एक रचनाकार को अपने सर्जनात्मक या ललित लेखन में प्रासंगिक विषा से सम्बन्धित हिन्दी के शब्दों का उपयोग अपनी कृति में करना पड़ता है। सही शब्द का चुनाव रचना की शैली को आकर्षक बनाने के लिए अति आवश्यक होता है। ऐसे कोश की आवश्यकता वर्षों से महसूस की जा रही थी जिसमें हिन्दी की प्रविष्टि के साथ उसका हिन्दी में व्याख्यात्मक अर्थ तथा उन्हीं संदर्भों में अंग्रेजी के समानांतर पर्याय भी दिए गए हों एवं जिनका व्यवहार जीवन के सामान्य कार्य, वार्तालाप, लेखन एवं शिक्षण में औसत शिक्षित लोग प्रतिदिन करते हैं।
भाषा एक ऐसा माध्यम है जो विभिन्न भाषा-भाषियों को निकट लाने और उनमें भावनात्मक एकता उत्पन्न करने में एक सुगम सेतु का कार्य करता है। इसके लिए आवश्यक है कि भाषा के आधार पर आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया जाय ।
पिछले तीन दशकों से सांस्कृतिक मानव विज्ञान पर, विशेष रूप से भारत के आदिबासी समाज के सम्बन्ध में, अनेक दूरस्थ क्षेत्रों में जाकर गहन शोष एवं लेखन में डूबे रहने के कारण, अन्य दिशा में विचार करने का मौका ही नहीं मिल पाया । यद्यपि कि मैं गत दो दशकों से हिन्दी की सेवा में कार्यरत एवं हिन्दीतर क्षेत्रों के लेखकों, शिक्षकों एवं विद्यार्थियों की हिन्दी की कठिनाइयों से भली-भांति परिचित रहा हूं, फिर भी मैंने यह संकल्प केवल दस वर्ष पूर्व ही किया कि एक ऐसे कोश का निर्माण करना अति आवश्यक है जिसकी उपयोगिता व्यावहारिक हो ।
इसी लक्ष्य को सामने रखकर इस व्यावहारिक कोश की योजना बनी। इस कोदा में ऐसे शब्दों को लिया गया है जो सामान्य जनता के दैनिक व्यवहार में आते है और स्कूल-कालेज की पाठ्य-पुस्तकों में भी जिनका प्रयोग किया जा रहा है। साथ ही इस कोण में हिन्दी में बहीत अरबी, फारसी और अंग्रेजी के शब्दों को भी लेने का प्रयास किया गया है। विभिन्न भावों, विचारों और क्रियाओं को व्यक्त करने वाले संकल्पनामूलक शब्दों के अतिरिक्त नामवाची शब्दों को भी लेने की पूरी चेष्टा की गई है। हिन्दी की मुख्य प्रविष्टि के साथ उसका व्याख्यात्मक अर्थ दिया गया है और इन्ही अर्थों को ध्यान में रखकर अंग्रेजी भाषा के पर्याय भी दिए गए हैं।
शब्दों की सीमित संख्या को ध्यान में रखते हुए पुलिग अथवा स्त्रीलिंग रूप नहीं दिए गए हैं। कोश में जहाँ मुख्य प्रविष्टि के पर्यायों का एक से अधिक अयों में प्रयोग हुआ है, वहां अर्ष विराम (;) तथा जहाँ एक ही अर्थ में अनेक पर्याय है, वहाँ अल्प विराम (,) से इंगित किया गया है। शब्दों का चुनाव उनकी प्रयोग-बहुलता तथा प्रयोग क्षेत्र की व्यापकता के आधार पर किया गया है।
कोश में इस प्रकार के लगभग 5,500 शब्दों को लिया गया है। इस प्रकार के कोश की रचना का यह प्रारम्भिक प्रयास है। दूसरे शब्दों में मैं यह कह सकता हूं कि यह एक नया प्रयोग है और शायद इसकी सबसे बड़ी सार्थकता यही है कि इसका निर्माण व्यावहारिक प्रयोग की दृष्टि से किया गया है।
इस दृष्टि से मुझे अपनी सीमाओं का भली प्रकार से ज्ञान है तथा इसमें रह जाने वाली त्रुटियों की संभावना का भी मुझे पूरी तरह से ऐहसास है। इसलिए इस व्यावहारिक कोश को सुविज्ञ बिद्वानों, लेखकों, विद्याथियों, शिक्षकों एवं जनसामान्य के सम्मुख इस आशय से प्रस्तुत कर रहा हूं कि वे इसमें पाई गई त्रुटियों की ओर मेरा ध्यान आकृष्ट करेंगे जिससे अगले संस्करण में इसे दूर किया जा सके ।
इस कोश के निर्माण में हिन्दीतर भाषी प्रदेशों के अनेक लेखकों, लेखिकाओं, साहित्यकारों, शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने अविस्मरणीय सहयोग दिया है। विशेष रूप से मेरे अन्तरंग मित्र डॉ० पी० के० बालासुब्रामनियन, मद्रास; डॉ० पी० आर० रुक्माजी राव 'अमर', मद्रास तथा प्रोफेसर व्रजमोहन चतुर्वेदी, दिल्ली का हादिक रूप से आभारी हूं जिन्होंने कोश की पाण्डुलिपि का अवलोकन कर महत्वपूर्ण सुधार किया तथा उपयोगी परामर्श दिया ।
मैं अपने हितैषी मित्र डॉ० विशालप्रसाद त्रिपाठी, दिल्ली का भी आभारी हूं, यदि वे वर्षों तक नियमित रूप से आकर मेरे असंख्य प्रश्नों का उत्तर देते-देते थक जाते तो प्रस्तुत कोश कहीं अधिक त्रुटिपूर्ण रह जाता ।
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