मानव की बुद्धि जब अत्यल्प विकसित थी तब से ही उसने अपने अस्तित्व के रहस्य तथा उसके रचयिता के स्वरूप को समझने की चेष्टा की है। इन विषयों पर प्रकाश डालना ही सभी युगों में अवतरित हुए ज्ञानी जनों का विशेष कार्य रहा है। इस बात का ज्ञान होने के कारण ही भारत की आध्यात्मिक परम्परा में सत्संग (सत् का संग) का महत्वपूर्ण स्थान है। सत्संग से साधक को प्रेरणा प्राप्त होती है और उसकी आध्यात्मिक समझ का विस्तार होता है। उसकी संगत आध्यात्मिक रूप से जितनी अधिक उन्नत होगी, उतना ही अधिक वह अपने आध्यात्मिक अनुभवों को ग्रहण करने में सक्षम होगा। परन्तु कुछ ही सौभाग्यशाली व्यक्तियों को किसी सच्ची पुण्यात्मा की व्यक्तिगत संगति में रहने का दुर्लभ सुअवसर प्राप्त होता है। यदि लोग शब्दशः अर्थ में यह समझते हैं कि सत्संग के लिए किसी संत की प्रत्यक्ष संगत में उनके साथ रहना अनिवार्य है तो उन्हें इस सौभाग्य से वंचित होना पड़ता है। परन्तु, यदि हमारी समझ में यह आ जाए कि सत्संग का मूलभूत महत्व संत की शिक्षाओं और मार्गदर्शन के प्रति साधक की ग्रहणशीलता की योग्यता में निहित है, फ़िर चाहे वह उस दिव्य आत्मा की प्रत्यक्ष संगत में हो या नहीं, तो साहित्य प्रकाश का आधुनिक माध्यम हर जिज्ञासु की साधना को सत्संग की उन्नति प्रदान करता है।
इस उद्देश्य से मानसिक अशान्ति-कारण एवं निवारण पाठक को प्रस्तुत की जाती है।
श्री श्री परमहंस योगानन्द इन पृष्ठों में आपसे बात करते हैं। उन्होंने 7 मार्च, 1952 में महासमाधि ली। मृत्योपरान्त भी उनकी देह की निर्विकारता उनके अत्यन्त उन्नत आध्यात्मिक जीवन की निरंतरता को प्रतिबिंबित करती है। वे विश्वव्यापी संगठन, योगदा सत्संग सोसाईटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़ रियलाइज़ेशन फेलोशिप के परमपूज्य गुरु एवं संस्थापक हैं। उनकी शिक्षाएँ राज-योग पर आधारित हैं, जो आत्म-ज्ञान प्राप्त करने का प्राचीन एवं सर्वोपयोगी विज्ञान है। यह संस्था श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा लिखी गई पुस्तकों एवं उनके लेखों के प्रकाशन, जिसमें वैयक्तिक अध्ययन एवं अभ्यास के लिए उनके द्वारा बनाए गए आध्यात्मिक पाठ भी सम्मिलित हैं, एवं अपने केन्द्रों, शाखाओं तथा शैक्षणिक एवं चैरिटेबल संस्थाओं के द्वारा उनकी शिक्षाओं का प्रसार करती है और अपने कार्यों का संचालन करती है। यदि इस पुस्तक के माध्यम से श्री श्री परमहंस योगानन्दजी एवं उनके द्वारा संस्थापित इस संस्था के साथ पाठक का पहली बार परिचय हो रहा है, तो महान् गुरु के साथ इन पाठों में प्राप्त होने वाले सत्संग का अनुभव एक गहनतर समझ एवं निरन्तर सम्बन्ध का आरम्भ सिद्ध हो सकता है।
किसी भी लेख की सार्थकता उसके द्वारा दिए जाने वाले संदेश को पाठकों तक पहुँचाने की योग्यता में निहित है; संदेश की प्रामाणिकता लेखक की योग्यता में निहित है। इस पुस्तिका में जो कुछ दिया गया है वह तो स्वयं ही अपनी सार्थकता सिद्ध करेगा; लेखक की योग्यता उनके द्वारा लिखित योगी कथामृत को चिन्तन, मनन के साथ पढ़ने से आसानी से स्वयं ही समझ में आ जाती है। योगी कथामृत एक ऐसे व्यक्ति के जीवन की कथा है जिसके लिए सत् केवल एक तथ्य नहीं बल्कि जीवन्त अनुभव था।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu ( हिंदू धर्म ) (12489)
Tantra ( तन्त्र ) (987)
Vedas ( वेद ) (705)
Ayurveda ( आयुर्वेद ) (1888)
Chaukhamba | चौखंबा (3349)
Jyotish ( ज्योतिष ) (1442)
Yoga ( योग ) (1092)
Ramayana ( रामायण ) (1389)
Gita Press ( गीता प्रेस ) (731)
Sahitya ( साहित्य ) (23027)
History ( इतिहास ) (8218)
Philosophy ( दर्शन ) (3370)
Santvani ( सन्त वाणी ) (2532)
Vedanta ( वेदांत ) (121)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist