रामायण में संत तुलसीदास जी उस पावन नाम का वर्णन करते हैं जो राम सबमें रमा है। जो मंगलों का घर और अमंगलों को नष्ट करने वाला है जिसे पार्वती सहित शिवजी सदा जपते हैं जो शिवजी के हृदयरूपी मानसरोवर में रहने वाला हंस है। वह हंस नाम सभी के हृदय में रमण करता है, सारे जगत् को पावन करने वाला सभी वेद शास्त्रों का सार है। संत तुलसीदास जी के कथनानुसार यह राम चरित मानस हंस की गाथा है इसमें नाम के गुणों का वर्णन करते हुए प्रभु की सभी लीलाओं का वर्णन किया है उसी नाम को अनेक नामों से पुकारा जाता है, क्योंकि वह नाम निर्वचनीय है, वह मुँह से बोला नहीं जाता। उसी नाम को हिन्दी में स्वयंभू शिव, विष्णु, राम, कृष्ण, शब्द-ब्रह्म, पावन नाम व गुरमुखी में वाहेगुरु, सत्नाम, सार शब्द, विष्णु, शिव-पार्वती आदि तथा उर्दू में-खुदा, अल्लाह, रहीम, आदम, गैबी आवाज तथा रब आदि एवं इंग्लिश में गॉड, लार्ड, होली नेम, डिवाइन वर्ड, क्राइस्ट, जिहोवा इत्यादि। अनेक मतानुयायी उस नाम को अपनी-अपनी भाषा में पुकारते हैं किन्तु सभी के धर्मग्रन्थों में बताया है कि वह नाम मुँह से बोला नहीं जाता है, वह परम गुप्त है केबल जानने का विषय है कहने का नहीं। जो जन जानकर उसका साधन करते हैं या उसे याद करते हैं उनके सभी संकट मिट जाते हैं।
मन मन्दर तन भेष कलंदर घट ही तीरथ नावा । एक शब्द मेरे प्राण बसै, बहुरि जन्म नहि आवा ।।
विधि हरि हर जाको ध्यान धरत हैं, मुनिजन सहस अठासी ।
सोई हंस तेरे घट भीतर, अलख पुरुष अविनाशी ।। (कबीर) पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो ।
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