पुस्तक के विषय में
प्रभुपाद, राक - दामोदर मन्दिर में, का सराहनापूर्ण मूल्याँकन
सत्स्वरूप दास गोस्वामी द्वार
मेरे विचार में श्रील प्रभुपाद का हर एक अनुयायी प्रभुपाद, राधा-दामोदर मन्दिर में पुस्तक को पढ़ना चाहेगा। यह एक महत्वपूर्ण साहित्यिक निर्देशिका है, जो कि भक्तों को प्रभुपाद के वृन्दावन, भारत में राधा-दामोदर मन्दिर वाले कमरों का वास्तविक भ्रमण कराती है। वे जो कि शारीरिक रूप से भारत का भ्रमण नही कर पाते, इस पुस्तक के माध्यम से, मन की शक्ति द्वारा, ध्यान लगाकर भ्रमण कर सकते है, तथा इस पुस्तक को धन्यवाद दे सकते है।
क्रमश: शुरूआत राधा-दामोदर मन्दिर के इतिहास के साथ होती है, आरम्भ में ही हम समझते है कि राधा-दामोदर मन्दिर के कमरों का मूल्यांकन अकल्पनीय है । उनके विषय में सुनने से तथा प्रभुपाद के वृन्दावन के विषय में सुनने से, हम प्रभुपाद की गतिविधियो के आन्तरिक अभिप्राय का परिचय पाते है, जो कि हम में से बहुत से लोगों को प्रकट या मालूम नहीं है । हम प्रभुपाद की प्रशंसा भक्तिवेदान्त तात्पर्यों के लेखक, तथा संसार के नेता, और इस्कॉन आन्दोलन के उद्घाटक के रूप में करते है, परन्तु प्राय : कितनी बार हम उनके रूप गोस्वामी के उपासक के गोपनीय भाव का तथा राधा-कृष्ण की वृन्दावन लीलाओं के गोपनीय भाव का चिन्तन करते है?
प्राय: कितनी बार हमने अपनी मन की आँखों द्वारा (साथ ही छाया चित्रो में) देखने की कोशिश की, कि वास्तव में प्रभुपाद क्या एक शुद्ध हृदय वाले साधु जैसे ही थे, जब वह सन् 1966 में अमरीका आने से पूर्व वृन्दावन में रह रहे थे? इन सब गुज सच्चाइयों की झलक प्रभुपाद, राधा-दामोदर मन्दिर में पुस्तक के पृष्ठों में प्राप्त होती है ।
भूमिका
''मै शाश्वत रूप से राधा-दामोदर मन्दिर के कमरों में वास करता हूँ'' यह वाक्य श्रील प्रभुपाद के द्वारा कई बार कहा गया। इसका तात्पर्य यह हुआ कि वे दोनो कमरे जिन में श्रील प्रभुपाद ने अपना दस प्रतिशत से अधिक जीवन व्यतीत किया, तथा राधा-दामोदर मन्दिर, श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद के शिष्यों एंव अनुयायियों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है । निष्कपट आत्माएँ यहाँ पर प्रभुपाद की उपस्थिति का अनुभव स्पष्टत: कर सकती है। किन्तु जो अभक्त है, वह नही; जिस प्रकार एक दिव्यात्मा सूर्योदय के समय तुलसी मन्जरियो की भीनी सुगन्ध का अनुभव कर सकती है, किन्तु अभक्त नहीं ।
1959-1972 के मध्य में, श्रील प्रभुपाद ने यहाँ कई विलक्षण लीलाएँ की, तथा 1977 में अपने तिरोभाव तक वे निरन्तर अपने राधा-दामोदर मन्दिर के कमरो के विषय में बोलते रहे ।
प्रभुपाद, राधा-दामोदर मन्दिर में, का आरम्भ मन्दिर के इतिहास के एक विवरण के साथ होता है, और इसका अन्त, राधा-दामोदर मन्दिर में, श्रील प्रभुपाद के जीवन के व्यक्तिगत अनुभवों तथा शिक्षाओं के साथ होता है।
श्रीमद्भागवतम् में देवताओं के विषय में एक कथा है, जिन्होंने लाखों वर्ष पूर्व क्षीर सागर का मंथन, कई चमत्कारिक वस्तुओं की उत्पत्ति के लिए किया था, जिनमें से एक चन्द्रमा के समान सफेद व अति सुन्दर घौडा था, एक अति विशाल चार दाँत वाला हाथी, दुर्लभ आलौकिक रत्न, श्री लक्ष्मीदेवी- भाग्य की देवी, तथा अन्ततः सोमरस । इसी प्रकार यह पुस्तक भी प्रभुपाद जी की पूर्वकालिक लीलाओं के सागर का मंथन करने का एक लघु प्रयास है । चूँकि, अमृत की वास्तविक प्रकृति है - मृत्यु आसन्न व्यक्ति को नवजीवन तथा जीवित को आनन्दकारी स्फूर्ति प्रदान करना, इसी प्रकार यह पुस्तक भी आशानुरूप उनके सौभाग्य की वृद्धि कर देगी, जो इसके रास का पान करेगे ।
