वास्तविक त्याग: Real Sacrifice

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Item Code: GPA192
Author: Jayadayal Goyandka
Publisher: Gita Press, Gorakhpur
Language: Hindi
ISBN: 8129309076
Pages: 112
Cover: Paperback
Other Details 8 inch x 5.5 inch
Weight 100 gm
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Book Description

विषय- सूची

 

विषय

पृं.सं

1

शिखिध्वज और चूडालाके आख्यानका आरम्भ, शिरिवध्वजके गुणोंका तथा चूडालाके साथ विवाह और

क्रीडाका वर्णन

5

2

क्रमसे उन दोनोंकी वैराग्य एवं अध्यात्म ज्ञानमें निष्ठा

तथा चूडालाको यथार्थ ज्ञानसे परमात्माकी प्राप्ति

8

3

चूडालाको अपूर्व शोभासम्पन्न देखकर राजा

शिखिध्वजका प्रसन्न होना और उससे वार्तालाप करना

12

4

राजा शिखिध्वजका चूडालाके वचनोंको अयुक्त

बतलाना, चूडालाका एकान्तमें योगाभ्यास करना एवं श्रीरामचन्द्रजीके पूछनेपर श्रीवसिष्ठजीके द्वारा कुण्डलिनीशक्तिका तथा विभिन्न शरीरोंमें जीवात्माकी स्थितिका वर्णन

13

5

आधि और व्याधिके नाशका तथा सिद्धिका और सिद्धोंके दर्शनका उपाय

18

6

ज्ञानसाध्य वस्तु और योगियोंकी परकाय- प्रवेश- सिद्धि- का वर्णन

24

7

चूडालाकी सिद्धिका वैभव, गुरूपदेशकी सफलतामें किराटका आरव्यान, शिरिवध्वजका वैराग्य, चूडालाका उन्हें समझाना, राजा शिखिध्वजका आधी रातके समय राजमहलसे निकलकर चल देना और मन्दराचलके काननमें कुटिया बनाकर निवास करना

26

8

सोकर उठी हुई चूडालाके द्वारा राजाकी रवोज, वनमें

राजाके दर्शन और राजाके भविष्यका विचार करके

चूडालाका लौटना, नगरमें आकर राज्य- शासन करना,

तदनन्तर कुछ समय बाद राजाको ज्ञानोपदेश देनेके

लिये ब्राह्मणकुमारके वेशमें उनके पास जाना, राजाद्वारा

उसका सत्कार और परस्पर वार्तालापके प्रसङ्गमें कुम्भ-

द्वारा कुम्भकी उत्पत्ति, वृद्धि और ब्रह्माजीके साथ उसके

समागमका वर्णन

34

9

राजा शिखिध्वजद्वारा कुम्भकी प्रशंसा, कुम्भका

ब्रह्माजीके द्वारा किये हुए ज्ञान और कर्मके विवेचनको

सुनाना, राजाद्वारा कुम्भका शिष्यत्व स्वीकार

42

10

चिरकालकी तपस्यासे प्राप्त हुई चिन्तामणिका त्याग

करके मणिबुद्धिसे काँचको ग्रहण करनेकी कथा तथा

विन्ध्यगिरिनिवासी हाथीका आख्यान

47

11

कुम्भद्वारा चिन्तामणि और काँचके आख्यानके तथा

विन्ध्यगिरिनिवासी हाथीके उपाख्यानके रहस्यका वर्णन

52

12

कुम्भकी बातें सुनकर सर्वत्यागके लिये उद्यत हुए राजा

शिखिध्वजद्वारा अपनी सारी उपयोगी वस्तुओंका

अग्निमें झोंकना, पुन: देहत्यागके लिये उद्यत हुए राजाको

कुम्भद्वारा चित्त- त्यागका उपदेश.......

56

13

चित्तरूपी वृक्षको मूलसहित उखाड़ फेंकनेका उपाय और

अविद्यारूप कारणके अभावसे देह आदि कार्यके

अभावका वर्णन

64

14

जगत्के अत्यन्ताभावका, राजा शिखिध्वजको परम

शान्तिकी प्राप्तिका तथा जाननेयोग्य परमात्माके

स्वरूपका प्रतिपादन

69

15

चित्त और संसारके अत्यन्त अभावका तथा परमात्माके

भावका निरूपण

75

16

ब्रह्मसे जगत्की पृथक् सत्ताका निषेध तथा जन्य आदि

विकारोंसे रहित ब्रह्मकी स्वत: सत्ताका विधान

78

17

राजा शिखिध्वजकी ज्ञानमें दृढ़ स्थिति तथा जीवन्मुक्तिमें

चित्तराहित्य एवं तत्त्वस्थितिका वर्णन

81

18

कुम्भके अन्तर्हित हो जानेपर राजा शिखिध्वजका कुछ

कालतक विचार करनेके पक्षात् समाधिस्थ होना,

चूडालाका घर जाकर तीन दिनके बाद पुन: लौटना,

राजाके शरीरमें प्रवेश करके उन्हें जगाना और राजाके

साथ उसका वार्तालाप

86

19

कुम्भ और शिखिध्वजका परस्पर सौहार्द, चूडालाका

राजासे आज्ञा लेकर अपने नगरमें आना और उदासमन

होकर पुन: राजाके पास लौटना, राजाके द्वारा उदासीका

कारण छनेपर चूडालाद्वारा दुर्वासाके शापका कथन

और चूडालाका दिनमें कुम्भरूपसे और रातमें स्त्रीरूपसे

राजा शिखिध्वजके साथ विचरण.

91

20

महेन्द्र- पर्वतपर अग्निके साक्ष्यमें मदनिका (चूडाला)

और शिखिध्वजका विवाह, एक सुन्दर कन्दरामें पुष्प-

शय्यापर दोनोंका समागम, शिखिध्वजकी परीक्षाके

लिये चूडालाद्वारा मायाके बलसे इन्द्रका प्राकह्य,

इन्द्रका राजासे स्वर्ग चलनेका अनुरोध, राजाके

अस्वीकार करनेपर परिवारसहित इन्द्रका अन्तर्धान होना

97

21

राजा शिखिध्वजके क्रोधकी परीक्षा करनेके लिये

चूडालाका मायाद्वारा राजाको जार- समागम दिखाना

और अन्तमें राजाके विकारयुक्त न खेनेपर अपना

असली रूप प्रकट करना

101

22

ध्यानसे सब कुछ जानकर राजा शिखिध्वजका आश्वर्य- चकित होना और प्रशंसापूर्वक चूडालाका आलिङग्न करना तथा उसके साथ रात बिताना, प्रातःकाल संकल्पजनित सेनाके साथ दोनोंका नगरमें आना और

दस हजार वर्षोतक राज्य करके विदेहमुक्त होना

106

 

 

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