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रहस्यमय गिरनार- Rahasyamaya Girnar

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Item Code: HBA493
Author: Anantrai G. Rawal
Publisher: Prabhat Prakashan, Delhi
Language: Hindi
Edition: 2022
ISBN: 9789355211460
Pages: 440
Cover: PAPERBACK
Other Details 8.5x5.5 inch
Weight 420 gm
Fully insured
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100% Made in India
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23 years in business
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Book Description

किताब के बारे में

अध्यात्म की कोख में पली-बढ़ी, अघोर परंपरा हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। अघोर परंपरा आज भी पूर्ण चेतना के साथ विद्यमान है। उसकी गूढ़ बातों में अनेक रहस्य छुपे होते हैं। उसके मंत्र-तंत्र के मूल रहस्यों में अनेकानेक गूढ़ार्थ छुपे होते हैं, जो साधु-परंपरा को एक अलग ही ऊँचाई पर रखते हैं।

'रहस्यमय गिरनार' पुस्तक इसी अघोर परंपरा के अध्यात्मपूर्ण रहस्य के नजदीक हमें ले जाती है। अध्यात्म क्षेत्र में हमारी अघोर परंपरा में आज भी सैकड़ों सिद्ध साधु-योगी अपने तपोबल से एक चुंबकीय प्रभाव पैदा करते रहते हैं। हमारी इस अघोर परंपरा में कैसी अद्भुत शक्ति छिपी है, यह पढ़कर पाठक अचंभित हो जाएँगे |

अघोर परंपरा के अनेक अप्रकट रहस्य इस पुस्तक द्वारा हमारे सामने प्रकट होंगे । कुछ गुप्त बातें साधु परंपरा की मर्यादा में रहकर इस पुस्तक के माध्यम से हमारे सामने आती हैं | अघोर परंपरा के कुछ रहस्य हमें चमत्कार जैसे लगेंगे, मणर वे चमत्कार नहीं वरन्‌ वास्तव में सिद्ध साधुओं के अध्यात्म-अघोर शक्ति का प्रगटीकरण है-यह बात कुछ लोगों की समझ के परे है। पाठकों को योग क्रिया, ध्यान, समाधि इत्यादि परंपरा की अनुभूति पुस्तक पढ़ते समय होती रहेगी | भारत के प्राण इस संस्कृति और अध्यात्म शक्ति में छिपे हैं और ऐसी अध्यात्म परंपरा ने ही तो भारत को मृत्युंजयी रखा है-यह गौरवबोध करानेवाली रोचक-रोमांचक कृति|

प्रस्तावना

आशा है कि यह पुस्तक आपको अच्छी लगेगी ही" इतना ही नहीं, यदि आप सच्चे साधक होंगे, तो यह आपके लिए अनेक रूप से प्रेरणादायी होगी, इसमें मुझे कोई संशय नहीं है.

फिर भी कई विषयों की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना इष्ट समझता हूँ। मुझे लगता है कि यह पुस्तक मैंने नहीं लिखी है; मेरे अंदर रहकर किसी ने लिखवाई है, कदाचित् वह मेरे अंदर स्थित आत्मा का प्रतिबिंब हो सकता है या मेरे अंदर के एक साधक की गूँज या प्रतिघोष भी हो सकता है। जो भी हो, परंतु एक विशेष बात-इस समग्र कथा को 'सत्य' मान लेना मूर्खता है और 'असैत्य' मानना अपराध है। उपर्युक्त विधान विचित्र लगेगा, परंतु ऐसा कहना आवश्यक है, क्योंकि इस कथा के सभी पात्र जीवंत हैं। आप कदाचित् उनसे मिलने का प्रयत्न भी करेंगे, परंतु जिसमें योग्यता होगी वे ही और वे ही इन पात्रों को सच्चे स्वरूप में समझ सकेंगे, जिसमें योग्यता न हो, ऐसे लोगों के लिए स्थान, काल, पात्र सभी जीवंत और वास्तविक होते हुए भी उनके लिए सभी 'अगोचर' ही रहेंगे। इसलिए सत्यासत्य के पिष्ट-पेषण में न जाने की प्रार्थना है।

एक बात निश्चित है कि जो तत्त्वज्ञान के विद्यार्थी हैं या जो साधना मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं या आगे बढ़ना चाहते हैं, उनके लिए यह पुस्तक आदर्श मार्गदर्शक रूप में बनी रहेगी, इसमें कोई संशय का स्थान नहीं है। संक्षेप में, आपसे प्रार्थना है कि आध्यात्मिक दृष्टि से यह पुस्तक कितने महत्त्व की है, यही ध्यान में रखना, किसी तर्क में मत पड़ना और पड़े तो आपके हाथ में कुछ नहीं आएगा। इसलिए कहता हूँ कि हो सके, तो साधना के पथ पर पैर रखो और ईश्वर-प्राप्ति में लगे रहो "आपसे यही एक अपेक्षा है, प्रतिभाव बताइएगा!

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