'राजयोग' में स्वामी विवेकानन्द द्वारा की गयी प्राचीन ऋषियों और योगियों की राजयोग से सम्बन्धित मान्यताओं की मीमांसा है जो आधुनिक समाज में दर्शन के नाम पर एक प्रागैतिहासिक दुरूहता समझी जाती रही हैं। स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय दर्शन की इस गूढ़ता को देश काल की आवश्यकताओं के अनुसार विश्लेषित किया है। यह पुस्तक स्वामी विवेकानन्द के राजयोग दर्शन से सम्बन्धित विचारों का अनुवाद है। अनुवादक हैं भारतीय इतिहास दर्शन के सुविज्ञ चिन्तक डॉ. रामविलास शर्मा । आज से छः दशक पूर्व किये गये इस पुस्तक के अनुवाद की भाषा में गजब की ताजगी है।
देशभक्ति तथा मार्क्सवादी चेतना रामविलास जी की आलोचना का केन्द्र-बिन्दु है। उनकी लेखनी से वाल्मीकि तथा कालिदास से लेकर मुक्तिबोध तक की रचनाओं का मूल्यांकन प्रगतिवादी चेतना के आधार पर हुआ। उन्हें न केवल प्रगति-विरोधी हिन्दी आलोचना की कला एवं साहित्य-विषयक भ्रान्तियों के निवारण का श्रेय है, वरन् स्वयं प्रगतिवादी आलोचना द्वारा उत्पन्न अन्तर्विरोधों के उन्मूलन का गौरव भी प्राप्त है।
रामविलास जी को निराला की साहित्य साधना पुस्तक पर 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त वे 1988 में 'श्लाका सम्मान', 1990 में 'भारत भारती पुरस्कार', 1991 में 'व्यास सम्मान' और 2000 में हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा 'शताब्दी सम्मान' से सम्मानित। इन पुरस्कारों की राशि को देश में सारक्षरता के प्रसार के लिए दान।30 मई 2000 को निधन ।
कौटिल्य ने अर्थशास्त्र के आरम्भ में चार विद्याएं गिनाते हुए सबसे पहले अन्वीक्षकी का नाम लिया है। फिर सांख्य, योग और लोकायत को आन्वीक्षकी के अंतर्गत माना है। लोकयत भौतिकवादी दर्शन के रूप में प्रसिद्ध है। योग और सांख्य उसके सहयोगी हैं।
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