प्रकाशकीय
यशस्वी भारतीय परम्परा के अनमोल रत्न हैं राष्ट्रकवि रामधारी सिह 'दिनकर', जिन्होंने अपनी कालजयी रचनाओं के माध्यम से देश निर्माण और स्वतत्रता के सघर्ष में स्वय को पूरी तरह समर्पित कर दिया था । 'कलम आज उनकी जय-बोल जैसी प्रेरणाप्रद कविता के प्रणेता दिनकर जी ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में अनवरत लेखन किया, परन्तु उनकी विशिष्ट पहचान कविता के क्षेत्र मे बनी उन्होने कविता मे पदार्पण भले ही छायावाद व श्रृंगार रस से प्रभावित होकर किया हो, बाद में उनकी कविता निरंतर राष्ट्रीयता और स्वातत्र्य प्रेम का पर्याय बनती गयी उनकी विविध विषयो पर लगभग 30 पुस्तकें प्रकाशित हैं, जो उनकी निरंतर रचनाससक्रियता का परिचय देती हैं उनकी पुस्तको मे 'उर्वशी', 'कुरुक्षेत्र', 'सस्कृति के चार अध्याय' और 'इतिहास और आलू आदि अपनी उपमा आप हैं, जिन्हें सस्कृति, सामाजिक चेतना और उसकी असाधारण विशेषताओं के सारगर्भित आकलन के रूप में भी देखा जा सकता है । ऐसे महान कवि, लेखक और देश निर्माता के जीवन के विविध पक्षों को सक्षेप मे संजोना आज कै समय की अनिवार्य आवश्यकता है और प्रस्तुत पुस्तक रामधारी सिह 'दिनकर' के माध्यम से इसे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ० यतीन्द्र तिवारी ने पूरी निष्ठा और लगन के साथ व्यवहारिक रूप दिया है विद्वान लेखन ने इस पुस्तक को कई उपयोगी अध्यायो में विभक्त किया है और इनमें उनके व्यक्तिगत जीवन से लेकर रचनाकार्य और राष्ट्रसेवा के विविध पक्षों का सविस्तार प्रमाणिक विवरण दिया है स्मृति सरक्षण योजना के अन्तर्गत इस पुस्तक के दूसरे सस्करण का प्रकाशन कर उतार प्रदेश हिन्दी संस्थान गौरवान्वित और प्रमुदित है । आशा है, हिन्दी प्रेमियों, शोधार्थियों और जागरूक पाठकों के बीच इस पुस्तक रामधारी सिह 'दिनकर के दूसरे संस्करण को भी पूर्ववत सुधी पाठक अवश्य सराहेंगे ।
अनुक्रम
1
नवचेतना और जनजागरण की कविता
1-4
2
विभापुत्र दिनकर
5-8
3
काव्य संवेदना और आत्मसंघर्ष
9-13
4
आत्मसंघर्ष की काव्यात्मक परिणति
14-20
5
दिनकर का कृतित्त्व परिचय
21-46
6
विचार प्रधान प्रबध काव्य-कुरूक्षेत्र
47-51
7
आदर्श जीवन-संदेश का काव्य रश्मिरथी
52-54
8
'उर्वशी' रचनाकार के समाधिस्थ चित् की कविता
55-60
9
दिनकर : राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय एकता की चिन्ता
61-64
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