इस पुस्तक का प्रथम संस्करण वर्ष 1990 ई० में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रकाशन विभाग (Publications Division) द्वारा प्रकाशित किया गया था। इसका मुद्रण भी यूनिवर्सिटी के मुद्रणालय (Printing press) में ही हुआ था। बड़े दुःख की बात है कि इसका दूसरा संस्करण निकलने में पच्चीस वर्ष का लंबा समय लग गया जब कि इसके प्रथम संस्करण का चारों ओर स्वागत हुआ था जैसाकि पाठकों को इस पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समीक्षाओं से जिन में से कुछ वर्तमान संस्करण में उद्धृत की गई हैं विदित होगा। उदाहरण स्वरूप उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ की पत्रिका 'अतएव' (दिसम्बर, 1991) की यह टिप्पणी कि ".... यह पुस्तक प्रत्येक भारतीय को चाहे वह किसी धर्म का हो पढ़नी चाहिये।" आशा है विज्ञ पाठकों द्वारा इस दूसरे संशोधित एवं परिवर्द्धित संस्करण का भी जिसकी उपयोगिता प्रथम संस्करण की अपेक्षा निश्चय ही अधिक है स्वागत होगा। इस संस्करण में पुस्तक का नाम "इस्लाम का उदय और लक्ष्य" से संशोधित करके "इस्लाम का उदय एवं नियति" कर दिया गया है। पहले संस्करण में यह बड़े आकार में प्रकाशित हुई थी किन्तु अनेक मित्रों एवं पाठकों के परामर्श पर वर्तमान संस्करण सामान्य छोटे आकार में ही प्रकाशित किया जा रहा है।
अप्रासंगिक न होगा यदि यहाँ यह निवेदन कर दूँ कि इस पुस्तक का लेखक सैंतालीस वर्ष (1955-2002 ई०) तक (बारह वर्ष छात्र के रूप में तथा पैंतीस वर्ष प्राध्यापक के रूप में) अलीगढ़ विश्वविद्यालय से संबद्ध रहा है, जहाँ इस्लाम के विषय में विशेष अध्ययन तथा शोध की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
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