कुलबीर सिंह सूरी की मैंने लगभग सारी कहानियों पढ़ी हुई हैं। इन कहानियों में दो गुण प्रमुख रूप से विद्यमान हैं-एक सादी, सरल और रोचक भाषा और दूसरी नैतिक शिक्षा। ये दोनों गुण किसी भी भाषा के वाल-साहित्य के लिए अति आवश्यक हैं।
मनोवैज्ञानिकों ने बच्चों की आयु के अनुसार तीन वर्ग बनाए हैं-1. छह से नौ वर्ष 2. इस से तेरह वर्ष 3. चौदह से सोलह वर्ष। इन कहानियों की सबसे बड़ी बात यही है कि इन की भाषा इतनी सरल है कि पहले दो वर्गों के लिए वहुत ही लाभकारी है। दोनों वर्गों के बच्चे इन्हें बड़ी रुचि से पढ़ेंगे।
कुलबीर सिंह सूरी की सभी कहानियों में बच्चों को मानवीय गुणों की शिक्षा दी गई है। यह बच्चों के साहित्य के लिए आवश्यक गुण है जिससे उन्हें नए जीवन की सार्थकता समझ आती है और ये गुण उनकी आनेवाली ज़िंदगी का आधार बनते हैं। जब बच्चे इन कहानियों को पढ़ेंगे तो वे सहज रूप से ही इन गुणों को अपना लेंगे। अगर बचपन में उन्होंने नैतिक गुणों वाला साहित्य नहीं पढ़ा तो बड़े होकर वे घटिया और जासूसी प्रकार की कहानियाँ पढ़ने के आदी हो जाएँगे।
मेरी यही दिल से इच्छा है कि वे ऐसी कहानियाँ निरंतर लिखते रहें। वर्तमान समय में इनकी बहुत आवश्यकता है।
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