सज्जाद हैदर यिल्दिरिम: Sajjad Haider Yildrim

Express Shipping
$6.75
$15
(40% + 25% off)
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Quantity
Delivery Usually ships in 3 days
Item Code: NZD235
Publisher: SAHITYA AKADEMI
Author: सुरैया हुसैन (Suraiya Hussain)
Language: Hindi
Edition: 1999
ISBN: 8126005017
Pages: 74
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 100 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

पुस्तक के विषय में

सज्जाद हैदर यिल्दिरिम (1880-1943) से बीसवीं सदी के उर्दू गद्य और कथा-साहित्य की एक नयी परम्परा शुरू होती है । उनकी कहानियों और उपन्यासों में विद्रोही संवेदना मुखर है। उर्दू को आधुनिक स्वर और तेवर प्रदान करने के लिए उन्होंने अपनी रचनात्मक प्रतिभा और ऊर्जा के द्वारा भारतीय समाज के समग्र विकास के लिए युग-चेतना का प्रतिनिधित्व किया । उनके सालिस बिलख़ैर और जोहरा जैसे अनेक उपन्यास तुर्की उपन्यासों पर आधारित हैं । उनके लेखन से उस परिवेश की संरचना में सहायता मिली, जिसमें साहित्य के सौन्दर्य पक्ष पर अधिक जोर दिया गया था ।

प्रस्तुत विनिबन्ध की लेखिका प्रो. डॉ. सुरैया हुसैन (जन्म 1927) ने सौरबॉन विश्वविद्यालय, पेरिस से पी-एच. डी. की है । आप उर्दू साहित्य की लेखक और समालोचक हैं । आपकी दस पुस्तकें और विविध आलेख प्रकाशित हैं । सर सैयद अहमद ख़ां एण्ड हिज़ एज आपकी नवीनतम कृति है । इस विनिबंध में आपने सज्जाद हैदर यिल्दिरिम के जीवन और कृतित्व का समुचित मूल्यांकन किया है, ताकि ग़ैर उर्दूभाषी पाठक भी इससे लाभान्वित हो सकें ।

भूमिका

सज्जाद हैदर यिल्दिरिम (1880-1943) बीसवीं शताब्दी के उर्दू गद्य और कथा साहित्य के मार्गदर्शकों मे एक हैं । उनकी शैली ने उर्दू लेखकों की उस पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया जिसकी कृतियाँ किसी प्रकार 'रोमानी साहित्य' कहलाने लगी थीं । अपनी प्रारंभिक अवस्था में उर्दू गद्य का उपयोग उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक भाग में रूपक कथा के लेखकों द्वारा किया गया था। यह गद्य बहुत आलंकारिक और आडंबरपूर्ण था जो प्राय: गद्य दोहों के रूप मैं लिखा जाता था।

हमें आधुनिक उर्दू गद्य पहली बार गलिब के पत्रों मैं मिलता है । 1357 के बाद रचनात्मक प्रतिभा असाधारण रूप में फूली-फली । इसे उत्तर भारत का पुनर्जागरण कहा जा सकता है । गद्य साहित्य लगभग बदल कर आधुनिक विचारों के प्रेषण का वाहन बन गया था । यह परिवर्तन लाने वाले महारथियों में सर सैयद अहमद, डॉ. नजीर अहमद, मौलाना हाली और शिवली नोमानी शामिल थे । सर सैयद अहमद खान एक विद्वान, शिक्षाशास्त्री और समाज सुधारक थे । उन्होंने उर्दू गद्य को अपने लक्ष्य के अनुकूल बनाया था । इसलिए उन्होंने 'अपनी भाषा को स्पष्ट, सादी और सीधी बना लिया था।

