पुस्तक परिचय
अथर्ववेद में बताए गए उपयोगी रत्नो नगों और नगीनों को धारण करने से सोया भाग्य जगत। है, ऐसा वेद वचन है।कौन सा रत्न पहनें? किस हाथ में कौन सी अंगुली मे पहनें? हाथ के अलावा कहां पहने? रत्न पहनने से क्या लाभ होगा? इत्यादि प्रश्नों का वेदोक्त समाधान प्रस्तुत करने वाले इस ग्रन्थ मे खास तौर पर आपके लिए मधुकरवृत्ति से चुन चुनकर इन बिन्दुओं पर सरल व सुबोध शैली में विचार किया गया है-
अपना भाग्यशाली रत्न खुद चुन सकने के सुबोध तरीके,
नौ ग्रहों के रत्नों में से कौन से रत्न शुभ व लाभ देने वाले हैं,
नगों और नगीनों के अतिरिक्त वनस्पति रत्नों का अथर्ववेदीय विवेचन,
जन्मपत्री की गहरी पड़ताल किए बिना ही केवल अपने लग्न या राशि के आधार पर अनुकूल रत्नों का निश्चय,
राशि के आधार पर व्यक्ति के मूलभूत गुणों और विशेषताओं की खिलावट,
जन्म समय में ग्रह किस भाव में स्थित है, इस आधार पर रत्न पहनने के शुभ अशुभ फलों का खुलासा,
रत्न न पहन पाने की स्थित में रत्नों के जल से और रत्नों को सहेजकर रखने भर से ही भाग्योदय के आसान तरीके,
रोगशान्ति के लिए रत्नों का व्यापक उपयोग: वैज्ञानिक नजरिया,
सब ग्रहों के सस्ते मुख्य उपरत्नों का विवरण,
अनुकूल ग्रह के साथ बैठे ग्रहों से रत्नधारण के फल में उतार चढ़ाव का लेखाजोखा,
ग्रहों की शुभता का आधार: रत्नों की रासायनिक संरचना या उनका रंग,
अपने खानपान में रत्नतुल्य वनस्पतियों और साग सब्जियों को शामिल कर ग्रहों की शुभता बढ़ाकर भाग्य की अनुकूलता पाने के आसान सोपान,
सब कुछ ऋषियों मुनियों और वेद मन्त्रों के आधार पर निर्णय,
रत्नों में ग्रहों की दैवी शक्ति,
रत्नों के बारे में अजब गजब विश्वास,
ज्योतिष का व्यवसाय करने वाले लोगों के साथ-साथ आम लोगों के लिए भी बराबर उपयोगी रचना,
सरल सुबोध हिन्दी में अवश्य पठनीय: आधुनिक वैज्ञानिक नजरिया: सुनिश्चित लाभ।
दो शब्द
ठेठ वैदिक युग से आज तक रत्न, नग नगींने पहनना हमारे भारतीय उपमहाद्वीप में सिर्फ सजने संवरने का और विरासत में बढ़ोत्तरी का एक जरिया भर न होकर किस्मत जगाने का प्रभावी उपकरण माना जाता रहा है। जितना मोह नगों के प्रति इस भूभाग में है, उतना शायद कहीं नही है। संस्कृत में धरती को वसुन्धरा रत्नगर्भा, वसुधा (वसु-धन को भीतर रखने या धारण करने वाली) कहा जाता है। इससे ज्ञात होता है कि बहुत प्राचीन काल में ही खनिज रत्नों की जानकारी भारतवासियों को थी । अथर्ववेद में लगभग 90 से अधिक रत्नों या मणियों को धारण करने के प्रभाव बताए गए है। पता चलता है कि वैदिक काल से ही यहां रत्नों के विषय में जानकारी ही नहीं थी अपितु उनका व्यापक व्यापार व प्रयोग भी होता था। ईसा की अठारहवीं सदी में ब्राजील की खानों के खुलने से पहले तक भारत, श्रीलंका और तुर्किस्तान का अच्छे रत्नों के बारे में डंका बोलता था। प्लिनी, पेरिप्लस, मार्कोपोलो, फ़ायर जॉर्डेनस के ग्रन्थों, विलिया डिस्किप्टा, हक्युलेत सोसायटी के प्रकाशनों में उक्त बात की पुष्टि की गई है। पश्चिमी देशों मे भी रत्नों का औषधीय और भाग्यवर्धक प्रभाव माना जाता रहा है।
ईसाईयों की कई एक धार्मिक पुस्तकों (Book of Genesis, etc.) में अनेक रत्नों का प्रंशसापरक वर्णन है।ईसा से पूर्व का एक विवरण मिलता है, जिसमें मुख्य पादरी को 12 रत्नों जड़ी प्लेट गले में पहनने का निर्देश है।मायकेल विस्स्टीन और विल्सन ने तो अपनी पुस्तकों में इनके नाम व जड़ने का कम भी दिया है।बाइबिल में स्फटिक (Crystal) माणिक्य (Ruby) और अथर्ववेदीय अम्बर (Amber) का साफ उल्लेख है।नीलम पहनने से मन में आने वाली काम-वासनाओं से पादरी लोग बचे रहते हैं, ऐसा विश्वास प्रचलित रहने का भी उल्लेख मिलता है। बाइबल में ही एक स्थान पर कहा गया है कि सती पतिव्रता स्त्री के सामने सैकड़ों माणिक्य यानि लाल भी तुच्छ है-
Who can find a virtous woman? For the, pric is far above rubies.
रत्नों में कोर्ट दैवी शक्ति या बरकत रहती है, ऐसा कहना कोई चण्डूखाने की गप नहीं है। पुराणों की स्यमन्तकमणि के कारण कितने लोग यमलोक सिधारे, इसका उल्लेख मिलता है। इसी के चुराने के चक्कर में बेचारे चौथ के चांद की बदनामी हुई है। यहां तक कि लोगों में विश्वास घर कर गया है कि चौथ के चांद को देखने से व्यक्ति पर झूठा आरोप लगता है। कोहेनूर के कारण चालाकियां व युद्ध होते रहे हैं। होप हीरे को क्यों दुर्भाग्य का प्रतीक माना जाता है? यह नाम पड़ने से पहले लगभग 300 सालों पूर्व बर्मा के पैगोडा में एक प्रतिमा की आख से चुराया गया और जिसके पास भी गया, वही नष्ट होता गया। अन्त में होप परिवार के पास आने पर इसका यह नाम पड़ा। इसके बाद भी यह नीले रंग का हीरा जिसके पास भी गया उनमें से किसी ने आत्महत्या की तो कोई राज क्रान्ति में सूली पर चढ़ा दिया गया। किसी की हत्या हुई तो तुर्की के सुल्तान को तो अपनी राजगद्दी खोनी पड़ी। आखिरी जानकारी के अनुसार इसे 1 व 11 में एक धनी अमेरिकी एडवर्ड वील ने खरीदा और उन्हें भी अपने पुत्र को एक कार दुर्घटना में खोना पड़ा। इससे पता लगता है कि रत्नों में कोई न कोई अदृश्य शक्ति होती है।
अपनी सफलता का रास्ता आसान करने के लिए सदा से रत्नों का प्रयोग होता रहा है और जब तक यह दुनिया कायम है, तब तक होता रहेगा। पुराने समय से ही इनका सम्बन्ध ग्रहों और भाग्य से जोड़ा जाता रहा है। इनके पहनने से कैसे शुभ फल मिलते हैं, इस तरह के कई एक क्यों और कैसे का उत्तर इस पुस्तक में देने का प्रयत्न किया गया है।
सदा की तरह विशाल और बहुआयामी हिन्दुस्तानी साहित्य रूपी अपनी जड़ों को मजबूती से थामे हुए और आधुनिक सरोकारों से पूरी ईमानदारी के साथ आखें चार करते करते जो कुछ भी श्रेय और प्रेय हमें मिला, उसे आम भाषा में जनसामान्य के हित के लिए प्रस्तुत कर दिया है।उपायज्योतिष श्रृंखला में लिखे गए अन्य पिछले ग्रन्थों की तरह इस पुस्तक में भी अटकल- पच्चू तुक्केबाजी, कपोल कल्पनाओं और हिमाकत (Gimmicks) को दूर से ही प्रणाम करते हुए शुद्ध वैदिक भारतीय विचारधारा को ही अपनाया है।
यह पुस्तक रत्नविज्ञान के विद्यार्थियों, जौहरियों के लिए न होकर रत्नों के ज्योतिषीय, खास तौर से उपाय परक इस्तेमाल को दृष्टि में रखकर ही लिखी है। इसीलिए उपयोगी और आसानी से मिलने वाले रत्नों का ही विवरण और उनका लग्न या राशि के अनुसार प्रयोग ही यहां बताया है।इसी कारण रत्नों की जाति (Kind) कठोरता (Hardness) प्रकाश परावर्तन (Refraction) घनत्व (Denisty) आदि को ज्यादा तरजीह नहीं दी गई है।
अपनी असल भारतीय बिरासत को सुरक्षित रखने के साथ साथ जनसामान्य भी उसका लाभ उठा सकें, इसी सत्कामना के साथ यह पुस्तक सत्य की चाह रखने वाले जिज्ञासु पाठकों के हाथों में समर्पित है।अन्त में वैदिक ऋषि के शब्दों में ईश्वर से प्रार्थना है-
ॐ अन्तकाय मृत्यवे नम: प्राणा अपाना इह ते रमन्ताम् ।
इहायमस्तु पुरुष: सहासुना सूर्यस्य भागे अमृतस्य लोको ।।
'इस संसार के सर्जनहार, पालनहार और समेट लेने वाले उस परमेश्वर के सामने हम अपना सीस झुकाकर ऐसा उपाय करें जिससे इस संसार में हम स्वस्थ सुखी सानन्द रह सकें । जीवनभर सब सांसारिक सुखों को भोगें और सूर्य आदि सौर मण्डल के ग्रहों के अमृत प्रभाव को प्राप्त करें।’
विषय-सूची
1
आरम्भिका
9-22
2
रत्नधारण: कहां कैसे कब पहने
23-36
3
भाग्य रत्न का चुनाव
37-43
4
मेष लग्न
44-52
5
वृष लग्न
53-59
6
मिथुन लग्न
60-67
7
कर्क लग्न
68-74
8
सिंह लग्न
75-81
9
कन्या लग्न
82-88
10
तुला लग्न
89-94
11
वृश्चिक लग्न
95-102
12
धनु लग्न
103-108
13
मकर लग्न
109-115
14
कुम्भ लग्न
116-122
15
मीन लग्न
123-128
16
राहु केतु के रत्न
129-134
17
अथर्ववेदीय मुख्य वनस्पति रत्न
135-150
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