नेताजी कहिन
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मनुष्य समाज कीसबसे महान उपलब्धि रही-स्वीधीनता, समानता, और भ्रातृत्व जैसे महान मूल्य, अर्थात् लोकतंत्र की माँग। भारत भी इस संघर्ष मेंपीछे नहीं रहा। लोकतंत्र की स्थापना हुई। लेकिन शब्द बदल गए। स्वधीनता,समानता और भ्रातृत्त की जगह `चोर चतुर बटमार नट प्रभुप्रिय भँडुआ भंड' स्थापित हुएऔर लोकतंत्र ने एक दोहा पढ़ा-`रहिमन सिट सायलेण्टली' और फिर जनतंत्र का सार-तत्व नेताजी की वाणी में मुखरित हो उटा-``डेमाक्रेसी में क्या हय, कोशिश करने से इन्सान कुछ भी बन सकता हय। सामन्तसाही नहंी हय ससुरी कि अयासी सामन्तै कर सकेगा, अउर कउनो नाहीं।'' और इसी के लिए भारत का मुक्तिसंग्राम लड़ा गया था! असल में यह आवाज नेताजी के के कंट से नहीं फूटी-ये तो बही जनतांत्रिक मूल्य हैं, जो चीख रहे हैं, कराह रहे हैं, जिनके हास्य के पीछे इस महादेश के क्षत-विक्षत होते जाने की पीड़ा का सागर लहरा रहा है। और व्यंजना की ये अर्थच्छवियाँ ही मनोहरश्याम जोशी के प्रभावशाली गद्य की पहचान है, जिनमें व्याप्त चेतना का तरल बोध हमें प्रकाश है।
जीवन परिचय
मनोहर श्याम जोशी
9 अगस्त, 1933 को अजमेर में जन्मे, लखनऊ विश्वविद्यालय के विज्ञान स्नातक मनोहर श्याम जोशी 'कल के वैज्ञानिक' की उपाधि पाने के बावजूद रोजी-रोटी की खातिर छात्र जीवन से ही लेखक और पत्रकार बन गए ।अमृतलाल नागर और अज्ञेय-इन दो आचार्यो का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ । स्कूल मास्टरी, क्लर्की और बरोजगारी के अनुभव बटोरने के बाद 21 वर्ष की उम्र से वह पूरी तरह मसिजीवी बन गए।
प्रेस, रेडियो, टीवी. वृत्तचित्र, फिल्म, विज्ञापन-सम्प्रेषण का ऐसा कोई माध्यम नहीं जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन-कार्य न किया हो । खेल-कूद से लेकर दर्शनशास्त्र तक ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर उन्होंने कलम न उठाई हो । आलसीपन और आत्मसंशय उन्हें रचनाएँ पूरी कर डालने और छपवाने सै हमेशा रोकता रहा है । पहली कहानी तब छपी जब वह अठारह वर्ष के थे लेकिन पहली बड़ी साहित्यिक कृति तब प्रकाशित करवाई जब सैंतालीस वर्ष के होने को आए ।
कैन्द्रीय सूचना सेवा और टाइम्स ऑफ इंडिया समूह से होते हुए सन् '67 में हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन में साप्ताहिक हिन्दुस्तान के संपादक बने और वहीं एक अंग्रेजी साप्ताहिक का भी सपादन किया । टेलीविजन धारावाहिक 'हम लोग' लिखने के लिए सन '84 में संपादक की कुर्सी छोड़ दी और तब से आजीवन स्वतंत्र लेखन करते रहें ।
प्रकाशित कृतियाँ : कुरु-कुरु स्वाहा कसप हरिया हरक्यूलीज की हैरानी? हमज़ाद क्याप ट-टा प्रोफैसर (उपन्यास); नेताजी कहिन (व्यंग्य); बातों-बातों में (साक्षात्कार); एल्म 'नभ व्यक्तित्व कैसे किस्सागो मन्दिर घाट की पैड़ियाँ (कहानी-संग्रह); पटकथा लेखन. एक परिचय (सिनेमा) । टेलीविजन धारावाहिक : हम लोग बुनियाद मुंगेरीलाल के हसीन सपने कक्काजी कहिन हमराही जमीन-आसमान फिल्म : भ्रष्टाचार और अप्पू राजा।
सम्मान : उपन्यास क्याप के लिए वर्ष 2005 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार सहित' शलाका सम्मान (1986-87); शिखर सम्मान (अट्ठहास,1990); चकल्लस पुरस्कार (1992); व्यंग्यश्री सम्मान (2000) आदि अनेक सम्मान ।
निधन : 30 मार्च, 2006
अनुक्रम
नेताजी का निधारित लक्ष्य : एक करोड़ रुपया
9
टाप नेता के कुण्डलियो टाप सीक्रेट होवत हय ससुर
12
सारा सवाल सही सइटिंग का हय
17
सख्त पदारथ या जग माँही
20
डफ-नेटली मोर गुड मेन
24
देस का ये होगा जनाबेआली
28
देस की हर कुर्सी चूँ-चूँ-चरमर हय
34
जीत मामा जीत
38
अटमासफीअर फ्रण्डली राखे का चाही
43
ऐ मे ले ओ मे ले ओ हू मे ले
47
किर्रु लयवल हय हिन्दी साहित्त
51
रहिमन सिट सायलेण्टली
56
हार्ट-पुटिंग कौसलपुर किंगा
61
जब इण्टरटेन्मेण्ट हइयै नाही बा तब टिक्सुआ काहे का
65
चोर चतुर बटमार नट प्रभुप्रिय भँडुआ भण्ड
71
सवन हवसिन नाइट-डे मोसन
76
अरे बुलबुलों को हसरत है उल्लू न हुए
81
गेंदवा गोड़वा पर ल्य, जीयत रहा बचवा
84
ब्रेनिज बिगर दयन बफलो योग अक्सलण्टीज
89
जुग-जुग चालत चाम को
97
वन्द हमरे इयार की सादी हय
102
लास-गेन डाइन-लिविन, फेम-ब्लेम हिज हैण्ड
134
99.99 परसण्ट ई डबल निनानबे का फेर बा
139
अरे बनाहिने से तो बनिहै बायो-ग्राफी
148
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