संत रैदास
संत रैदास की वाणी में दीन-हीन और शोषितों के प्रति एक विकल पीड़ा,अपमान के विरुद्ध समाधान में प्रतिपल घुटन और समस्याओं के प्रतिएक जागरूक दृष्टि थी तथा वे यह भली प्रकार जानते थे कि पुरातनता से किस प्रकार ग्रहण किया जाए, परम्परा को किस स्थान तक सुरक्षित रखा जाए और नवीन परिस्थितियों के अनुरूप किस प्रकार मार्ग बनाया जाए । उनकी वाणी की इन्हीं विशेषताओं ने उनको अपने युग का ही नहीं, सदा-सर्वदा के लिए एक महान विचारक, चिन्तक तथा समाज सुधारक के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया है
प्रस्तुत' संस्करण की भूमिका
प्रस्तुत पुस्तक ' सन्त रैदास ' का द्वितीय. संस्करण आपके हाथ मैं है । मूलत: यह पुस्तक कानपुर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति माननीय श्री राधाकृष्ण के आग्रह कानपुर विश्वविद्यालय के सम्पूर्ण उपाधि धारकों को वितरित करने के लिये तैयार की जानी थी, किन्तु किन्हीं कारणों वश इस पुस्तक को मैंने एक चुनौती रूप में स्वीकार किया और सारे भारतवर्ष में घूमकर सन्त रैदासजी की सम्पूर्ण कृतियों का संकलन कर डाला । इन कृतियों के विभिन्न पाठभेद भी सामने आये (जिनका यथासम्भव इस पुस्तक में समावेश भी कर दिया गया है) । उपलब्ध सामग्री के प्रकाश में सन्त प्रवर के उपलब्ध साहित्य का संक्षिप्त आकलन भी करने की चेष्टा की गई किन्तु चूँकि यह: पुस्तक उस समय दीक्षान्त समारोह में वितरण हेतु लिखी जानी थी अत : पुस्तक का आकार सीमित ही रह सकता था । अत प्रत्येक पक्ष को संक्षिप्त करके प्रस्तुत करने का चेष्टा की गई और कहीं -कहीं तो इस प्रयास में समास--शैली ग्रहण करने के कारण पुस्तक के समीक्षा भाग के कुछ अंश दुरूह भी लगने लगते हैं । अस्तु पुस्तक प्रकाशित होकर दीक्षान्त समारोह मे वितरित हुई और मुझे यह. कहने में कोई संकोच नहीं है कि पुस्तक को हिन्दी जगत में हो नहीं विदेशों में भी पर्याप्त स्वागत । पुस्तक प्रकाशित होकर देश के विभित्र विश्वविद्यालयों के स्नातक राव स्नातकोत्तर स्तर पर हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रम में सम्मिलित हुई. विदेशों की अनेक सम्बधित कृतियों में सन्दर्भितहुइ और इंग्लैण्ड की एक सस्था ने इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद भी करवाने की अनुमति मांग ली । जब यह संस्करण प्रैस में जा चुका था तब भी मनोहर पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित Life & of Raidas लेखक Caltoear तथा Friedlander में 'सन्त' रैदासले० योगेन्द्र सिंह के सन्दर्भ दृष्टिगोचर हुए ।
