसर पर चित्रावली नामक पोथी प्रकाशित भेल छल जाहिमे पं० गिरिधर झा 'विकल' जीक कतेको चित्र छपल छल जे हिनक महत्त्व एवं प्रसिद्धिक द्योतक अछि ।
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