सर सैयद अहमद खान द्वारा शुरू किये गये अलीगढ़ आंदोलन का उर्दू साहित्य पर सीधा और सशक्त प्रभाव पड़ा । मौलाना हाली ने पारंपरिक और शैलीगत गजल-लेखन के बंधनों को तोड़ने के लिए अभियान चलाया । गद्य में सर सैयद अहमद खान और उनके सहयोगियों ने, जैसा पहले ही बताया गया है, एक सीधी-सादी शैली का समर्थन किया । अलीगढ़ का एम... कालेज 1875 में स्थापित हुआ था । इस कालेज में प्रतिभाशाली युवा स्नातकों की जबरदस्त बाढ़ थी । उनमें से अनेकों ने साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिष्ठा की छाप डाली । सज्जाद हैदर उन्हीं लोगों में एक थे । वह अपनी स्वाभाविक प्रतिभा और उर्दू के आधुनिकीकरण के लिए अपनी सरगर्मी तथा भारतीय समाज की समग्र प्रगति के लिए युग की भावना का प्रतिनिधित्व करते थे । बाद के वर्षों में लोक सेवक के रूप में अपनी व्यस्तता के कारण वह अपनी साहित्यिक गतिविधियों को अधिक समय नहीं दे सके । फिर भी, असाधारण दृष्टि के लेखक होने के कारण जो कुछ उपलब्धि उन्हें हुई थी, उसने उर्दू साहित्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ दी थी । अगले पृष्ठों में हम सन् 1900 तक उर्दू कथा-साहित्य के विकास की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे और बाद में सज्जाद हैदर यिल्दिरिम के साहित्य .और जीवन की चर्चा करेंगे ।

उर्दू कथा-साहित्य-1638 से 1900 तक सन् 1638 में गोलकुंडा रियासत (दक्षिण) के मुल्ला वजही ने अपनी रूपक-कथा 'सब रस' या 'किस्सा हुस्नो दिल' (सौंदर्य और हृदय की कहानी) लिखी । उर्दू कथा-साहित्य का विकास धीमा था । कथा-साहित्य की अगली बड़ी कृति लखनऊ के मीर इंशा अल्लाह ख़ान द्वारा 'रानी केतकी की कहानी' शीर्षक से 1800 में प्रकाशित हुई । उसी वर्ष के दौरान कलकत्ता में फ़ोर्ट विलियम कालेज स्थापित हुआ था । इसका प्रयोजन ईस्ट इंडिया कम्पनी के अंग्रेज़ अधिकारियों को हिन्दुस्तानी (उर्दू और हिन्दी) की शिक्षा देना था । इस कालेज के 'मुशियों' या शास्त्रियों ने फारसी की कई रूपक-कथाओं का उर्दू में अनुवाद किया और कालेज के पाठ्यक्रम के लिए अनेक पुस्तकें लिखीं । छापाख़ानों ने इन पुस्तकों को आम जनता के लिए भी आसानी से उपलब्ध कर दिया । इन लेखकों में मीर अम्मन देहलवी, हैदर वख़्श हैदरी, मीर शेर अली अफ़सोस, बहादुर अली हुसैनी, निहाल चट लाहौरी और लल्लू लाल जी जैसे शैलीकार शामिल थे । 'बागो बहार', 'आराइशे महफिल', 'तोता कहानी', 'वेताल पच्चीसी', 'सिंहासन बत्तीसी' और 'दास्तान अमीर हम्ज़ा' जैसी कहानियाँ हमें अमूल्य गौरव-ग्रंथों के रूप में मिलीं । इनमें मीर अम्मन का 'किस्सा चहार दरवेश' (बाग़ो बहार) विशेष महत्व का है क्योंकि इसमें लेखक ने दैनिक उपयोग की सरल भाषा का प्रयोग किया और अपने समकालीन लेखकों की प्राय: तड़क-भड़क वाली अलंकारिक शैली को छोड दिया था ।

इन कहानियों में प्राय: वास्तविक सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियाँ, जीवन-शैलियाँ और उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय रीति-रिवाज और शिष्टाचारप्रतिबिंबित होते थे । वह मुगलों के पतन और अवध की रियासत के यौवन का समय था । रजब अली बेग सुरूर का 'फ़सानाए अजायब' 1824 में लखनऊ से प्रकाशित हुआ । पहला आधुनिक भारतीय उपन्यास 'नश्तर' हसनशाह द्वारा 1790 में लिखा गया था । यह फारसी में था । मुंशी गमानी लाल द्वारा 1832 में लिखा गया 'रियाज दिलरुबा' पहला उर्दू उपन्यास है जो संभवत: 1863 में प्रकाशित हुआ । इस उपन्यास का पता हाल में डॉ. इतने कँवल द्वारा लगाया गया है । यह डी. नजीर अहमद के पहले उपन्यास 'मिरातुल उरूस' (1869) के पूर्व लिखा गया था ।

