में अपनी नौ वर्ष की कच्ची उम्र में ही स्व. देवधरजी ने संगीत की शिक्षा पं. निळकंठबुवा जंगमजी से लेना शुरू कर दिया। तत् पश्चात सन १९१८ में स्व. पंडित विष्णू दिगंबर पलुस्करजी से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। फलस्वरुप सन १९२२ में गांधर्व महाविद्यालय की उच्चतम परिक्षामें उत्तीर्ण हुए।
सन १९२५ मे उन्होंने बम्बई में "स्कूल ऑफ इंडियन म्युझिक " नामक संगीत विद्यालय की स्थापना की। आज यह स्कूल "देवधर्स स्कूल ऑफ इंडियन म्युझिक" के नाम से जाना जाता है। सन १९२१ से १९२६ के बीच उन्होने प्रा. स्क्रिनजी से पाश्चात संगीत का अध्ययन किया । सन १९३१ से १९३६ तक फिल्मों में संगीत निर्देशन किया। तद्भुतर खयाल संगीत और विविध घरानों की चुनिंदा चीजों के संग्रह का काम किया।
सन १९५९ में न्यूयार्क के प्रा. एंगम से आवाज साधना शास्त्र के अभ्यास हेतु वे चंद वर्ष अमरिका में रहे। १९५५ में दक्षिण-पूर्व एशियाई संगीत सम्मेलन के लिए वे मनीला गए। १९५८ में सांस्कृतिक शिष्टमंडल में पूर्व युरोप तथा इससें पहले १९३३ में विश्व संगीत, सम्मेलन के लिए इटली में गए।
बनारस हिंदू महाविद्यालय तथा बनस्थली इन दोनों विश्व विद्यालयों के कला विभाग के अधिपती के रूपमें काम किया।
गांधर्व महाविद्यालय के वे लगातार नौ वर्ष अध्यक्ष रहे। "कलाविहार" नामक मासिक के २५ वर्षातक वे सम्पादक थे।
इस किताब मे अगर कुछ त्रुटिया रह गयी है, तो उसका हमे खेद है, और अगली आवृत्ती मे हम उसे सुधारने का प्रयास करेंगे।
इस किताब का मुद्रण श्री. केदार वैद्यजी ने किया है। उनके हम बहुत आभारी है।
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