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समर गाथा: Samar Gaatha

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Item Code: HBB035
Author: Narendra Jain
Publisher: Granth Akademi, Delhi
Language: Hindi
Edition: 2023
ISBN: 9789392013355
Pages: 136
Cover: PAPERBACK
Other Details 8.5x5.5 inch
Weight 186 gm
Book Description
प्रस्तावना

वर्तमान में स्वाधीनता का अमृत महोत्सव पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया वज जा रहा है, विशेषकर देश की स्वाधीनता के लिए जिन्होंने अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, ऐसे सभी महान् नेताओं को और उन प्रसंगों का स्मरण किया जा रहा है। ऐसे समय में पूरा देश उन लोगों के बारे में जानना चाहता है कि वास्तव में हमें जो स्वाधीनता मिली, उसमें किन-किन लोगों का किस तरह से योगदान था। यह उत्सुकता का एक कारण भी है, क्योंकि स्वाधीनता के इतिहास को केवल कुछ लोगों या कुछ समय के जो आंदोलनों तक सीमित कर देते हैं, इससे शायद हम स्वाधीनता के उन सेनानियों के साथ न्याय नहीं कर पाएँगे। इसलिए कांग्रेस के सक्रियता के लगभग 50 वर्षों का जो काल है, उससे पिछले समय में जाना पड़ेगा, ताकि हम जान सकें कि कितने लंबे समय से आजादी के लिए प्रयास हुए। जो एक तरीके का आंदोलन हुआ, उसके साथ अन्य बहुत सारे लोगों ने विविध तरीके से देश की स्वाधीनता के लिए प्रयास किए और बलिदान दिए। वास्तव में अमृत महोत्सव का उचित उत्सव वही होगा, जब हम इन सब लोगों के जीवन को सभी तक पहुँचाएँ और उन्हीं के जीवन को उत्सव बना लें।

इस दृष्टि से देखने पर ज्येष्ठ पत्रकार श्री नरेंद्र जैनजी, जिनको लोग 'नंदाजी' के नाम से भी जानते हैं, के द्वारा प्रस्तुत लेखन में वर्ष 2007, जब देश 1857 स्वाधीनता संग्राम के 150 वर्ष मना रहा था, उस समय उन्होंने ऐसे कई सारे वीरों की कहानियों को अपनी लेखनी से 'नई दुनिया' नाम के अखबार में उजागर किया। भिंड के मूल निवासी, पश्चात् ग्वालियर में बसे नरेंद्रजी ने सतत लेखन का कार्य किया। वैसे संयोग से उनसे कभी मेरा परिचय नहीं हो पाया, किंतु आज उनकी लेखनी को देखकर और उनके लेखों को देखकर ध्यान में आता है कि वे भी एक ऐसे अज्ञात वीर हैं, जिन्हें हम 'अनसंग हीरो' भी बोल सकते हैं, जिन्होंने ऐसे सब वीरों के बारे में हमें जानने का मौका दिया।

ऐसे बहुत सारे लोग हैं हमारे देश में, जिनके बारे में हम जानते नहीं हैं। स्वाधीनता आंदोलन में निश्चित रूप से अहिंसात्मक आंदोलन का एक महत्त्वपूर्ण योगदान था, परंतु क्रांतिकारी भी उतने ही महत्त्वपूर्ण थे। इसके अलावा जो अन्य कार्य हो रहे थे जीवन के हर क्षेत्र में, वे भी महत्त्वपूर्ण थे और उन्होंने प्रारंभ से ही अंग्रेजों के एक-एक कदम को रोकने के लिए बलिदान दिया। समाज के हर वर्ग ने उनके साथ संघर्ष किया। इसलिए वे चाहे शहर के लोग थे, गाँव के लोग थे, उत्तर के लोग थे, दक्षिण के लोग थे, जनजातीय लोग थे, जंगल में रहने वाले लोग, पहाड़ में रहने वाले, सबका बहुत बड़ा योगदान भारत की स्वाधीनता में था। भारत की स्वाधीनता की जो गाथा है, वह बहुत लंबी है और यह भाव हर एक भारतवासी के मन में आना आवश्यक है।

भूमिका

यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि स्व. श्री नरेंद्र जैन (नंदाजी) के लेखों का दस्तावेजीकरण कर एक पुस्तक के स्वरूप में इसे 'समर गाथा' शीर्षक से प्रकाशित किया जा रहा है। नाम के अनुरूप इसमें स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन और उसमें शामिल तमाम ऐसे किरदारों के नाम तथा उनके काम को उजागर किया गया है, जिन्होंने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में अपना सर्वस्व न्योछावर किया, लेकिन वे गुमनाम ही रहे हैं। इस तरह यह पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के फलक को और भी ज्यादा विस्तार देगी और पाठकों तथा इस संबंध में शोध करने के आतुर लोगों को अनेक अनसुनी एवं अनकही नवीन सामग्री प्रदान करेगी। आजादी के अमृत महोत्सव काल में इसका प्रकाशन और भी उल्लेखनीय है, क्योंकि इस काल में यत्र-तत्र-सर्वत्र भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की ही चर्चा हो रही है और इसके माध्यम से पाठकों को अनेकानेक मर्मस्पर्शी घटनाक्रम, संपूर्ण त्याग और बलिदान की कहानियाँ तथा इस आंदोलन में ऐसे लोगों की हिस्सेदारी का दस्तावेजीकरण हो सकेगा, जो अब तक इससे वंचित रहे हैं। इन लेखों की भाषा इतनी सरस और शैली इतनी सहज है कि पाठकों को न केवल आकर्षित करती है, बल्कि उन्हें और जानने और पढ़ने के लिए प्रेरित भी करती है। यही नरेंद्रजी के लेखन की विशेषता थी।

नरेंद्र जैनजी का लेखन जितना सहज, सरल और सरस रहा है, उनका निजी जीवन भी पूरी तरह से उनके लेखन जैसा ही था। हालाँकि वे उम्र में मुझसे बड़े थे, लेकिन हम लोग आत्मीय मित्र थे। हम दोनों एक ही जिले भिंड से निकले। वे मौ कस्बे में जनमे, जो दुरूह अंचल में है, लेकिन वहाँ रहकर ही उन्होंने राजनीति और समाज सेवा के जरिए अपनी एक अलग पहचान बनाई-एक समर्पित और ईमानदार नेता की, जिसका मकसद सिर्फ लोगों की भलाई करना था। चंबल की खाँटी जातिवादी सियासत में संभव न होते हुए उन्होंने अपना एक अजातशत्रु जैसा मुकाम बनाया और बड़े हो या छोटे, सभी उन्हें प्यार करते थे और सम्मान देते थे। उनका नाम कोई नहीं लेता था, सब सम्मान से 'नंदाजी' ही कहकर पुकारते थे।

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