विद्यालय शिक्षा के सभी स्तरों के लिए अच्छे शिक्षाक्रम, पाठ्यक्रमों और पाठ्यपुस्तकों के निर्माण की दिशा में हमारी परिषद् पिछले लगभग तीस वर्षों से कार्य कर रही है। हमारे कार्य का प्रभाव भारत के सभी राज्यों और संघशासित प्रदेशों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पड़ा है, और इस पर परिषद् के कार्यकर्ता संतोष का अनुभव कर सकते हैं।
किन्तु हमने देखा है कि अच्छे पाठ्यक्रम और अच्छी पाठ्यपुस्तकों के बावजूद हमारे विद्यार्थियों की रुचि स्वतः पढ़ने की ओर अधिक नहीं बढ़ती। इसका एक मुख्य कारण अवश्य ही हमारी दूषित परीक्षा-प्रणाली है जिसमें पाठ्यपुस्तकों में दिए गए ज्ञान की ही परीक्षा ली जाती है। इस कारण बहुत ही कम विद्यालयों में कोर्स के बाहर की पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है लेकिन अतिरिक्त पठन में बच्चों की रुचि न होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि विभिन्न आयुवर्ग के बच्चों के लिए कम मूल्य की अच्छी पुस्तकें पयांप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हैं। यद्यपि पिछले कुछ वर्षों में इस कमी को पूरा करने के लिए कुछ काम प्रारंभ हुआ है पर वह बहुत ही नाकाफी है।
भारत के राजनीतिक इतिहास में सरोजिनी नायडू का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। उनके समय में औरतों को बिल्कुल आज़ादी न थी। वे पुरुषों से अलग परदे में रहा करती थीं। अकेली कहीं आ जा नहीं सकती थीं। ऐसे समय में उन्होंने भारतीय राजनीति में पूरा सहयोग दिया। स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया। अपने जीवन को देश के लिए समर्पित कर दिया। संपन्नता और सुखवैभव को तिलांजलि देकर कठिनाइयों भरे कंटकमय मार्ग को अपनाया। तरह-तरह की परेशानियाँ सहन कीं। क्रांतिकारी विचारधारा, बलिदान और उच्च आदर्शों से देश को एकसूत्र में बाँधने का प्रयास किया। स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान किसी भी भारतीय पुरुष से कम नहीं अपितु अधिक ही है।
सरोजिनी नायडू उन महान क्रांतिकारी महिलाओं में से थीं जिन्होंने काव्य-प्रतिभा, भाषण-कला और अपने संपूर्ण क्रियाकलापों से यह सिद्ध कर दिया कि नारी किसी भी तरह पुरुष से कमतर या हीन नहीं है। वह चाहती थीं दुनिया को जगाना। अपनी आवाज जन-जन तक पहुँचाना। नयी चेतना जगाना। संभवतः इसीलिए सरोजिनी का जन्म-दिवस, 13 फरवरी, महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने नारीत्व को गरिमा प्रदान की। उनका हृदय उदारता, दया, ममता, स्नेह और करुणा से भरा हुआ था। वह एक सफल गृहणी थीं और साथ ही सफल नेता भी।
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