इधर सन्त साहित्य के प्रति हिन्दी साहित्य जगत में जो उपेसशा का भाव पूर्व में वह क्रमश कम होता जा रहा है । इस घटाटोप को तोड्ने का प्रथम प्रयास बंगला मेंसर्वप्रथम गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर तथा श्री क्षितिमोहन सेन ने किया थाहिन्दी क्षेत्र मैं इस प्रयास का श्रेय पद्यभूषण डॉ० रामकुमार वर्मा को जोता है और अब तो सन्त साहिस्य हिन्दी साहित्य के क्षेत्र की न केवल एक सशक्त विधा स्थापित हो चुकी है वरन् सामान्य जन की पीड़ा, निम्नतम दुखी व्यक्ति के उद्धार प्रयास को -अभिव्यक्ति देने के कारण, वर्तमान सामाजिक चेतना के प्रयास' के साथ शायद यह साहित्य विधा ही अधिक तालमेल में बैठती है । इसीलिये विभित्र अब सन्त साहित्य के अध्ययन को प्रमुखता दी जा रही है. जिसमें विभिन सन्तों का साहित्य अलग - अलग रूप से विशेष अध्ययन का विषय बन रहा है । जहाँ तक मेरी जानकारी में आया है. ' सन्त रैदास ' जी भी विभिन विश्वविद्यालयों में अध्ययन कै संत रैदास विषय बने हैं और कतिपय विश्वविद्यालयों में तो ' सन्त रैदास ' के साहित्य का विशेष अध्ययन करने के लिये विशेष पीठ (चेयर) स्थापित किये गये हैं ।
प्रस्तुत पुस्तक ' सन्त रैदास ' का प्रथम संस्करण बाजार में समाप्त हो चुका है । मैं इधर जहाँ भी जाता लेखक के नाते विद्वत् समाज मुझसे पुस्तक के द्वितीय संस्करण का आग्रह करता था । प्रस्तुत विषय ''सन्त रैदास, उनका उपलब्ध साहित्य, विभिन्न पाठभेद तथा समीक्षात्मक अध्ययन '' पर पुस्तक के प्रथम प्रकाशन तक जहाँ तक मेरी जानकारी थी. यह पहली पुस्तक थी । अभी भी इस प्रकार से समीक्षा तथा विभिन्न पाठभेद प्रस्तुत करते हुए शायद अब तक यह अन्तिम पुस्तक भी है । (यदि कोई अन्य पुस्तक उपलब्ध है तो विद्वत् समाज तथा माननीय पाठकगण मेरी ना जानकारी के लिये मुझे क्षमा कर दें) अत. मांग बराबर बढ़ती गई । इधर कुछ मेरा अन्य कार्यों में लगाते। ९ व्यस्त रहना या यों कहें कि कुछ प्रमाद पुस्तक का पुन : प्रकाशन विलम्बित करता रहा । सन्त समाज के आदेश, विद्वत् मण्डल के आग्रह तथा बहन राजलक्ष्मी वर्मा की लगातार स्नेहिल झिड़कियों ने पुन : इस ओर ध्यान देने को विवश किया और प्रस्तुत पुस्तक का वर्तमान संस्करण आपके । हाथ में है । पुस्तक प्रकाशन में भाई दिनेश कुमार जी गुप्त का मार्गदर्शन तथा लोकभारती. प्रकाशन के श्री दिनेश व रमेशजी मेरे आभार के विशेष पात्र हैं ।
अनुक्रम
प्रथम खण्ड: व्यक्तित्व
१
सन्त रैदास के विभिन्न नाम तथा व्यक्तित्व का निर्णय
१३
२
सन्त रैदास का जीवन-वृत्त
१५
३
सन्त रैदास का आधिकारिक जीवन-वृत्त
१९
द्वितीय खण्ड: रैदास की विचारधारा
पृष्ठभूमि
३४
उत्तरार्द्ध-विचारधारा
४६
(क)
दार्शनिक विचार
(ख)
सन्त रैदास की साधना
६३
(ग)
रैदास और समाज-कल्याण
१००
तृतीय खण्ड: रैदास का साहित्य
रैदास के काव्य में कलात्मक सौन्दर्य
१०३
उपसंहार : रैदास का मूल्यांकन
११५
चतुर्थ खण्ड: रैदास की बानियों
वानियाँ (पाद-टिप्पणियों में पाठ-भेद सहित)
११८
परिशिष्ट
संत रैदास के जीवन से सम्बन्धित कुछ जनश्रुतियों
१७५
सहायक पुस्तकों की सूची
१८१
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