यह पुस्तक राधा-दामोदर मन्दिर में श्रील प्रभुपाद के कमरों में एक वर्ष तक रहने और सेवा द्वारा प्राप्त अनुभवों का परिणाम है । इसका अनुभव मुझे इसलिए हुआ क्योंकि मेरा हृदय स्वार्थ युक्त अशुद्ध इच्छाओं से भरा है, व श्रील प्रभुपाद के प्रतिश्रद्धा से रहित है । किन्तु मुझे विश्वास है कि यह प्रयास मेरे हृदय को निर्मल कर देगा, क्योंकि प्रभुपाद ने यह कहा है कि, '' व्यक्ति को स्वंय की आत्मशुद्धि के लिए लिखना चाहिए। ''
इसके अतिरिक्त श्रील कृष्णदास कविराज भी चैतन्य चरितामृत में प्रेरित करते है । नित्यानन्द प्रभु, अद्वैत प्रभु और श्री गदाधर पण्डित जैसे कई महान गौड़ीय वैष्णवों की स्तुति करते हुए वे कहते है,'' केवल इन वैष्णवों के नामों के स्मरण मात्र से ही कोई भी चैतन्य-महाप्रभु के चरण कमलो की प्राप्ति कर सकता है । वास्तव में, मात्र उनके दिव्य नामों के स्मरण द्वारा ही, किसी की भी समस्त इच्छाओं की पूर्ति हो सकती है। '' (आदिलीला 9/5)
श्रीमद्भागवतम् 3 .28 18 के तात्पर्य में, श्रील प्रभुपाद इसी विषय को विस्तृत करते है, '' जिस प्रकार कोई भगवान् के दिव्यनामो के कीर्तन द्वारा शुद्ध होता है, उसी प्रकार कोई केवल शुद्ध भक्त के नाम के कीर्तन द्वारा भी पवित्र हो सकता है । भगवान् के शुद्ध भक्त तथा भगवान् में कोई अन्तर नही है। कभी-कभी यह उचित भी है कि शुद्ध भक्त के नामों का कीर्तन किया जाए। यह एक बहुत ही पवित्र प्रक्रिया है। ''
श्रील प्रभुपाद शुद्ध भक्त है, परम पिता परमेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण के शतप्रतिशत शुद्ध भक्त । ये सब शास्त्रिक प्रमाण सूचित करते है कि, श्रील प्रभुपाद के विषय में श्रवण तथा स्मरण करके, कोई भी पवित्र होकर, श्रीचैतन्य महाप्रभु की कृपा प्राप्त कर अपनी समस्त आध्यात्मिक इच्छाओं को पूर्ण कर सकता है । यह पुस्तक श्रील प्रभुपाद के नाम तथा यश से परिपूर्ण है । ।
मै श्रील प्रभुपाद, श्रील जीवगोस्वामी, श्रील रूपगोस्वामी तथा श्री- श्री राधा-दामोदर से यह प्रार्थना करता हूँ कि वे मेरी इच्छा पूर्ण करें कि, मै किसी दिन, किसी प्रकार श्रील प्रभुपाद का भक्त बन सकूँ।
प्रभुपाद, राधा-दामोदर मन्दिर में, पुस्तक का समस्त विवरण श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों, टेपो तथा पत्रों से उद्धृत किया है। भाक्तिवेदान्त बुक ट्रस्ट के प्रकाशन, प्रभुपाद लीलामृत (लेखक सतस्वरूप दास गोस्वामी) ने भी महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान की है। इस कार्य के अलावा, इसकी अपूर्व विशेषता है प्रभुपाद जी के शिष्यों, गुरूभाइयों, उन्नत गौड़ीय वैष्णवों तथा प्रभुपाद जी को जानने वाले ब्रजवासियों के साथ निजी साक्षात्कार।
पाठकगण प्रभुपाद की कई नई लीलाओं को सुनेगे, तथा वृन्दावन के छह गोस्वामियों के विषय में तथा उनके राधा-दामोदर मन्दिर के प्रति व्यवहार के विषय में कई रोचक विवरणों द्वारा शिक्षा प्राप्त करेगें।
यह सम्भव नही है कि साक्षात्कारों में उल्लेखित लीलाओं की जाँच ठीक से की जा सके, क्योंकि बहुत से उल्लेखों में केवल दो ही व्यक्ति मौजूद थे, प्रभुपाद तथा लीला का वर्णन करने वाला । तथापि यह पुस्तक केवल उन्हीं लीलाओं को सम्मिलित किए हुए है जो कि हमारे शाश्वत उपदेशक तथा सर्वदा हितैषी श्रील प्रभुपाद के श्रेष्ठ भाव, जीवन के उद्देश्य तथा पवित्र चरित्र को प्रतिबिम्बित करती है।
विषय-सूची
0
1
रूप गोस्वामी और दामोदर जी
3
2
जीव गोस्वामी द्वारा राधा-दामोदर मन्दिर में प्रवचन
6
श्री- श्रीराधा - दामोदर मन्दिर
9
4
स्मरणीय वृन्दावन
13
5
वृन्दावन वानप्रस्थ लीलाएँ
18
राधा-दामोदर में सन्यास के वर्ष
21
7
राधा-दामोदर की ओर वापसी
33
8
घरेलू स्वामी जी
35
कार्तिक, राधा- दामोदर में
39
10
आध्यात्मिक जगत का केन्द्र
51
11
मेरा शाश्वत आवास
54
12
प्रभुपाद की योजना
56
आभार
62
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