अनुवाद और मीडिया, राष्ट्र और भाषा की सरहदों के आर-पार जाता एक संप्रेषण सेतु है। सरहदों के आर-पार सांस्कृतिक उपादानों की आवाजाही मीडिया और अनुवाद के माध्यम से होती है। अनुवाद, जनसंचार माध्यमों की संप्रेषणीयता को और अधिक बढ़ा देता है। मीडिया जनित सामाजिक स्मृति की जड़ें मानव- मस्तिष्क में बहुत गहरी होती हैं। अनुवाद इन जड़ों को विस्तार के साथ-साथ अमरता प्रदान करता है।
मीडिया के माध्यम से अनुवाद एक समानांतर पाठ निर्मित करने की संभावना रखता है। यह प्रतिनिधित्व भी है, संचरण भी और सांस्कृतिक अंतरण भी। नैतिकता, विचारधारा और राजनीतिक सशक्तिकरण के साथ-साथ वर्चस्व की राजनीति किस तरह अनुवाद की दिशाओं को तय कर रही हैं, उसका मूल्यांकन भी इस पुस्तक का एक लक्ष्य है। मीडिया अनुवाद में सांस्कृतिक अध्ययन और भाषाई दृष्टिकोण एक पूरक और समानांतर रणनीति तैयार करने में सफल हुए हैं।
अनुवाद ने अंतः मानवीय संप्रेषण के विकास में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। विश्व स्तर पर जैसे- जैसे व्यापार बढ़ा वैसे ही वैसे अनुवाद की महत्ता भी बढ़ती चली गई। व्यावसायिक अनुवाद के व्यावहारिक पक्ष को सुनियोजित और व्यवस्थित दृढ़ता प्रदान करने के लिए सैद्धांतिक और शोध प्रधान अध्ययन की आवश्यकता है। मीडिया ऐसा क्षेत्र है जो व्यावहारिक व व्यावसायिक दुनिया है। एक ऐसा उद्योग जहाँ संप्रेषण और कारगर संप्रेषण ही प्रधान व्यापारिक गतिविधि है। जनसंचार माध्यमों से अनुवाद का जुड़ना उसे विश्व फलक तक पहुँचा देता है जहाँ मुनाफा कई गुना बढ़ जाता है। आज दृष्टिकोण, विचारधारा, अहसास और यहाँ तक कि स्वाद तंतुओं तक भी हम पूरी तरह विश्व नागरिक में तब्दील हो चुके हैं। भाषा अब बहुत बड़ी अड़चन और समस्या नहीं रह गई है। भाषा की घेरेबंदी को अनुवाद ने तोड़ दिया है।
डॉ. मंजु मुकुल
जन्मतिथि: 18 अगस्त 1974 (दिल्ली)
शिक्षा: एम.ए., एम.फिल., पीएच.डी. (हिंदी), दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली।
प्रकाशित पुस्तकेंः
बयान बाहर से पुनर्संभवा तक (डॉ. सुखबीर सिंह की अनंतर काव्य-यात्रा)
संप्रेषणः चिंतन और दक्षता
भारतीय साहित्यः भाषा, मीडिया और संस्कृति
हिंदी की लंबी कविता का शिल्प (एक समाजभाषा वैज्ञानिक अध्ययन)
सांझी सांस्कृतिक विरासत के आईने में भारतीय साहित्य
भारतीय साहित्य और सर्जनात्मकता
National University of Education Planning and Administration, A Transformational Journey
शोध कार्य: मेजर रिसर्च प्रोजेक्ट (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग)
विषयः वर्तमान हिंदी जनसंचार माध्यमों में अनुवाद की प्रक्रिया का भाषिक विश्लेषण
लेखः विविध पत्र-पत्रिकाओं में आधुनिक हिंदी साहित्य, दलित साहित्य, भाषा, अनुवाद, संप्रेषण आदि विषयों पर लेख प्रकाशित। संप्रतिः प्रोफेसर, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय।
अनुवाद और मीडिया, राष्ट्र और भाषा की सरहदों के आर-पार जाता एक सप्रेिषण सेतु है। सरहदों के आर-पार सांस्कृतिक उपादानों की आवाजाही मीडिया और अनुवाद के माध्यम से होती है। अनुवाद, जनसंचार माध्यमों की संप्रेषणीयता को और अधिक बढ़ा देता है। मीडिया जनित सामाजिक स्मृति की जड़ें मानव-मस्तिष्क में बहुत गहरी होती हैं। अनुवाद इन जड़ों को विस्तार के साथ-साथ अमरता प्रदान करता है।
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