प्रस्तुत पुस्तक पाठकों, विशेषकर पुलिस अधिकारियों, प्रशिक्षु पुलिस अधिकारियों, विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं के प्रतिभागियों, अकादमिक क्षेत्र से जुड़े विद्वान् शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं प्रशासनिक कार्यों से जुड़े कर्मियों के समक्ष लाने का मकसद यह है कि नक्सलवाद की समस्या, जिसने न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि देश के अधिकतर हिस्सों में अपना पांव पसार रखा है, वो समस्या क्या है? किस प्रकार यह राष्ट्र सुरक्षा के लिए खतरा है, के बारे में जान सकें।
पुस्तक में मैंने इन क्षेत्रों में पदस्थापना के दौरान जो नक्सलवाद को देखा एवं अनुभव किया है, उसका विवरण भी दिया गया है। पाठक जान पायेंगे कि वर्ष 2005-06 में बस्तर क्षेत्र, विशेषकर बीजापुर में क्या हालात थे। कैसे केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार की नीतियों, सुरक्षाकर्मियों की मेहनत एवं वरिष्ठ अधिकारियों के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन से आज इस लड़ाई को उस स्तर तक ले जाकर समस्या को खत्म करने तक पहुंचे हैं। इस लड़ाई में हमने सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों एवं आम जनता को खोया है।
इस पुस्तक में पाठक बस्तर (दण्डकारण्य) छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में वो दिन, बस्तर जिले के लोहांडीगुडा थाना क्षेत्र के दुर्गम पुसपाल घाट में पुलिस की पहल से सड़क निर्माण, बीजापुर में कुछ महत्त्वपूर्ण व्हीआईपी कार्यक्रम, बस्तर क्षेत्र में विधानसभा चुनाव 2018 एवं लोकसभा चुनाव 2019, आन्तरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता नक्सलवाद, नक्सलवादी विचारधारा, नक्सलवाद का मूल उद्देश्य, नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में जन-जीवन, नक्सलवाद उत्पत्ति का कारण, छत्तीसगढ़ में नक्सलवादी हिंसा, बस्तर सम्भाग में निवासरत जनजातियां, बस्तर सम्भाग में हुए आदिवासी विद्रोह, बस्तर सम्भाग में नक्सलवाद का इतिहास, लोगों का विश्वास जीतने की नक्सलवादियों की रणनीति, दण्डकारण्य क्षेत्र में प्रवेश के समय माओवादियों द्वारा अपनायी गयी रणनीति, बस्तर में नक्सलवादियों द्वारा घटित हिंसक गतिविधियां, बस्तर में नक्सलवाद की शुरुआत, नक्सलियों का हिंसक वारदात करने का तरीका, बस्तर सम्भाग में सक्रिय नक्सली संगठन, बस्तर सम्भाग में नक्सलियों द्वारा घटित प्रथम बड़ी घटनाएं, नक्सलवाद के विरुद्ध स्थानीय आदिवासियों की प्रतिक्रिया, सलवा जुडूम जन आन्दोलन के विरुद्ध नक्सलियों द्वारा हिंसात्मक घटनाएं, सलवा जुडूम जन आन्दोलन पर लगाये गये आरोप, सर्वोच्च न्यायालय का सलवा जुडूम पर राज्य सरकार को निर्देश, सलवा जुडूम जन आन्दोलन पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की राय, छत्तीसगढ़ में हुई कुछ बड़ी नक्सली घटनाएं, युवाओं को नक्सली दल में शामिल करने का तरीका, नक्सलवाद का विकास पर नकारात्मक प्रभाव, राजनीतिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव, आदिवासी संस्कृति पर प्रतिकूल प्रभाव, आर्थिक गतिविधियों पर प्रभाव, उद्योग और खनन पर हमले, असल मकसद सामाजिक उत्थान नहीं, बल्कि सत्ता हथियाना है, माओवादियों की भावी दीर्घकालीन रणनीति, नक्सलियों के खिलाफ कठोर कदम उठाये जाने की आवश्यकता है, माओवादियों द्वारा अपने कुछ ठिकानों का स्थानान्तरण, भारत सरकार द्वारा नक्सली समस्या के समाधान की दिशा में उठाये गये प्रमुख कदम, सरकार द्वारा बनाये गये लोक कल्याणकारी कानून, निगरानी और समन्वय तन्त्र में वृद्धि, राज्य सरकारों की क्षमता को बढ़ाना, पुलिस बल का आधुनिकीकरण, भारत सरकार के द्वारा प्रायोजित योजनाएं, सुरक्षा सम्बन्धी व्यय (एस.आर.ई) योजना, विशेष केन्द्रीय सहायता (एस.सी.ए), विशेष अवसंरचना योजना (एस.आई.एस.), फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशनों की योजना, वामपंथी उग्रवाद प्रबन्धन योजना के लिए केन्द्रीय एजेंसियों को सहायता, सिविक एक्शन प्रोग्राम (CAP), मीडिया योजना, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क आवश्यकता योजना-1, एलडब्ल्यूई प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क सम्पर्क परियोजना, वामपंथी उग्रवाद मोबाइल टॉवर परियोजना, आकांक्षी जिला, अवसंरचना और सामाजिक विकास परियोजनाएं, आक्रामक रणनीति-ऑपरेशन ग्रीन हण्ट, ऑपरेशन प्रहार, ऑपरेशन ऑक्टोपस, ऑपरेशन डबल बुल, ग्रेहाउण्ड, सीपीआई (माओवादी) पर प्रतिबन्ध और यूएपीए अधिनियम, 1967 का अधिनियमन, वामपंथी उग्रवाद प्रबन्धन योजना (ACALWEMS) के लिए केन्द्रीय एजेंसियों