डॉ. नजीर अहमद के उपन्यास मूलत: नीतिपरक होते थे क्योंकि उनमें 1857 के बाद में उत्तर भारतीय मुस्लिम समाज की समस्याओं को उठाया गया था । उनकी कहानियाँ अठारहवीं शताब्दी में इंगलैंड के उपदेशात्मक उपन्यासों से अधिक मिलती-जुलती थीं । लखनऊ-के 'अबुल हलीम शरर ने बड़ी संख्या में ऐतिहासिक उपन्यास लिखे जिनमें कुछ की पृष्ठभूमि धर्मयुद्धों उग़ैर मूर कालीन स्पेन की थी । इनमें कुछ उन्होंने सर वाल्टर स्काट को उत्तर के रूप में लिखे थे जो मइययुग में यूरोपीय लोगों से लड़ने वाले अरब नावकी की निन्दा करते थे । उनके प्रख्यात उपन्यासों में 'मलिक अल-अज़ीज़ वरजीनिया' (1889), 'युसुफ़ नज़्मां (1899) और 'फिरदौसे बरीं' (1900) मिल हैं । मोहम्मद अली तबीब भी इसी दौर के एक और प्रसिद्ध उपन्यासकार थे।

पंडित रतननाथ सरशार एक कश्मीरी ब्राह्मण थे जिनका परिवार बहुत दिनों से लखनऊ का निवासी हों गया था । वह समुदाय लखनवी संस्कृति में ओत-प्रोत था और इसने पंडित दयाशंकर नसीम तथा बृज नारायण चकवस्त सहित'अनेक प्रसिद्ध उर्दू कवियों को जन्म दिया । सरशार का धारावाहिक उपन्यास 'फ़सानाए आजाद' उर्दू कथा साहित्य में एक युगान्तरकारी घटना बन गया । यह उपन्यास नवल किशोर प्रेस लखनऊ के साप्ताहिक ''मात्र अखबार" में क्रमिक तौर पर दिसबर 1878 से दिसंबर 1879 तक प्रकाशित हुआ था । इसके नायक आजाद ओर उनके प्रीतिकर पार्श्व-पक्ष खोजी टर्की-रूस युद्ध में ओटोमान तुर्कां के साथ मिलकर लड़ने के लिए लखनऊ से चले । यह युद्ध इत्र उपन्यास के लेखन के समय लड़ा जा रहा था । इस प्रकार 'फ़सानाए आजाद' भारत-और दूसरे देशों के समकालीन जीवन का एक विशाल परिदृश्य प्रस्तुत करता है । सरशार मानव सुखान्तिकी के एक तीक्ष्ण प्रेक्षक थे । उनका उपन्यास लखनवी समाज के प्रातिनिधि समूह का चित्रण करता है । वह नये औरपुराने के बीच का संघर्ष और भारतीय सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन के विभिन्न पक्षों को आम तौर पर प्रकट करता है । उर्दू कथा-साहित्य में खोजी एक प्रफुल्ल और स्मरणीय चरित्र है । इस उपन्यास में आए लोगों की विभिन्नता सचमुच आश्चर्यजनक हैं । इसमें 'अभिजात वर्गीय, यूरोपीय लोग, जन साधारण, बंगाली बाबू लोग, सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ बाजार के रंग-बिरंगे लोग, ग्रामीण लोग और समाज सुधारक आदि शामिल हैं जो तीन हजार तीन सौ छह पृष्ठों के उपन्यास (आठ पृष्ठीय आकार) में नायक के साहसिक कामों और विभिन्न घटनाओं में प्रकट और पुन: प्रकट होते रहते है। रारशार में हास्य-विनोद की बहुत व्यापक अनुभूति थी । वह आधुनिकता और प्रगति के भक्त भी थे । उन्हें उर्दू भाषा के उन विभिन्न रंगों और सूक्ष्म अर्थ भेदों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त था जो उत्तर भारतीय समाज के विभिन्न संवर्गों द्वारा बोलचाल के उपयोग में आते थे । सरशार मूलरूप में मानववादी और भारत की संयुक्त संस्कृति के सतत अधिक सराहनीय प्रवक्ताओं में राक थे। 'फ़सानाए आज़ाद की प्राय: खलाख्यानी उपन्यास के रूप में चर्चा की गयी है। इतने बड़े आकार की किसी कहानी का गठन ढीला होना अवश्यंभावी था । यह आज भी अपने पाठकों को हर्षित और मुग्ध करती है । सरशार ने कई दूसरे भी उपन्यास लिखे हैं लेकिन 'फ़सानाए आजाद' उनका श्रेष्ठतम उपन्यास बना हुआ है ।

उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में अंग्रेज़ी के घटिया उपन्यासों की बड़ी संख्या का उर्दू में अनुवाद हुआ। 'मिस्टरीज 'आफ द कोर्ट आफ लंडन' जैसे बड़े ग्रंथ के तीरथ राम फ़िरोज़पुरी द्वारा किये गये जड़ 'अनुवाद को बड़ी संख्या में पाठक मिले । ओटोमान तुर्की के विरुद्ध यूरोपीय युद्ध इंगलैंड के लोकप्रिय उपन्यासकारों की एक प्रिय विषय-वस्तु थे । ऐसे जनेक उपन्यासों का उर्दू में अनुवाद हुआ! अनेक बाङ्ला उपन्यासों का भी उर्दू अनुवाद हुआ जो बहुत लोकप्रिय थे । बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यासों का शाद अज़ीमातादी द्वारा किया गया अनुवाद भी उसी 'अवधि के दौरान प्रकाशित हुआ।

पटना की एक महिला लेखिका रशीदतुन्निसा बैगम का पहला उर्दू उपन्यास 1868 में लिखा गया और 1880 में प्रकाशित हुआ था ।

मिर्ज़ा मोहम्मद हादी रुतबा सर्वाधिक विशिष्ट लेखकों में एक में जो शताब्दी के बदलाव के साहित्यिक परिदृश्य में प्रकट हुए । 'उमराव जान अदा' (1899) शायदवास्तविक अर्थ में उर्दू का पहला आधुनिक उपन्यास है । अपनी वर्णनात्मक शैली, मानवीय स्थिति की संपूर्ण पकड़ और चरित्र-चित्रण के कारण 'उमराव जान अदा' अद्वितीय बना हुआ है । यह लखनऊ की एक दरबारी तवायफ़ की कहानी है जो एक मरती हुई संस्कृति के दुःखान्त पतन को प्रतीक रूप में प्रस्तुत करती है । मानव कथा के रूप में इसमें सार्वभौम आकर्षण है और आधुनिक पाठक के लिए इसका अवधि-रस मंत्र-मुग्धकारी है ।

छोटी कहानियाँ सबसे पहले उन्नीसवीं सदी कै पूर्वार्द्ध के दौरान अमेरिका में प्रकाशित हुईं थीं । उर्दू में अनेकों नीति-कथाएँ और रूपक-कथाएँ पहले के युगों में लिखी गयी थीं लेकिन पश्चिमी अर्थ में कोई लघु-कथा अभी लिखी जानी थी । अब्दुल हलीम शरर की साहित्यिक पत्रिका 'दिलगुदाज़' में 1880 के आसपास पटना के महमूद अहमद द्वारा रचित कुछ रेखाचित्र प्रकाशित हुए थे लेकिन उन्हें पूर्णतया विकसित लघु कथाएँ नहीं कहा जा सकता ।

एक बहन द्वारा एक भाई को लिखा गया पत्र लगभग लघु कथा कहा जा सकता है, 1906 में राशीदुल ख़ैरी द्वारा लिखा और प्रकाशित किया गया था ।

 

विषय-सूची

1

भूमिका

7

2

यिल्दिरिम का जीवन और समय

12

2

यिल्दिरिम की रचनाओं से चयन

33

जहाँ फूल खिलते हैं (1905)

34

समय की बाढ़ (1907)

36

लैला और मजनूँ की हिकायत (1907)

38

चिड़िया-चिड़े की कहानी (1907)

49

शक्ति (1923)

56

उर्दू-हिन्दी का झगड़ा ( 1938)

58

4

यिल्दिरिम की रचनाएँ

72

 

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at [email protected]
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through [email protected].
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories