मुम्बई विश्वविद्यालय से स्नातक, युवक स्वामी विराजेश्वर अपनी आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाते हैं। उन्हें योग का कोई पारम्भिक जान नहीं था। वहाँ उन्होंने स्वाध्याय से योग- साधना शुरू की, लेकिन उन्हें गोरी चमड़ी वालों का काफी उत्पीड़न सहना पड़ा। स्टेट यूनिवर्सिटी, न्यू जर्सी, रुज़र्स से पी.एच.डी उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने आईबीएम कम्पनी के आर एण्ड डी लैब में काम किया, जिसने हाई स्पीड फोर्थ जनरेशन कम्प्यूटर का विकास किया।
वैज्ञानिक उपलब्धि से निराश होकर, युवा वैज्ञानिक सब कुछ त्याग कर सत्य की खोज में हिमालय चला जाता है और मेडिटेशन में में डूब जाता है, यह जानने के लिए कि "मैं कौन हूँ? ईश्वर क्या है? मेरा अस्तित्व क्यों है?" और एक वैज्ञानिक सन्त बन जाता है।
उत्साहपद, शिक्षापद और मन को रिझाने वाला 'वैज्ञानिक का सत्य शोध' एक सिद्ध सन्त द्वारा सीधे सरल शब्दों में वर्णित दस्तावेज़ है, जिसे पढ़कर पाठक परम शान्ति की यात्रा में लेखक के साथ-साथ चलने लगता है।
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