को सहायता, निगरानी तन्त्र, नक्सलवाद के उन्मूलन हेतु राज्य द्वारा प्रयास, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मूलभूत संरचनाओं के निर्माण, छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा चलाये जा रहे जन-जागरूकता अभियान, छत्तीसगढ़ में सरकार की नीतियों एवं सुरक्षा बलों की आक्रामकता का माओवादी आन्दोलन पर प्रभाव, सरकारी प्रयासों का देश में माओवादी घटनाओं पर प्रभाव, देश में नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र, भारत में नक्सलवाद की पृष्ठभूमि, भारत सरकार द्वारा उठाये गये कदम, भारत में नक्सलवादी विद्रोह के विभिन्न चरण, सीपीआई (माओवादी) का गठन, माओवादी दस्तावेज- भाकपा (माओवादी) का 'संविधान', नक्सलियों की राजनैतिक एवं सैनिक रणनीति, भारतीय क्रान्ति में माओवादियों ने जो लक्ष्य रखे हैं, माओवादियों के संगठन का ढांचा, फ्रण्टल ऑर्गनाइजेशन (अग्रिम संगठन), माओवादियों के वित्तीय स्रोत, माओवादियों के लिए हथियारों का स्रोत, पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की भूमिका, पी.एल.जी.ए की कार्य- नीति, सीपीआई (माओवादी) के अतिरिक्त सक्रिय अन्य एलडब्ल्यूई समूह, शहरी क्षेत्रों में नक्सलवाद, माओवाद समस्या के समाधान के बारे में जान पायेंगे।
हमारा देश दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और सबसे अधिक आबादी वाला लोकतान्त्रिक देश होने के नाते, भविष्य में महाशक्ति बनने की काफी सम्भावनाएं हैं। इस तेजी से वैश्वीकृत वातावरण में देश को अपनी सुरक्षा के लिए कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है। स्वतन्त्रता के बाद के वर्षों में नक्सल आन्दोलन को अकसर भारत में एक सामाजिक आन्दोलन के रूप में कहा जाता है। इस क्रान्तिकारी आन्दोलन के सदस्य ज्यादातर आदिवासी और किसान हैं, जो मानते हैं कि वे युद्ध के माध्यम से सरकार के खिलाफ युद्ध जीत सकते हैं।
स्वतन्त्रता के बाद से देश ने तीन बड़े घरेलू विद्रोहों का सामना किया है। ये विद्रोह जम्मू और कश्मीर, उत्तर पूर्व राज्यों और भारत के मध्य भागों में हुए। इनमें सामाजिक और आर्थिक वर्ग आधारित हिंसा मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में बहुत गम्भीर प्रकृति की मानी जाती है। इसको नक्सली या माओवादी विद्रोह के रूप में जाना जाता है।
पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने माओवाद को भारत की आन्तरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया है। नक्सलवाद आन्तरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। आज देश के अधिकांश राज्य नक्सली हिंसा से प्रभावित हैं। नक्सलवाद गरीब, शोषित, अधिकारहीन जनता को अधिकार दिलाने के नाम से प्रारम्भ हुआ था, किन्तु वर्तमान में यह आतंकवाद का पर्याय बन गया है। माओवाद उपेक्षा और शोषण से भड़की चिंगारी थी, जो आज ज्वाला बन गयी है, जिसमें देश का एक तिहाई हिस्सा वर्तमान में झुलस रहा है। जल, जंगल एवं जमीन के नाम से प्रारम्भ यह आन्दोलन आज रेड कॉरिडोर (लाल गलियारा) के नाम से पृथक् राष्ट्र की अवधारणा तक पहुंच गया है।
पश्चिम बंगाल राज्य के दार्जिलिंग जिले में 25 मई, 1967 को भूमि विवाद को लेकर 'नक्सलबाड़ी' गांव में तत्कालीन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के तीन लोगों-कानू सान्याल, चारु मजूमदार और जंगल संथाल के नेतृत्व में किसानों के हिंसक विद्रोह से नक्सलवाद की शुरुआत हुई थी। 'नक्सलबाड़ी' गांव के नाम से ही नक्सल या नक्सली शब्द आया है। इस विद्रोह की जड़ें काफी गहरी थीं, जो धीरे-धीरे देश के अलग-अलग हिस्सों में फैल गर्यो। नक्सलवाद नागरिक और कानून तथा शासन के लिए तो सबसे बड़ा खतरा है ही, साथ ही यह अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और विदेशी मामलों सहित कई क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है।
उग्र वामपंथ मुख्यतः देश के दर्जनों राज्य, जैसे- छत्तीसगढ़, झारखण्ड, ओडिशा, बिहार, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश तथा उत्तरप्रदेश प्रकट रूप में तथा कुछ राज्यों में अण्डर ग्राउण्ड माओवादी गतिविधियां चल रही हैं। देश के लगभग 1/6 भाग पर ये अपनी गतिविधियां संचालित कर रहे हैं तथा अपना दायरा बढ़ाते ही जा रहे हैं। जैसे-जैसे इस आन्दोलन का विस्तार हुआ, यह अपने उद्देश्यों से भटक गया है। यह विद्रोह गरीब, शोषित, अधिकारहीन जनता को अधिकार दिलाने के नाम से प्रारम्भ हुआ था, किन्तु वर्तमान में यह आतंकवाद का पर्याय बन गया है, जिसे हवा देने में हमारे कुछ पड़ोसी देशों की भूमिका भी है।
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