बनारस के साड़ी-बुनकरों पर केन्द्रित अब्दुल बिस्मिल्लाह का यह उपन्यास हिंदी कथा -साहित्य में एक नए अनुभव-संसार को मूर्त करता है और इस अनुभव-संसार में साड़ी-बुनकरों की जिस अभावग्रस्त और रोग-जर्जर दुनिया में हम मतीन, अलीमुन और नन्हे इक़बाल के सहारे प्रवेश करते है, वहाँ मौजूद है रउफ चचा, नजबुनिया बुआ, रेहाना, कमरुन, लतीफ़, बशीर और अल्ताफ जैसे अनेक लोग, जो टूटते हुए भी साबुत है-हालात से समझौता नहीं करते, बल्कि उनसे लड़ना और उन्हें बदलना चाहते है और अन्ततः अपने इस चाहत को जनाधिकारो के प्रति जागरूक अगली पीढ़ी के प्रतिनिधि इक़बाल को सौप देते है | इस प्रक्रिया में लेखक ने शोषण के उस पूरे तन्त्र को भी बारीकी से बेनकाब किया है जिसके एक छोर पर है गिरस्ता और कोठीवाल तो दूसरे छोर पर भ्रष्ट राजनितिक हथकण्डे और सरकार की तथाकथित कल्याणकारी योजनाएँ | साथ ही उसने बुनकर-बिरादरी के आर्थिक शोषण में सहायक उसी की अस्वस्थ परम्पराओ, सामाजिक कुरीतियों, मजहबी जड़वाद और साम्प्रदायिक नज़रिये को भी अनदेखा नहीं किया है |
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu ( हिंदू धर्म ) (12492)
Tantra ( तन्त्र ) (986)
Vedas ( वेद ) (705)
Ayurveda ( आयुर्वेद ) (1890)
Chaukhamba | चौखंबा (3352)
Jyotish ( ज्योतिष ) (1442)
Yoga ( योग ) (1093)
Ramayana ( रामायण ) (1389)
Gita Press ( गीता प्रेस ) (731)
Sahitya ( साहित्य ) (23045)
History ( इतिहास ) (8221)
Philosophy ( दर्शन ) (3378)
Santvani ( सन्त वाणी ) (2531)
Vedanta ( वेदांत ) (121)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist