पुस्तक के विषय में
सत्य है तो स्वयं के भीतर है। इसलिए किसी और से मांगने से नहीं मिल जाएगा।सत्य की कोई भीख नहीं मिल सकती। सत्य उधार भी नहीं मिल सकता। सत्य कहीं से सीखा भी नहीं जा सकता, क्योंकि जो भी हम सीखते हैं, वह बाहर से सीखते हैं। जो भी हम मांगते हैं, वह बाहर से मांगते हैं। सत्य पढ़ कर भी नहीं जाना जा सकता, क्योंकि जो भी हम पढ़ेंगे, वह बाहर से पढ़ेंगे।
सत्य है हमारे भीतर- न उसे पढ़ना है, न मांगना है, न किसी से सीखना है-उसे खोदना है। उस जमीन को खोदना है, जहां हम खड़े हैं। तो वे खजाने उपलब्ध हो जाएंगे,जो सत्य के खजाने हैं। ओशो
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
वास्तविक स्वतंत्रता क्या है
शून्य है द्वार पूर्ण का
क्या जीवन एक सपना है
संयम का अर्थ क्या है
प्रवेश से पूर्व
शांति की पगडंडी से आदमी सत्य के शिखरो तक पहुचता है । और शांति की पगडंडी पर वही चल सकते हैं, जिनको जीवन सपना दिखाई पड़ता है । जिन्हे जीवन एक सत्य, एक ठोस सत्य मालम होता है, वे कभी शांति के मार्गो पर नही चल सकते, यह पहली बात ।
इससे ही जुडी हुई दूसरी बात, जिस आदमी को जीवन सपना दिखाई पड़ने लगेगा, उस आदमी का व्यवहार क्या होगा? जिस आदमी को जिंदगी अयथार्थ मालूम होने लगेगी, वह आदमी जीएगा कैसे? उसके जीवन का सूत्र क्या होगा?सपने के साथ हम क्या करते है? सपने को देखते है, और तो कुछ भी नहीं कर सकते है ।
जिस आदमी को पूरी जिंदगी सपना दिखाई पड़ने लगेगी, वह एक द्रष्टा हो जाएगा, वह एक साक्षी हो जाएगा। वह देखेगा और कुछ भी नहीं करेगा जिंदगी जैसी होगी, उसे देखता चला जाएगा ।
सपना है भाव और साक्षी है परिणति सपना है आधार और साक्षी है उस पर उठा हुआ भवन ।
जब कोई आदमी जीवन को सपना जान लेता है तो फिर एक साक्षी रह जाता है, एक द्रष्टा रह जाता है । फिर एक देखने वाले से ज्यादा उसका मूल्य और अर्थ नही होता । फिर वह जीवन में ऐसे जीता है, जैसे एक दर्शक । और जब कोई आदमी दर्शक की भांति जीवन में जीना शुरू कर देता है, तब उसके जीवन में एक क्राति हो जाती है । उस क्राति का नाम ही धार्मिक क्रांति है । वह धर्म की क्राँति शास्त्रों के पढने से नही होती, साक्षी बनने से होती है । वह धर्म की क्राति पिटे-पिटाए खो को कंठस्थ करने से नहीं होती, जीवन में साक्षी के जन्म हो जाने से हो जाती है । और जो आदमी साक्षी की तरह जीने लगता है, वह चढ़ जाता है उन शिखरो पर, जहा सत्य का दर्शन होना निश्चित है।
तो दूसरा सूत्र है साक्षीभाव । जीवन में ऐसे जीना है, जैसे एक दर्शक । जैसे जीवन के बड़े पर्दे पर एक कहानी चल रही है और हम देख रहे है । एक दिन भर के लिए प्रयोग करके देखे और जिंदगी दूसरी हो जाएगी । एक दिन तय कर ले कि सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक इस तरह जीएगे, जैसे एक दर्शक । और जिंदगी को ऐसा देखेंगे, जैसे कहानी एक पर्दे पर चलती हुई । और पहले ही दिन जिंदगी में कुछ नया होना शुरू हो जाएगा ।
आज ही करके देखे, एक छोटा सा प्रयोग करके देखे कि जिंदगी को ऐसे देखेंगे, जैसे बड़े कैनवास पर, एक बड़े पर्दे पर कहानी चलती हो और हम सिर्फ दर्शक होंगे । सिर्फ एक दिन के लिए प्रयोग करके देखे । और उस प्रयोग के बाद आप दुबारा वही आदमी कभी नहीं हो सकेंगे, जो आप थे । उस प्रयोग के बाद आप आदमी ही दूसरे हो जाएंगे ।
साक्षी होने का छोटा सा प्रयोग करके देखे । देखे आज घर जाकर और जब पत्नी गाली देने लगे या पति गर्दन दबाने लगे, तब इस तरह देखे कि जैसे कोई साक्षी देख रहा है । और जब सस्ते पर चलते हुए लोग दिखाई पड़े, दुकाने चलती हुई दिखाई पड़े, दफ्तर की दुनिया हो, तब खयाल रखे, जैसे किसी नाटक में प्रवेश कर गए और चारो तरफ एक नाटक चल रहा है । एक दिन भर इसका स्मरण रख कर देखे और आप कल दूसरे आदमी हो जाएंगे ।
दिन तो बहुत बड़ा है, एक घंटे भी कोई आदमी साक्षी होने का प्रयोग करके नख उसकी जिंदगी में एक मोड़ आ जाएगा, एक टर्निग आ जाएगी । वह आदमी फिर कभी नहीं हो सकेगा, जो एक घंटे पहले था । क्योकि उस एक घंटे में जो उसे दिखाई पड़ेगा, वह हैरान कर देने वाला हो जाएगा । और उस एक घंटे में उसके भीतर जो परिवर्तन होगा, जो ट्रांसफार्मेंशन होगा, जो कीमिया ही बदल जाएगी: वह उसके भीतर चेतना के नये बिदुओं को जन्म दे देगी ।
एक घंटे के लिए ऐसे देखें कि अगर पत्नी गालियां दे रही हें, अगर मालिक गालियां दे रहा है, तो ऐसे देखें कि जैसे आप सिर्फ एक नाटक देख रहे हो । फिर देखे कि क्या होता है न सिवाय हंसने के और कुछ भी नहीं होगा । सिवाय हंसने के और कुछ भी नही होगा! भीतर एक हंसी फैल जाएगी और चित्त एकदम हलका हो जाएगा ।
अनुक्रम
1
परतंत्रता से सत्य की ओर
01
2
भ्रम से सत्य की ओर
19
3
श्रद्धा से सत्य की ओर
39
4
स्वप्न से सत्य की ओर
63
5
शून्य से सत्य की ओर
83
ओशो-एक परिचय
109
ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट
110
ओशो का हिंदी साहित्य
113
अधिक जानकारी के लिए
118
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