सुरत शब्द योग सम्पूर्ण आध्यात्मिक क्रियाओं का तत्व और सार है। यह इतना सरल और साथ ही आनन्ददायक साधन है कि जिसको स्त्री, पुरुष, युवा, वृद्ध, अमीर, गरीब, सन्यासी और गृहस्थी शारीरिक, मानसिक और आत्मिक भय के बिना सुगमता से कर सकता है और धोड़े ही दिनों के साधन में उसका लाभ स्वयं देख सकता है । पहिले जिज्ञासा और तीव्र लालसा की आवश्यकता है। यह समय और तरह का है। जो बीत गया वह समय और था। प्राचीन समय की मसलहतें (रहस्य) और आवश्यकतायें भिन्न थीं। वर्तमान समय की दशा दूसरी है। यदि ध्यान पूर्वक देखा जाय तो इस कलियुग में मनुष्य के सांसारिक कार्य इतने बढ़ गये हैं कि उसको आत्मिक ज्ञान की ओर ध्यान देने का न अवकाश मिलता है और न हार्दिक लगाव है। जिनको अपने पिछले जन्मों के संस्कार के कारण कुछ परमार्थ की कमाई करने की इच्छा भी होती है तो वह कठिन साधनों का नाम सुनकर कानों पर हाथ रख जाते हैं। इस तरह लोगों की अधिक संख्या आत्मिक ज्ञान के लाभ से वंचित रह जाती है। यह दशा देख कर संतो ने इस सहल नुसखे का प्रचार आवश्यक समझा ताकि कम से कम अधिकारी लोग आत्मिक ज्ञान के लाभ से अनजान न रहने पावें और सुगमता से अपना काम बना सकें। न इसके संयम कठिन हैं, न किसी प्रकार के बंधनों की आवश्यकता है सुबह शाम प्रत्येक व्यक्ति थोड़ा समय निकाल सकता है। वह घर में रहे, गृहस्थी के काम धंधे करे, नौकरी चाकरी, पेशा और कर्तव्य कर्म को भी करे, छोड़े नहीं। हाँ, पहिले कुछ थोड़ा सा समय नित्य प्रति किसी पूर्ण पुरुष के सत्संग के लिये निकाल ले । सत्संग करते करते जब चित्त में पूर्ण विश्वास आ जाय कि यह मालिक के मिलने का सच्चा रास्ता है तो अभ्यास की तरकीब (क्रिया) सीखकर साधन में लग जाय। जब एक आध सप्ताह के ही अभ्यास में अन्तरीय रस आने लगेगा, वह आप ही धीरे धीरे उन्नति करता चला जायेगा। ज्यों ज्यों स्वयं उसका अनुभव बढ़ता जायगा, त्यों त्यों हालत भी बदलती जायगी और शान्ति अवश्यमेव प्राप्त हो जायगी। जिस प्रकार हकीम के काढ़े आदि की जगह छोटी गोलियों ने ले ली है वैसे ही कठिन साधनों के बदले अब सुरत शब्द योग के अमल को समयानुसार समझ लिया गया है लेकिन कठिनता यह है कि अज्ञानी और आलसी जीव सत्संग में जाने से भी घृणा करते हैं। किसी को समय न निकलने का बहाना है, किसी को अपने मेल जोल बढ़ जाने का बहाना है। इस बहाने को किसी हद तक दूर करने के लिये 'बचन सार' के भागों को क्रमानुसार चालू किया गया है। पढ़ने लिखने का शौक तो पढ़े लिखे मनुष्यों का स्वभाव है। अगर वह किसी कारण से घर नहीं छोड़ सकते तो थोड़ा बहुत इनको तो पढ़ सकते हैं। जो अधिकारी हैं इनके पढ़ने से उनके विचार को गति मिलने की आशा है। वह कुछ न करें केवल मामूली ढंग से बचन सार के भागों को पढ़ लें। अगर बचन चित्त को भावे तो जीवन को साधन सम्पन्न बना लें। योग विद्या का छुपा हुआ संस्कार जो अधिकारियों के चित्त में दबा हुआ पड़ा है स्वयं उनको इस ओर आकर्षित करेगा।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (हिंदू धर्म) (12545)
Tantra ( तन्त्र ) (999)
Vedas ( वेद ) (708)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1901)
Chaukhamba | चौखंबा (3354)
Jyotish (ज्योतिष) (1450)
Yoga (योग) (1101)
Ramayana (रामायण) (1391)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23143)
History (इतिहास) (8256)
Philosophy (दर्शन) (3392)
Santvani (सन्त वाणी) (2578)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist