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मिथ्यामेव जयते एवं डंकल चाचा: Mithyamev Jayate & Dankal Chacha

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Item Code: HAH959
Author: Lalan Tiwari
Publisher: Suryaprabha Prakashan, Delhi
Language: Hindi
Edition: 2015
ISBN: 9788175702240
Pages: 106
Cover: HARDCOVER
Other Details 9x6 inch
Weight 234 gm
Fully insured
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100% Made in India
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23 years in business
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Book Description
पुस्तक परिचय

आरंभ में इसका नाम 'आज का सच' था। असल में उन दिनों अयोध्या की बाबरी मस्जिद को हिन्दू कारसेवकों ने जो ध्वस्त किया उसकी गूंज देश-विदेश में थी। उस ज्वलंत राष्ट्रव्यापी समस्या को नाटक के केन्द्र में रखा। तब पंडित-मुल्ला धर्म को लेकर परस्पर जितना भी संघर्ष करते किन्तु जैसे ही उनकी और उनके धर्म की कट्टरता की आलोचना की जाती एक हो जाते और सुर में सुर मिलाते हुए देखे जाते । राष्ट्रीय पैमाने पर भी धर्माचार्यों का बयान लगभग एक ही होते हैं धर्म के संबंध में। उल्टे आलोचक एवं सत्याग्रही बुद्धिजीवी ही बलि के बकरे बनते रहे हैं। इस विषय के कच्चे माल को जब नाटक का रूप दिया-पुटकी (धनबाद) के रंगकर्मियों ने मंचन हेतु चुना। अब तक इसका दर्जनों मंचन अखिल भारतीय नाट्य प्रतियोगिताओं में पुरस्कार अर्जित किए जा चुके है। मंचन के दौरान आयीं कमजोरियों को यथासंभव दूर करने का निरंतर प्रयास किया गया है जिससे कि इसका मंचन आसान और कम से कम खर्चे में एवं दर्शकों पर असरदार हो।

अपनी बात

मिथ्यामेव जयते

1993 में पत्रिका 'उत्तरा' के प्रकाशन के सिलसिले में इलाहाबाद जाकर लौट रहा था। लौटते समय रेल में मेरा कन्फर्मेशन नहीं था। यानी मैं वेटिंग लिस्ट में जम कर सफर कर रहा था। सफर के दौरान यात्रियों के प्रति टीटियों का व्यवहार देखकर इस नाटक को लिखने की प्रेरणा मिली। उन दिनों अयोध्या की बाबरी मस्जिद को हिन्दू कारसेवकों ने जो ध्वस्त किया उसकी गूंज देश-विदेश में थी। उस ज्वलंत राष्ट्रव्यापी समस्या को नाटक के केन्द्र में रखा। तब पंडित मुल्ला धर्म को लेकर परस्पर जितना भी संघर्ष करते किन्तु जैसे ही उनकी और उनके धर्म की कट्टरता की आलोचना की जाती एक हो जाते और सुर में सुर मिलाते हुए देखे जाते। राष्ट्रीय पैमाने पर भी धर्माचार्यों का बयान लगभग एक ही होते धर्म के संबंध में। उलटे आलोचक एवं सत्याग्रही बुद्विजीवी ही बलि का बकरा बनता रहा है। इस विषय के कच्चे माल को जब नाटक का रूप दिया-पुटकी (धनबाद) के रंगकर्मियों ने मंचन हेतु चुना। अबतक इसका दर्जनों मंचन अखिल भारतीय नाट्य प्रतियोगिताओं में उन युवा रंगकर्मियों द्वारा हो चुका है और कई पुरस्कार अर्जित किए जा चुके हैं। मैं उन रंगकर्मियों का उत्साह देखकर मुझे प्रसन्नता होती है। उन्हें बधाई देता हूँ एवं आभार प्रकट करता हूँ। मंचन के दौरान आयीं कमजोरियों को यथासंभव दूर करने का निरंतर प्रयास किया गया है जिससे कि इसका मंचन आसान कम से कम खर्चे में एवं दर्शकों पर असरदार हो। आरंभ में इसका नाम 'आज का सच' था। इसी नाम से कई प्रस्तुतियाँ भी हुई किन्तु इसी नाम से एक दूसरे नाटक को मंचन होता देख अपने नाटक का नाम 'मिथ्यामेव जयते' कर दिया। सुधी पाठकों एवं कलाप्रेमी दर्शकों से इस बदलाव को स्वीकार करने की मेरी विनम्र निवेदन है।

डंकल चाचा यह विश्वबाजारीकरण एवं वैश्वीकरण के नतीजों पर आधारित एक सामाजिक नाटक है। उसका प्रभाव महानगरों से होता हुआ गाँव तक कैसे पहुँचता है और अपने प्रभाव से गिरफ्त में लेता है, दर्शाया गया है। इस नाटक को सर्वप्रथम बोकारो इस्पात नगर में ही 'छन्दरूपा' द्वारा आयोजित अन्तर्भाषीय नाट्य प्रतियोगिताओं में हिन्दी और भोजपुरी दोनों भाषाओं में स्थानीय कलाकारों द्वारा मंचित किया जा चुका है। मंचन पूर्व लेखक से अनुमति लेने की औपचारिकता का निर्वाह अवश्य करें। धन्यवाद !

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