मनुष्य की बुद्धि के विकास के प्रारम्भिक काल से ही उसने अपने अस्तित्व के रहस्यों और अपने स्रष्टा की प्रकृति को समझने का प्रयत्न किया है। इन विषयों पर प्रबोधन प्रत्येक युग के ज्ञानीजनों का विशेष लक्ष्य रहा है। इस अनुभूति के कारण, सत्संग (अच्छे एवं ज्ञानीजनों का संग) के आदर्श ने भारत की आध्यात्मिक परम्परा के हृदय में ही अपनी जड़ जमा ली है। सत्संग से साधक प्रेरणा प्राप्त करता है और अपनी आध्यात्मिक समझ को बढ़ाता है। अच्छी संगति जितनी अधिक दैवी होगी, साधक उस अनुभव से उतना ही अधिक आत्मसात् कर सकता है। परन्तु केवल कुछ भाग्यशाली जनों को ही, एक वास्तविक महात्मा के व्यक्तिगत सम्पर्क में आने का दुर्लभ तथा धन्य सौभाग्य प्राप्त होता है। जिज्ञासु जनमानस इस विशेषाधिकार से वंचित रहता है, यदि हम सत्संग के विचार को सन्त की भौतिक उपस्थिति में होने की आवश्यकता के रूप में अक्षरशः लेते हैं। तथापि, यदि हम यह समझें कि सत्संग का यथार्थ महत्त्व, एक सन्त की शिक्षाओं तथा मार्गदर्शन के प्रति साधक की ग्रहणशील होने की योग्यता है, भले ही वह साधक उस दिव्यात्मा की भौतिक उपस्थिति में रहे या नहीं, मुद्रित शब्दों का आधुनिक माध्यम, प्रत्येक जिज्ञासु की साधना में सत्संग की प्रेरणा लाता है।
इसी भावना के साथ आरोग्यकारी वैज्ञानिक प्रतिज्ञापन की यह पुस्तक पाठक को अर्पित की जाती है।
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